तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर?

ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की अमरीकी हमले में मौत के बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हड़कम्प मचा हुआ है।

ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की अमरीकी हमले में मौत के बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हड़कम्प मचा हुआ है। तमाम तरह की आशंकाओं ने जन्म ले ​लिया है और तीसरे विश्व युद्ध की शुरूआत होने का भय सताने लगा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कासिम सुलेमानी की मौत पर जीत के संकेत के तौर पर अमेरिका के राष्ट्रीय झंडे की तस्वीर ट्वीट की है, उधर ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला खाेमैनी ने अमेरिका को जबरदस्त बदले और अंजाम भुगतने की धमकी दी है। 
आखिर ऐसी क्या बात थी कि जनरल कासिम सुलेमानी को अमेरिका ने मिसाइल हमले में मार गिराया। दरअसल जनरल कासिम सुलेमानी का कद ईरान के सत्ता ढांचे में बहुत बड़ा था। ईरान के सबसे शक्तिशाली नेता आयतुल्ला खाेमैनी के बाद ईरान में किसी को दूसरा सबसे पावरफुल व्यक्ति समझा जाता था तो वो थे जनरल कासिम सुलेमानी। वह कुदस फोर्स के प्रमुख थे। यह फोर्स विदेशों में ईरान के हितों के हिसाब से ​किसी का साथ तो ​किसी का विरोध करती है। जब सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के ​खिलाफ विद्रोह हुआ तो उसे दबाने में जनरल सुलेमानी ने पहल की थी। 
इराक में जब इस्लामिक स्टेट मजबूत हुआ तो उसे नेस्तनाबूद करने में सुलेमानी ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अमेरिका और ईरान के रिश्ते में तनाव तो सुलेमानी से पहले से ही था। कई वर्ष तक कासिम सुलेमानी गोपनीय ढंग से अभियानों का नेतृत्व करते रहे लेकिन कुछ वर्ष पहले वो खुलकर सामने आ गए। मीडिया में उनकी चर्चा होने लगी थी, उन पर आर्टिकल प्रकाशित किए जाते थे, उन पर दस्तावेजी फिल्मे और पॉप गीत भी बने। इसके बाद वह ईरान में नायक के रूप में उभरे। ईरान-इराक युद्ध के दौरान भी वह राष्ट्रीय नायक के तौर पर सामने आए और ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्ला खोमैनी के बेहद करीब थे। 
उन्होंने ही इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के मुकाबले कुर्द लड़ाकों और शिया ​मुसलमानों को एकजुट करने का काम किया। हिज्बुल्लाह और हमास के साथ सीरिया  की बशर अल असद सरकार को भी सुलेमानी का समर्थन प्राप्त था। अमेरिका बशर अल असद को सत्ता से हटाना चाहता है। सद्दाम हुसैन के साम्राज्य के पतन के बाद 2005 में इराक की नई सरकार के गठन के बाद से प्रधानमंत्री इब्राहिम अल जाफरी और नूर अल मलिकी के कार्यकाल के दौरान वहां की राजनीति में सुलेमानी का प्रभाव बढ़ता गया। 
अमेरिका ने 25 अक्तूबर, 2007 को कुदस फोर्स को अातंकवादी संगठन घोषित कर दिया था और इस संगठन के साथ किसी भी अमेरिकी के लेनदेन किए जाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिकी प्रतिबंध सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इस्राइल की तरफ से दबाव का परिणाम था। अमेरिका, सऊदी अरब और बहरीन ने ईरान की रैवुलेशनरी गार्ड्स और उसकी कुदस फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी को आतंकवादी घोषित कर दिया था। अमेरिका सुलेमानी और उनकी कुदस फोर्स को सैकड़ों अमेरिकी और गठबंधन सहयोगियों के सदस्यों की मौत का जिम्मेदार मानता था। 
अब सवाल यह है कि यद्यपि अमेरिका, सऊदी अरब और इस्राइल कासिम सुलेमानी को आतंकवादी करार देते थे लेकिन ईरान के लोगों के लिए कासिम एक कट्टर देशभक्त थे। ईरान की नजर में अमेरिकी हमला ‘अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद’ है। कासिम सुलेमानी की मौत के बाद ईरान के लाखों लोग अमेरिका का विरोध करने सड़कों पर उतर आए। कासिम सुलेमानी की पहचान एक वीर के रूप में थी और खोमैनी ने उन्हें अमर शहीद का दर्जा दिया है। सुलेमानी ने ही यमन से लेकर सीरिया तक और इराक से लेकर अन्य देशों तक संबंधों का एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया था जिसके चलते इन देशों में ईरान का दबदबा कायम हुआ था। 
कासिम सुलेमानी की मौत के बाद पहले से ही अस्थिर मध्य-पूर्व में और उथल-पुथल मच जाएगी। ईरान और अमेरिका के बीच संकट और गहरा गया है। अमेरिका की कार्रवाई से समूचे क्षेत्र में स्थिरता और शांति की कोशिशों को एक बड़ा झटका लगा है। अब हालात बहुत नाजुक हैं। रूस और कुछ अन्य देशों ने ईरान के समर्थन में बयान दिए हैं। आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर नई मोर्चाबंदी सामने आ सकती है। अपने देश में भी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सवालों से जूझना पड़ सकता है। मध्य-पूर्व में बड़ी उथल-पुथल का वैश्विक स्तर पर व्यापक आर्थिक प्रभाव पड़ेगा। तेल की कीमतें चार फीसदी तक बढ़ चुकी हैं। 
ईरान और अमेरिका में युद्ध की आशंका है और खतरा इस बात का है ​कि कहीं यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में न बदल जाए। तनाव की स्थिति में भारतीय चिंताएं भी बढ़ चुकी हैं। युद्ध हुआ तो भारत में तेल की सप्लाई बाधित होगी। तेल की कीमतों में दस डालर प्रति बैरल का इजाफा हुआ तो भारत की ग्रोथ प्रतिशत में भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अमेरिका-ईरान तनाव को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर पहल करने की जरूरत है अन्यथा इसकी तपिश पूरी दुनिया झेलेगी। शांति के नाम पर अमेरिका ने इराक, अफगानिस्तान, लीबिया और अन्य देशों में विध्वंस का जो खेल खेला है, उसके बाद इन देशों में आज तक शांति स्थापित नहीं हुई है। दुनिया को इससे सबक लेना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eleven − nine =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।