अफगान शांति वार्ता और भारत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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अफगान शांति वार्ता और भारत

भारत अफगानिस्तान के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं भारत ने अपने हाथ में ले रखी हैं।

भारत अफगानिस्तान के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं भारत ने अपने हाथ में ले रखी हैं। अफगानिस्तान में तालिबान से शांति वार्ता चल रही है। पहले तो भारत तालिबान से वार्ता में शामिल नहीं होना चाहता था क्योंकि कंधार ​विमान अपहरण कांड में तालिबान की भूमिका के चलते संबंधों में तल्खी महसूस की जा रही थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वक्त पर शुरू की गई अफगान शांति प्रक्रिया में भारत की उतनी भूमिका नहीं थी। अब नए बाइडेन प्रशासन के आने के बाद अमेरिका का फोक्स इस बात पर है कि अफगानिस्तान में चल रही शांति प्रक्रिया में पड़ोसी देश काे भी तरजीह दी जाए ताकि शांति समझौता टिकाऊ हो और लम्बे समय तक चले। ट्रंप शासनकाल में अफगान सरकार और तालिबान में समझौते होने के बावजूद उसने हिंसा में कोई कमी नहीं की। तालिबान ने समझौते का पालन नहीं किया। ऐसे में तालिबान को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना भारत के लिए फायदेमंद है। पिछली बार की बातचीत में तालिबान बड़ी भूमिका में था लेकिन अब बाइडेन प्रशासन ने दूसरे देशों को भी भागीदार बनाया है। भारत के साथ-साथ ईरान, रूस को भी शामिल किया गया है।
अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए पाकिस्तान को ही सबसे बड़ा स्टेक होल्डर माना जाता था लेकिन पहली बार पाकिस्तान के साथ दूसरे देशों को हिस्सा बनाया गया है। अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए अमेरिका पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाता रहा है। अमेरिकी प्रशासन का पाकिस्तान पर दबाव यह था कि वह तालिबान पर दबाव बनाकर उसे समझौते के लिए राजी करे। एक रिपोर्ट ने तो सभी को चौंका दिया था, जिसमें कहा गया था कि अफगान शांति वार्ता के लिए तैयार किये जा रहे रोडमैप पर फैसला लेने वाले 6 देशों की सूची में भारत शामिल हो गया है, हालांकि ऐसा अमेरिका के कारण सम्भव हुआ हो सकता है। क्योकि रूस ने जिन देशों की भागीदार का नाम सुझाया था, उसमें भारत शामिल नहीं था। 
रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि रूस और चीन की बढ़ती नजदीकियों के कारण रूस ने भारत का नाम नहीं सुझाया। इस रिपोर्ट पर हैरानी तो हुई क्योकि रूस भारत का विश्वसनीय दोस्त रहा है लेकिन अमेरिका से भारत के बढ़ते संबंधों के चलते रिश्तों में ठहराव आ चुका है लेकिन रूस ने हमेशा भारत के हितो का ध्यान रखा है। 
रिपोर्ट में तो यह भी कहा गया था कि रूस ने ऐसा पाकिस्तान के कहने पर किया है क्योकि पाकिस्तान नहीं चाहता कि भारत इस इलाके में शांति के लिए तैयार की जा रही रूपरेखा का हिस्सा बने लेकिन रूस की ओर से भारत को दूर रखने की कोशिशों को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट को निराधार और गलत सूचनाओं पर आधारित बताया है। रूस का कहना है कि रूस और भारत के बीच संवाद हमेशा सभी वैश्विक आैर अफगानिस्तान सहित क्षेत्रीय मुद्दों पर बहुत करीबी का और दूरदर्शी रहा है। 
अफगानिस्तान समझौते की जटिलता के कारण एक क्षेत्रीय सहमति और अमेरिका सहित अन्य भागीदारों के साथ समन्वय बनाना महत्वपूर्ण है। रूस ने हमेशा ये कहा है कि अफगानिस्तान में भारत की भूमिका अहम है और ऐसे में इस मामले में उसे गहरी भागीदारी और संवाद होना स्वाभाविक है। रूस द्वारा रिपोर्ट को निराधार बताए जाने से कूटनयिक क्षेत्रों में राहत महसूस की गई है। भारत लम्बे समय से काम कर रहा था। इसके लिए भारत ने अफगानिस्तान और उससे बाहर सभी अहम किरदारों से समन्वय स्थापित कर लिया था। भारत की कूटनीति की सफलता ही है कि भारत अफगान शांति वार्ता में एक बड़ा स्टेक होल्डर बन गया है।
 राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने इसी वर्ष जनवरी में अफगानिस्तान की यात्रा की थी। उसका लक्ष्य भी यही था कि भारत बातचीत का हिस्सा बने। पाकिस्तान चाहता था कि भारत की कोई मौजूदगी अफगानिस्तान में नहीं रहे इसलिए उसने हक्कानी नेटवर्क से सांठगांठ कर अफगानिस्तान में भारतीय ठिकानों पर आतंकी हमले भी करवाए थे लेकिन अफगानिस्तान की सरकार और भारत के संबंधों में कोई कमजोरी नहीं आई। भारत को एक स्टेक होल्डर के तौर पर मान्यता मिलना भारत की बड़ी उपलब्धि है। भारत को उम्मीद है कि वह अब ​विशेष रूप से आतंकवाद, हिंसा, महिला अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर नियम तय करने में अहम भूमिका​ निभाएगा। भारत हमेशा अफगानिस्तान के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान नियंत्रित आैर स्वामित्व वाली सरकार चाहता है।

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