प्रशासनिक सेवा के अधिकारी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

प्रशासनिक सेवा के अधिकारी

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों की सेवा शर्तों में संशोधन को लेकर हाल ही में केन्द्र व राज्यों के बीच जो विवाद चल रहा है

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों की सेवा शर्तों में संशोधन को लेकर हाल ही में केन्द्र व राज्यों के बीच जो विवाद चल रहा है उसको लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि भारत की आजादी के बाद देश के प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पूरे भारत को एक इकाई के रूप में लेते हुए इसके विभिन्न राज्यों की भौगोलिक व सांस्कृतिक विविधता को देखते हुए जो प्रशासनिक ढांचा बनाया उसमें केन्द्र व राज्यों की सहभागिता इस प्रकार निर्धारित की कि भारत के किसी भी कोने में रहने वाले भारतीय के मन में एक राष्ट्र होने की भावना सर्वदा जागृत रहे। सरदार पटेल ने विभिन्न विशेषज्ञों की सहमति से भारतीय प्रशासनिक सेवा शुरू करते हुए केन्द्र में राष्ट्रीय एकीकरण के तत्व पर खास जोर डाला और इस सेवा के अधिकारियों के लिए बाद में जो नियम निर्धारित किये गये उनमें केन्द्र व राज्यों के बीच समन्वय और सहमति के साथ ही वैचारिक विमर्श पर जोर दिया गया। अंग्रेज जो प्रशासनिक व्यवस्था हमारे पास छोड़ कर गये थे उसमें इन सभी अवयवों का अभाव था। चूंकि भारत एक राज्यों का संघ (यूनियन आफ इंडिया) था अतः इस ढांचे में राज्यों के विशेषाधिकारों का इस प्रकार निर्दिष्ट किया गया कि वे अपनी प्रशासनिक प्रणाली अखिल भारतीय स्तर पर निर्धारित मानकों के अनुरूप चला सकें। इसके लिए भारत के प्रत्येक जिले में प्रशासन का मुखिया केन्द्र सरकार की सेवा में चयनित व्यक्ति को बनाया गया जिसे जिलाधीश या कलैक्टर कहा जाता है। परन्तु यह अपने प्रदेश की चुनी गई सरकार के मातहत ही काम करता है और इस प्रकार करता है कि हर हालत में संविधान या कानून का राज कायम रहे। एक प्रकार से प्रत्येक आईएएस अधिकारी भारत के लोगों द्वारा 26 जनवरी, 1950 को अपनाये गये संविधान का प्रतिपालक होता है जिसका संरक्षण राज्य सरकार करती है। भारत की विविधता को देखते हुए इसकी यह प्रशासनिक प्रणाली दुनिया की ऐसी  अनूठी और खूबसूरत व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक क्षण नागरिकों को यह आभास रहता है कि वे भारत की एकात्म शक्ति के पालक हैं। 
यही वजह है कि उत्तर भारत के इलाकों में हमें जिलाधीश के पद पर बैठे हुए तमिलनाडु या ओडिशा अथवा गैर हिन्दी भाषी राज्यों के अधिकारी मिल जाते हैं और ठीक ऐसा  ही दक्षिण या पूर्वोत्तर के राज्यों में भी होता है। परन्तु प्रशासनिक सेवा में प्रत्येक राज्य का कोटा होता है जिसके अनुसार उनकी नियुक्ति होती है साथ ही केन्द्र के पास भी यह अधिकार होता है कि आवश्यकता पड़ने पर वह राज्य सरकार की रजामन्दी से किसी भी अधिकारी को प्रतिनियुक्ति पर अपनी सेवाओं में ले सके। केन्द्र इन शर्तों में संशोधन चाहता है और उसने इसके  बाबत दो सुझाव पत्र विभिन्न राज्य सरकारों को उनकी राय के लिए भेजे। इन प्रपत्रों में जो सुझाव दिये गये हैं उनके अनुसार केन्द्र जरूरत पड़ने पर किसी भी राज्य से किसी भी अधिकारी को प्रतिनियुक्ति पर बुला सकता है और राज्य सरकारों को अन्ततः उसके लिए राजी होना पड़ेगा (सुझाव पत्र का यह मोटा-मोटी प्रस्ताव है जिसमें विभिन्न तकनीकी कोण शामिल हैं)। राज्य सरकारों को 25 जनवरी तक अपने सुझाव केन्द्र के पास भेजने हैं मगर उससे पहले ही कई राज्यों ने इस पर ऐतराज उठाना शुरू कर दिया है जिनमें प. बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी प्रमुख हैं मगर भाजपा शासित मध्य प्रदेश, बिहार, मेघालय के अलावा ओडिसा व महाराष्ट्र भी शामिल हैं। जाहिर है कि ये राज्य पुरानी सहमति मूलक व्यवस्था के ही पक्षधर हैं मगर केन्द्र का भी अपना नजरिया है कि वह जरूरत पड़ने पर लम्बी प्रक्रिया का बन्धक नहीं हो सकता। 
मगर सबसे बड़ा सवाल भारत के उस संघीय प्रशासनिक ढांचे का है जो केन्द्र व राज्यों के बीच अदृश्य मजबूती को (सीमलेस बांडिंग) बांध कर रखता है। यह सीमलेस बांडिंग हमें केन्द्र की सत्ता का छाता और राज्य की सत्ता का तन्त्र दिखाती रहती है । मगर ऐसा नहीं है कि केन्द्र अपनी शर्तों को राज्यों पर लादना चाहता है वरना वह राज्यों से सुझाव मांगता ही नहीं। इसके साथ हमें यह भी देखना होगा कि भारत का प्रशासन अन्ततः राजनीतिक दलों के हाथ में ही जाता है और राज्यों में जरूरी नहीं होता कि उसी पार्टी की सरकार बने जिसका शासन केन्द्र में हो। अतः किसी भी मौके पर प्रशासनिक सेवा पर राजनीतिक आग्रहों की छाया नहीं पड़नी चाहिए। प्रशासनिक सेवा पूरी तरह गैर राजनीतिक होती है और यह राजनीतिक दल की सरकार में केवल संवैधानिक व्यवस्था कायम रखने के लिए ही प्रतिबद्ध होती है अतः इस मुद्दे पर केन्द्र व राज्य सरकारों को दलगत आग्रहों को दरकिनार करके वस्तु स्थिति पर विचार करना होगा और सोचना होगा कि सम्पूर्ण भारत के हित में क्या है । जहां तक आईपीएस या वन सेवा के अधिकारियों का प्रश्न है तो उन पर भी यही नियम लागू होते हैं क्योंकि वे भी केन्द्र द्वारा आयोजित परीक्षाओं के आधार पर ही चयनित किए जाते हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 + sixteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।