आर्यन खान मामले का रहस्य ? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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आर्यन खान मामले का रहस्य ?

नशीले पदार्थ के सेवन के आरोप में गिरफ्तार किये गये अभिनेता शाहरुख खान के सुपुत्र आर्यन खान का मामला अब किसी जासूसी उपन्यास की तरह नये रहस्यों की तह में खोता जा रहा है।

नशीले पदार्थ के सेवन के आरोप में गिरफ्तार किये गये अभिनेता शाहरुख खान के सुपुत्र आर्यन खान का मामला अब किसी जासूसी उपन्यास की तरह नये रहस्यों की तह में खोता जा रहा है। मगर सबसे गंभीर रहस्य इस सन्दर्भ में यह बन रहा है कि पूरे मामले की जांच करने वाले नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारी समीर वानखेड़े की विश्वसनीयता क्या है? इसी से जुड़ा हुआ दूसरा रहस्य यह है कि समुद्री नौका में मुम्बई में विगत 2 अक्तूबर को हुई  ‘ड्रग पार्टी’ की नारकोटिक्स ब्यूरो को सूचना देने वाले मुख्य गवाह किरन गोसावी का अता-पता क्या है। पिछले कई दिनों से गोसावी गुम है और लापता है। तीसरा रहस्य यह है कि गोसावी को एक गवाह की हैसियत से इस पार्टी में पकड़े गये आरोपी आर्यन खान से पूछताछ करने और उसके साथ अपनी वीडियो बनाने की इजाजत नारकोटिक्स विभाग ने किस कानून के तहत दी। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण रहस्य यह है कि क्या आर्यन खान की गिरफ्तारी भारी रकम की वसूली करने की गरज से की गई थी।
मुद्दा यह भी है कि आर्यन के पास से न तो कोई नशीला पदार्थ बरामद हुआ और न उसकी चिकित्सीय जांच कराई गई जिससे यह पता चल सकता कि उसने नशा किया हुआ था या नहीं लेकिन इन सब रहस्यों के ऊपर नया रहस्य यह है कि इस मामले के एक दूसरे प्रमुख गवाह प्रभाकर सेल ने बाकायदा शपथ पत्र जारी कर कहा कि आर्यन को गिरफ्तार करने के पीछे असली मंशा 25 करोड़ रुपए की उगाही करने की थी और सौदा 18 करोड़ रुपए पर पटाने की कोशिश किरण गोसावी ने की जिसमें से आठ करोड़ रु. नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी समीर वानखेडे़ को दिये जाने थे। इसके साथ प्रभाकर सेल ने अपने शपथ पत्र में यह भी कहा है कि एक गवाह (पंच) के तौर पर ब्यूरो ने उससे दस खाली कागजों पर हस्तातक्षर करा कर अपने पास रख लिये।
पूरा मामला नारकोटिक्स ब्यूरो की विश्वसनीयता से इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि देश की नशीले पदार्थों की अवरोधक इस जांच एजेंसी को भारत की आम जनता की निगाहों में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए कठोर कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़े। आर्यन खान मामले में जो कहानी निकल कर बाहर आ रही है उसकी कड़ियां जोड़ने पर पूरे प्रकरण में गवाह किरण गोसावी की भूमिका बहुत रहस्यमयी होती जा रही है। यदि जासूसी उपन्यासों के अन्तिम पल- निष्कर्षों का विश्लेषण करें तो पूरी पटकथा का वही सूत्रधार होना चाहिए परन्तु उसका अब अता-पता ही नहीं है। यह भी दिलचस्प है कि प्रभाकर सेल गोसावी का अंगरक्षक था। गोसावी एक निजी जासूस बताया जाता है। यदि नारकोटिक्स ब्यूरो को आर्यन खान को पकड़ने के ​िलए एक निजी जासूस की मदद लेनी पड़ी है और उसे अपनी जांच में शामिल कर उसकी गतिविधियों के सार्वजनिक होने पर उन्हें बर्दाश्त करना पड़ा है तो इसका मन्तव्य आम जनता के लिए जानना जरूरी है क्योंकि इससे ब्यूरो की विश्वसनीयता जुड़ी हुई है। मगर हैरत की बात है कि अभी तक ब्यूरो की ओर से गोसावी की उसकी जांच में सक्रियता का कोई ब्यौरा नहीं दिया गया है। इन सब घटनाओं के सिलसिले से सामान्य नागरिक भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि दाल में कुछ काला जरूर है जिसकी वजह से ड्रग पार्टी में सिर्फ छह ग्राम गांजे की बरामदगी होने पर इस मामले को ‘तिल से ताड़’ बनाया जा रहा है। इससे पूर्व प्रिया चक्रवर्ती के मामले में भी ब्यूरो की खासी किरकिरी हो चुकी है। किसी भी जांच के मामले में सबसे ऊपर जांच एजेंसी की विश्वसनीयता मायने रखती है और आर्यन के मामले में तो फिरौती जैसी तोहमत सामने आ रही है। आर्यन का मामला अदालत में जमानत के मुद्दे पर ही अटका हुआ है। जमानत देना या न देना अदालत का काम है मगर इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि किसी भी नागरिक की निजी स्वतन्त्रता का यदि एक दिन के लिए भी हनन होता है तो इसे उचित नहीं माना जायेगा।
बेशक यह किसी भी जांच एजेंसी का अधिकार है क्योंकि उसकी कार्रवाई की तसदीक अदालत में होती है। मगर ब्यूरो को उन आरोपों का जवाब भी देना होगा जो इस मामले के प्रमुख गवाह प्रभाकर सेल ने उस पर लगाये हैं। ये आरोप इतने संगीन हैं कि अधिकारी समीर वानखेड़े की पूरी जांच प्रक्रिया पर गहरा सवालिया निशान लगाते हैं। हालांकि वानखेड़े साहब ने अपनी तरफ से निजी तौर पर अदालत में हलफनामा दाखिल करके अपने विरुद्ध षड्यन्त्र रचे जाने व झूठे आरोप लगाये जाने की बात कही है और ब्यूरो की तरफ से भी शपथ पत्र दाखिल करके कहा गया है कि श्री वानखेडे़ पूरे ईमानदार अधिकारी हैं। दूसरी तरफ प्रमुख गवाह प्रभाकर सेल ने मुम्बई पुलिस कमिश्नर के दफ्तर जाकर अपने संरक्षण की गुहार लगाई है। यदि प्रभाकर के आरोपों की तह में जायें तो यह मामला गंभीर भ्रष्टाचार का है जिसकी जांच करने का अधिकार मुम्बई पुलिस के भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते को है जिससे सेल के आरोपों की सच्चाई सामने आ सके। दूसरी तरफ ब्यूरो के सतर्कता विभाग ने सेल के आरोपों की जांच करनी शुरू कर दी है। मगर यह विभागीय जांच होगी जिस पर फिर से सवाल उठ सकते हैं अतः इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच किये जाने की सख्त जरूरत है।

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