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अमेरिका की कुटिलता और चुनाव

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भारत के वर्तमान लोकसभा चुनावों में जो अदृश्य भूमिका अमेरिका निभा रहा है और वह इसलिए चिन्ता पैदा करता है क्योंकि देश का राजनैतिक चुनावी विमर्श चाहे-अनचाहे उसी की सोची-समझी उस चुप्पी के चारों तरफ घूमता लगता है जिसका सम्बन्ध बालाकोट सैनिक कार्रवाई से है। अमेरिका यह राज खोलने को तैयार नहीं है कि भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में जो कार्रवाई की थी उसके जवाब में पाकिस्तान की तरफ से विगत 27 फरवरी को की गई कार्रवाई में वह एफ-16 लड़ाकू विमान शामिल था कि नहीं जिसे हमारी वायुसेना ने जवाब में मार गिराया था और इसे अंजाम देते हुए हमारे पायलट अभिनंदन का मिग-21 विमान पाकिस्तानी सरहद में गिर गया था जिसकी वजह से पाक फौज ने अभिनंदन को अपनी गिरफ्त में ले लिया था और बाद में उन्हें वापस किया गया था।

यह आश्चर्य की बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प उत्तरी कोरिया में होने के बावजूद यह बता देते हैं कि भारत-पाक के बीच बने तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए अच्छी खबर आने वाली है और उसके बाद पाकिस्तानी संसद में वहां के प्रधानमन्त्री इमरान खान घोषणा करते हैं कि उनकी सरकार ने अभिनन्दन को भारत को वापस देने का फैसला किया है परन्तु उनकी सरकार भारत के इस दावे की पुष्टि नहीं करती कि उसके द्वारा पाकिस्तान को दिये गये एफ-16 विमानों में से एक घट गया है। इसकी क्या वजह हो सकती है ? सामान्य पाठकों के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि क्यों पाकिस्तान बिना अमेरिका की मर्जी के उन एफ-16 विमानों का प्रयोग नहीं कर सकता जिनमें हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें लगी होती हैं।

अमेरिका ने पाकिस्तान को ये विमान बेचते समय यह समझौता किया था कि वह उनका प्रयोग केवल आत्मरक्षा के लिए ही करेगा जबकि भारत की बालाकोट कार्रवाई में पाकिस्तान के किसी सैनिक ठिकाने को निशाना नहीं बनाया गया था बल्कि जैश-ए-मोहम्मद के दहशतगर्द ठिकानों पर हमला करने की बात कही गई थी। भारत ने इसे सैनिक कार्रवाई की श्रेणाी में भी नहीं डाला था हालांकि इसे अंजाम देने में वायुसेना का उपयोग किया था। यह हमला पाकिस्तान पर नहीं बल्कि दहशतगर्दों पर था, इसी वजह से बालाकोट कार्रवाई के बारे में अगले दिन किसी सैनिक प्रवक्ता ने जानकारी नहीं दी थी बल्कि भारत के सचिव स्तर के अधिकारी ने इसका खुलासा किया था।

तकनीकी रूप से भारत की इस ‘असैनिक’ कार्रवाई का जवाब पाकिस्तान की तरफ से ‘सैनिक’ कार्रवाई के रूप में हवाई हमला करके दिया गया जिसका उत्तर उसी रूप में भारतीय वायुसेना ने दिया और इसमें पाकिस्तान के एक एफ-16 विमान को मार गिराया और सबूत के तौर पर वायुसेना ने इससे छोड़े गये मिसाइल के ‘खोल अवशेष’ भी दिखाये जिन पर स्पष्ट रूप से मिसाइल का अमेरिकी नाम गुदा हुआ था मगर पाकिस्तान लगातार इस दावे का खंडन कर रहा है कि उसके हवाई हमले के दस्ते में कोई एफ-16 विमान भी शामिल था। भारत ने अमेरिका से पाकिस्तान के दावे को झूठा साबित करने के लिए उससे एफ-16 विमान के प्रयोग के बारे में जब पूछा तो उसने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि ‘यह मामला दो देशों उसके और पाकिस्तान के बीच का है।

अतः इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा सकती।’ मगर दूसरी ओर अमेरिका भारत के साथ अपने सम्बन्धों को बहुत प्रगाढ़ बताता है और दोनों देशों मे ‘सैनिक सहयोग’ का समझौता तक भी है। जिसे देखते हुए भारत अपेक्षा कर सकता था कि वह उसके दावे की पुष्टि करके पाकिस्तान की नकेल कसेगा मगर उसने यह न करके ऐसा रहस्य कायम कर दिया जिससे भारत और पाकिस्तान आपस में उलझे रहें और दोनों ही अपने-अपने देश की जनता के बीच अपना सिर ऊंचा रखें। इसमें अमेरिका का अपना निजी स्वार्थ व हित है। वह भारत व पाकिस्तान दोनों को ही अपनी सैनिक सामग्री बेचना चाहता है और खुद दरोगा बने रहना चाहता है। उसकी यह नीति दोनों ही देशों की आन्तरिक राजनीति में भी उसे परोक्ष रूप से दखलन्दाजी करने का अवसर प्रदान करती है। भारत के पास भी अमेरिका द्वारा बेचे गये सी-17, सी-130 और अपाचे लड़ाकू विमान व हेलीकाप्टर हैं।

उसका कहना है कि यदि कल को कोई तीसरा देश उससे भारत द्वारा प्रयोग किये गये इन विमानों का विवरण मांगेगा तो वह उसे नहीं देगा मगर हकीकत यह नहीं है। अमेरिका किसी भी देश को संजीदा लड़ाकू सामग्री देने से पहले उसके साथ ‘एड यूज ट्रीटी’ यानि उनके प्रयोग करने से पहले इसकी इजाजत अमेरिका से लेने का समझौता करता है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हथियारों को चलाने का ‘कोड’ अर्थात ‘मन्त्र’ अपने पास रखता है जिसे जाने बिना उसके हथियार कोई दूसरा देश चला ही नहीं सकता है। अतः प्रयोग से पहले दूसरे देश को अपने अमेरिकी हथियार उससे ही खुलवाने पड़ते हैं जिसे ‘डिकोडिंग’ कहा जाता है। एेसा समझौता जुलाई 2009 में भारत के साथ भी किया था। यह समझौता भारत यात्रा पर तब आयीं अमेरिकी विदेशमन्त्री हिलेरी क्लिंटन और मनमोहन सरकार के विदेशमन्त्री एस.एम. कृष्णा के बीच हुआ था जो आजकल भाजपा में हैं। अतः बिल्कुल स्पष्ट है मिसाइल क्षमता वाले एफ-16 विमान का उपयोग पाकिस्तान बिना अमेरिकी इजाजत के कर ही नहीं सकता था।

यदि उसने ऐसा किया है तो अमेरिका इस तथ्य को भारत से छिपाना क्यों चाहता है जबकि बालाकोट कार्रवाई के समय भारत-पाक सम्बन्धों को लेकर सबसे ज्यादा चिन्ता डोनाल्ड ट्रम्प ही दिखा रहे थे? जाहिर है कि इसकी आड़ में वह भारतीय राजनीति के ‘ताप’ को मापना चाहते हैं और भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी सार्थकता सिद्ध करना चाहते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र कहा जाने वाला देश भारत किस प्रकार यह सब सह सकता है? जबकि हम जानते हैं कि हर संकट के समय अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ ही दिया है चाहे वह 1965 का युद्ध हो या 1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम।

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