आर्थिक सुस्ती और बढ़ती बेरोजगारी के संकट के बीच दुनियाभर की कंपनियों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर बहस छिड़ी हुई है। विश्वभर की कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अधिक से अधिक अपनाने पर जोर दे रही हैं। अमेरिका और यूरोप की कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भारतीयों को नौकरियां दे रही हैं। इसके चलते कुछ नौकरियां गई तो कई अन्य तरह की नौकरियों का सृजन भी हुआ। युवाओं की भूमिका बदल गई। अनेक युवाओं को डेटा लैबलिंग का काम करने का मौका मिला।
इनफर्मेशन टेक्नोलोजी की प्रतिष्ठित कंपनी इन्फोसिस की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार उद्यम ग्राहकों का अनुभव और उत्पादकता बढ़ाने के लिये डिजिटल पहल पर काम कर रहे हैं। शोध के अनुसार एनालिटिक्स, ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिये तकनीकी स्किल्स की काफी मांग है। डिजिटल पहल पर परिष्कृत तकनीक स्किल वाले लोगों की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा नवाचार पर जोर देते हैं। असल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता कम्प्यूटर साईंस एंड टैक्नोलोजी से सम्बंधित टर्म है जिसकी शुरूआत 1950 के दशक में हुई। इसका उद्देश्य ऐसी मशीन बनाना रहा है जो इंसानी व्यवहार की नकल कर सके।
ऐसे में इस कृत्रिम बुद्धिमता या कृत्रिम दिमाग के बारे में जानकारी होनी चाहिये। इंसान में यह गुण प्राकृतिक रूप से होता है कि उसमें सोचने, समझने और सीखने की क्षमता होती है। ठीक उसी तरह एक ऐसा सिस्टम विकसित करना जो आर्टिफिशियल तरीके से सोचने, समझने और सीखने की क्षमता रखता हो और व्यवहार करने और प्रतिक्रिया देने में मानव से भी बेहतर हो, उसे ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहते हैं। कृत्रिम बुद्धिमता एक ऐसी स्टडी है जिसमें ऐसा साफ्टवेयर तैयार किया जाता है जिसमें एक कम्प्यूटर इंसान की तरह और इंसान से बेहतर प्रतिक्रिया दे सके। इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में कई तरह के विषय शामिल होते हैं जिनमें गणित, समाज शास्त्र दर्शन के अलावा भाषा का ज्ञान शामिल है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने हमारी जिंदगी में काम करने के तरीके को सरल बना दिया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मशीनें इंसान द्वारा की गई प्रोग्रामिंग से ही चल रही हैं।
भारत में शिक्षा प्रणाली को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। देश के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान डिग्री धारकों की फौज खड़ी कर रहे हैं। हमारे युवाओं को कंपनियों में नौकरी इसलिये नहीं मिलती क्योंकि उनमें कौशल नहीं है। दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली उतनी तेजी से नहीं बदल रही। हमें अनुसंधान, अन्वेषण की जरूरत है लेकिन हम आज भी किताबी ज्ञान के पीछे भाग रहे हैं। समय को देखते हुये शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत है ताकि हमारी भावी युवा पीढ़ी दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके। शिक्षा में नये-नये विषय शामिल करने की जरूरत है। कुछ नया करने की जरूरत है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इंसान की जिंदगी में बढ़ते प्रभाव को देखते हुये सीबीएसई ने एक नई पहल की है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया है। अमेरिका और कुछ अन्य देशों में इस विषय की पढ़ाई स्कूल से ही शुरू की जाती है। सीबीएसई ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का पाठ्यक्रम भी तैयार कर लिया है और 2019-2020 से नौवीं कक्षा से वैकल्पिक विषय के रूप में शुरू करने का फैसला किया है। इस कोर्स के लिये प्रशिक्षण कार्य भी शुरू किया जायेगा। नौवीं कक्षा के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का पाठ्यक्रम 112 घण्टे का है और इसे 168 कक्षाओं में बांटा गया है इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का परिचय 12 घण्टे का होगा। प्रोजैक्ट चक्र 26 घण्टे का और न्यूरल नेटवर्क 4 घण्टे का होगा।
ऐसा भ्रम फैलाया जा रहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रोत्साहित करने से नौकरियां चली जायेंगी। ऐसा ही भ्रम कम्प्यूटर के आने से पहले फैलाया गया था लेकिन बाद में कम्प्यूटर जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। अब भारत के प्रशिक्षित युवा बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देश के भीतर नामी कंपनियों में मोटी तनख्वाह पर काम करते हैं। 2013 में विश्व कौशल प्रतियोगिता में भारत 33वें स्थान पर था। 2015 में भारत 29वें स्थान पर आ गया और 2017 में हम 17वें स्थान पर आ गये। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले भारतीय युवाओं की संख्या बढ़ रही है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिये जरूरी है कि शिक्षा के क्षेत्र में कुछ तूफानी किया जाये। सीबीएसई की पहल को एक सकारात्मक और बेहतर पहल ही कहा जाना चाहिये।