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बाबा का फरलो

दो महीने की अवधि में ही डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा राम रहीम की पैरोल पर रिहाई पर सवाल उठ रहे हैं। लोकतंत्र में सवाल उठने भी चाहिएं। देश में यह सम्भवतः यह पहला मामला है कि संगीन मामलों में दोषी तथा सख्त सजा काट रहे किसी अपराधी को इतनी बार और इतनी कम अवधि में पैरोल पर रिहाई दर रिहाई मिल रही है। जबकि आम आदमी को हफ्ते भर की पैरोल की अवधि भी बहुत सीमित होती है। ऐसे कई तथाकथित संत और लोग हैं जिन्हें आज तक पैरोल नहीं दी गई जबकि वे अपेक्षाकृत नरम धाराओं में जेलों की सलाखों के पीछे बंद हैं। जिस देश में स्टेन स्वामी जैसे लोग जमानत की इंतजार में जेल में दम तोड़ देते हैं वहां गुरमीत राम रहीम पर इतनी मेहरबानी क्यों?

यह सही है कि पैरोल का प्रावधान है, सब कुछ नियमानुसार बताया जा रहा है लेकिन सवाल तो उठ ही रहे हैं-

-क्या आनलाइन सहयोग के लिए पैरोल मिला?

-क्या दीवाली पर म्यूजिकल वीडियो बनाने का पैरोल मिला था?

-क्या तलवार से केक काटकर अपनी आजादी का जश्न मनाने के​ लिए पैरोल मिला, जबकि कानून हथियार अधिनियम के तहत हथियारों का सार्वजनिक प्रदर्शन यानी तलवार से केक काटना भी प्रतिबंधित है?

-चुनावों के दिनों में राम रहीम को फरलो क्यों दी जाती है?

राम रहीम को वर्ष 2021 में तीन बार और 2022 में भी तीन बार पैरोल दी गई। राम रहीम को वर्ष 2022 में पहली बार फरलो तब मिला जब पंजाब का चुनाव था। इसके बाद जून में हरियाणा जेल विभाग ने 30 दिन के लिए पैरोल दिया। तब हरियाणा में निकाय चुनाव थे। फिर तीन नवम्बर को हरियाणा के आदमपुर विधानसभा का उपचुनाव होना था। तब भी राम रहीम बाहर था। हैरानी तब होती है जब राम रहीम के वर्चुअल सत्संग में एक महिला महापौर उसे पिता जी कहकर बुलाती है और आशीर्वाद मांगती है। सत्संग में राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल होते हैं और राम रहीम की जमकर तारीफ करते हैं। जबकि सबको मालूम है कि वह सिर से लेकर पांव तक दागदार है। शासन व्यवस्था के पैरोकार भूल जाते हैं कि इसी राम रहीम को पंचकूला में विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी तो उस खूबसूरत शहर का एक बड़ा हिस्सा आगजनी से तहस-नहस कर दिया गया था और उस हिंसा में कई लोग मारे गए थे। जिस अच्छे व्यवहार की बदौलत गुरमीत राम रहीम को लगातार फरलो दी जा रही है उस अच्छे व्यवहार की असलियत सभी जानते हैं। युवतियों से बलात्कार और पत्रकार छत्रपति की हत्या से राम रहीम के हाथ खून से सने हैं। राम रहीम जेल सेे बाहर आकर अपने अनुयाइयों से कहता है ‘‘हम गुरु थे, हैं और रहेंगे।’’ इससे यह साफ है कि राम रहीम जेल प्रशासन का भी गुरु है। गुरमीत राम रहीम के लाखों भक्त हैं जिनमें से अधिकतर गरीब, पिछड़ी जातियों के लोग हैं। राम रहीम अपने डेरे का बहरूपिया नेता है और वह बड़ी आसानी से एक धर्मगुरु से भड़कीले अभिनेता का रूप धारण कर लेता है। श्रद्धालु उन्हें चमकीला बाबा भी कहते हैं और यह बाबा खुद बनाई गई फिल्मों का मुख्य अभिनेता भी है और भक्तों की भरमार वाले कन्सर्ट के मुख्य गायक भी हैं। लव चार्जर नाम की उसकी पहली म्यूजिक एल्बम की लाखों प्रतियां धड़ाधड़ बिकी थीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि राम रहीम के सामाजिक सरोकार भी श्रद्धालुओं को प्रभावित करते रहे हैं। वो चैरिटी चलाते हैं, रक्तदान, नेत्रदान, अंगदान और स्वच्छता का अभियान चलाते रहे हैं। वो फिल्म स्टार हैं, रॉक स्टार हैं, राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं और श्रद्धालुुओं की नजर में ‘सच्चे धर्मगुरु’ हैं। 

इसी प्रक्रिया में श्रद्धालु बड़े सपने देखने को प्रेरित होते हैं। सजा होने के बावजूद उनके श्रद्धालुओं में कोई कमी नहीं आई। इसके पीछे देश की सामाजिक विडम्बनाएं जिम्मेदार हैं। गरीब और पिछड़े लोग उनके डेरों में जाकर इंसान उपनाम पाकर खुद को सम्मानजनक पाते हैं, जिन्हें खुद कभी समाज से सम्मान या प्यार नहीं मिला। आम जनता का सवाल यही है कि आखिर इस देश में बलात्कारियों और हत्यारों के प्रति नरम रवैया क्यों अपनाया जा रहा है। बिलकिस बानो बलात्कार और दो साल की बच्ची की हत्या करने वाले 14 लोगों को रिहा क्यों किया गया। जेल से छूटे तो उनकी आरती उतार माला क्यों पहनाई गई। क्यों लोग कठुआ में 8 वर्ष की बच्ची से बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में तिरंगा रैली निकालते हैं। अपराधियों को बचाने के लिए कभी धर्म का इस्तेमाल तो कभी राष्ट्रवाद का इस्तेमाल किया जाता है। क्यों सभी दलों के नेता राम रहीम के सामने हाथ जोड़कर आशीर्वाद मांगते हैं। सवाल पूछना जनता का हक है।