बाल विवाह केवल भारत का ही मुद्दा नहीं बल्कि वैश्विक मुद्दा है। यह समस्या लैंगिक असमानता, गरीबी, सामाजिक मानदंडों और असुरक्षा से पनपी है। बाल विवाह के कारणों को सामाजिक और आर्थिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। महिलाओं के घरेलु श्रम, देखभाल कार्य, लड़कियों की सुरक्षा और बचाव के लिए उनकी जल्दी शादी करने की धारणा और परिवार के सम्मान को जोखिम की आशंकाएं या आर्थिक बोझ जैसी अन्य वास्तविक्ताओं के चलते भी यह कुरीति आज भी बनी हुई है। गरीब परिवारों की यही धारणा होती है कि जितनी जल्दी हो सके बेटियों के हाथ पीले कर दो। इस तरह बालिका वधुओं की संख्या बढ़ती रहती है। कम उम्र में मां बनने से जटिलताएं बढ़ जाती हैं। इस कारण उनकी और शिशुओं की मौतें हो जाती है आज के दौर में जब हम महिला सशक्तिकरण के नारे गुंजायमान कर बेटियों की उपलब्धियाें पर गर्व महसूस करते है, ऐसे में बालिका, वधुओं की असमय मौत हमें शर्मसार करती है। विश्व की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था का खिताब हासिल कर चुके भारत में ऐसी सामाजिक कुरीतियों का अंत बहुत जरूरी है।
कई समाज आज भी बच्चों की शादियां कराने के पक्षधर हैं और मुस्लिम समाज में छोटी उम्र में शादियों का प्रचलन काफी है। बाल विवाह लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और उन्हें अपने लिए फैसले लेने के लिए लगभग अदृश्य बना देता है। लड़कियों के बुनियादी अधिकारों मेें शिक्षा का अधिकार, मानसिक और शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार शामिल है। कमजोर शिक्षा, कुपोषण और कम उम्र में गर्भावस्था बच्चों के जन्म के समय कम वजन का कारण बनती है जिससे कुपोषण का अंतर पीढ़ी चक्र बना रहता है। यद्यपि भारत में बाल विवाह के विरुद्ध कानून है और इसके लिए सजा का प्रावधान भी है लेकिन देश में अक्षय तृतीय के दिन काफी संख्या में बाल विवाहों की खबरें मिलती रहती हैं। बाल विवाह रोकने के लिए राज्य सरकारों द्वारा समय-समय पर अभियान चलाए जाते रहे हैं। असम सरकार ने इन दिनों बाल विवाह के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया हुआ है। इस अभियान के तहत लगभग 2500 लोगों काे गिरफ्तार किया जा चुका है और 4 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं। गिरफ्तार किए लोगों में बाल विवाह कराने वाले काजी और पुजारी भी शामिल हैं, जो भी गिरफ्तार किए गए हैं उनमें बाल-विवाह करने वाले पति शामिल हैं।
यह कार्रवाई असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की पहल पर की गई। राज्य मंत्रिमंडल ने 23 जनवरी को यह फैसला किया था कि 14 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से विवाह करने वालों के खिलाफ यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) कानून के तहत मामला दर्ज किया जाएगा और 14 से 18 साल की लड़कियों से विवाह करने वालों के खिलाफ बाल विवाह रोकथाम कानून 2006 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। प्रथम दृष्टि में असम सरकार की कार्रवाई सही लगती है लेकिन जिस तरह से कानून लागू किया जा रहा है उससे राजनीतिक पारा काफी चढ़ गया है। राज्य में विपक्षी दल और अनेक मुस्लिम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। बाल विवाह के खिलाफ अभियान को धार्मिक रंग दिया जा रहा है। विरोध करने वालों का यह तर्क भी सही है कि कानून को सात साल पहले से लागू किया जा रहा है। जिन की शादी सात साल पहले हो चुकी है वे शादीशुदा जोड़े तो अब एडल्ट हो चुके हैं, ऐसे जोड़ों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं बनता। मुस्लिम नेताओं का आरोप है कि सरकार की कार्रवाई उन्हीं इलाकों में हाे रही है, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है जबकि सरकार का कहना है कि पिछले एक दशक में पूरे असम में ही बाल विवाहों की संख्या में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है। भारी संख्या में महिलाएं अपने पतियों की गिरफ्तारी का विरोध कर रही है। उनका कहना है कि उनके पतियों को जेल में डाल दिया जाएगा तो उनके बच्चों को कौन पालेगा?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5-2019-21 के अनुसार असम में 15-19 साल की आयु की करीब 11.7 प्रतिशत महिलाएं पहले से ही मां बन चुकी थीं या गर्भवती थीं। असम के कई जिलों में जब 20-24 साल के बीच की महिलाओं का सर्वे किया गया तो चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। पता चला कि 18 साल की उम्र से पहले हुई शादी की संख्या सबसे ज्यादा है। सर्वे में यह बात सामने आई कि यहां ज्यादातर शादियां 15-19 साल की उम्र में कर दी जाती हैं। असम सरकार को चाहिए कि बाल विवाह रोकने के लिए इस ढंग से एक्शन करें कि परिवार व्यथित न हो। जो जोड़े एडल्ट हो चुके हैं तो पतियों को जेल भेजना गलत होगा। इससे परिवार टूटेंगे और परेशानी बढ़ेगी। इससे लोगों में आक्रोश भी बढ़ेगा। बाल विवाह रोकने के लिए समाज को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना भी जरूरी है। सरकार को इसके लिए सशक्त जागरूकता अभियान भी चलाने की जरूरत है। बाल विवाह जैसी बड़ी समस्या का निवारण जन जागरण से ही हो सकता है। अब जबकि विवाह का पंजीकरण कराना कानूनन अनिवार्य हो गया है इससे भी बाल विवाह पर रोक लग सकती है। बाल विवाह पर कार्रवाई हो लेकिन यह कार्रवाई भेदभावपूर्ण ढंग से नहीं होनी चाहिए। साथ ही समाज सुधारकों को इस दिशा में अधिक से अधिक प्रयास करने चाहिए तभी समाज को इस अभिशाप से मुक्त कराया जा सकेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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