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बाबा का धर्मनिरपेक्ष ‘बुलडोजर’

नोएडा का शातिर ‘गालीबाज’ दबंग कथित नेता श्रीकान्त त्यागी को आखिरकार पुलिस ने गिरफ्तार कर ही लिया है मगर इससे वह हकीकत सामने आयी है जिसका बयान लगभग डेढ़ दशक पहले ‘वोरा समिति’ ने किया था

नोएडा का शातिर ‘गालीबाज’ दबंग कथित नेता श्रीकान्त त्यागी को आखिरकार पुलिस ने गिरफ्तार कर ही लिया है मगर इससे वह  हकीकत सामने आयी है जिसका बयान लगभग डेढ़ दशक पहले ‘वोरा समिति’ ने किया था कि देश में ‘पुलिस, अपराधी माफिया व राजनीतिज्ञों’ का गठजोड़ कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। श्रीकान्त त्यागी के पूर्व भाजपा व बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य से (वर्तमान में समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य) सम्बन्धों को लेकर पुलिस ने जो खुलासा किया है उससे साफ पता चलता है कि बीते दशकों में उत्तर प्रदेश में जातिवादी व समुदायवादी राजनैतिक पार्टियों के शासन के दौरान पूरी व्यवस्था के कुएं में ही भांग घोल दी गई थी जिसे पी-पी कर हेकड़ीबाज और गुंडई छवि रखने वाले लोग राजनीति में अपने भय का इस्तेमाल करके सत्ता का सुख बांटने के ‘कायदे’ लिख रहे थे। लोकतन्त्र में डर या भय समूचे समाज की संवेदनाओं को इस प्रकार निगल जाता है कि आम नागरिक को किसी कबायली दौर में जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। नोएडा की संभ्रान्त कही जाने वाली ओमेक्स सोसायटी के लोग पिछले कई सालों से जिस प्रकार श्रीकान्त त्यागी के सत्ताधारी लोगों के साथ रसूख के बूते पर खड़े किये गये आतंक के साये में जी रहे थे, वह इसी का सबूत है। मगर पिछले छह साल से राज्य के मुख्यमन्त्री पद पर एक ‘औघड़ संन्यासी योगी आदित्यनाथ’ के बैठ जाने के बाद इस प्रदेश का सामाजिक व राजनैतिक मौसम बदला है और इस तरह बदला है कि हर अपराधी अब अपनी खैर मांगता नजर आ रहा है। 
‘बुलडोजर बाबा’ के नाम से लोकप्रिय मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के प्रशासनिक ‘माडल’ का अब विभिन्न राज्य अध्ययन कर रहे हैं और उसे अपनाना चाहते हैं क्योंकि इस माडल का दिशा निदेशक सिद्धान्त केवल न्याय या इंसाफ है और इसकी राह में जाति, धर्म, समुदाय का वोट बैंक कोई मायने नहीं रखता। राजनीति में जिस तरह का माहौल उत्तर प्रदेश में बना दिया गया था उसे तोड़ने का साहस कोई ‘योगी’ ही कर सकता था क्योंकि उसके लिए समस्त जनता ही उसका परिवार होती है। हर गरीब-अमीर में वह ‘ब्रह्म’ की मूरत देखता है। अपने-पराये का भेद उसके लिए अक्षम्य होता है। वह ‘सबका’ और ‘सब’ उसके होते हैं। भारतीय संस्कृति में ‘राज धर्म’ को निभाने को भी ‘योग’ कहा गया है जिसे ‘राजयोग’ (जन्मपत्री वाला राजयोग नहीं) कहते हैं। समाज को न्यायपूर्ण रास्ता दिखाने का कार्य राजयोगी करता है परन्तु लोकतन्त्र में यह कार्य बहुत दुष्कर भी होता है क्योंकि कुछ लोगों राजयोगी के कार्यों को मजहब या वोटबैंक का चश्मा लगा कर देखना शुरू कर देते हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने ओमेक्स सोसायटी में श्रीकान्त त्यागी के अवैध निर्माण व अतिक्रमण पर बुलडोजर चलवा कर सिद्ध कर दिया है कि बुलडोजर केवल अपराधी या अपराध को ही पहचानता है उसके मजहब को नहीं। श्रीकान्त त्यागी स्वयं को भाजपा का नेता बता कर लोगों पर अपना रुआब गाढ़ता था और पुलिस से बनाये गये पुराने रसूख के आधार पर अपनी जीवन-शैली से लोगो को धमकाता रहता था। मगर नारी शक्ति के आगे उसकी एक न चली और ओमेक्स सोसायटी की एक महिला ने आगे बढ़ कर उसे चुनौती देकर नागरिकों के वाजिब अधिकारों के लिए संघर्ष किया। महिला के साथ उसका व्यवहार किसी सड़क छाप गुंडे की तरह का ही था जिसके जगजाहिर होने पर पुलिस को उसके खिलाफ कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़ा। मगर सन्तोष की बात यह है कि जब यह घटना मुख्यमन्त्री के संज्ञान में आयी तो उन्होंने पूरे उत्तर प्रदेश शासन को एक टांग पर खड़ा कर दिया और हुक्म जारी कर दिया कि जो कानून कहता है वह किया जाना चाहिए और अपराधी को न्यायप्रणाली के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। लेकिन पूरे मामले में सोसायटी की निवासी कल्याण संस्था (आरडब्ल्यूए) ने भी अपने कर्त्तव्य को सही ढंग से नहीं निभाया है और कहीं न कहीं श्रीकान्त त्यागी की दबंगई के आगे पूर्व में  घुटने टेकने का काम किया है। ‘आरडब्ल्यूए’ के हर सदस्य के अधिकार बराबर होते हैं और सोसायटी की पूरी सम्पत्ति पर सभी निवासियों का बराबर का एक जैसा अधिकार होता है। श्रीकान्त त्यागी के खिलाफ यदि शुरू में ही गांधीवादी रास्ते से विरोध प्रदर्शन करके उसे रास्ते पर लाने की कोशिश की जाती और अधिकारियों के साथ उसकी साठगांठ का पर्दाफाश किया जाता तो महिला को अपमानित होने से बचाया जा सकता था। परन्तु अब उन महिला व उनके परिवार को पूरी सुरक्षा दिये जाने की सख्त जरूरत है और यह काम सरकार का ही है कि वह उन्हें मजबूत साये में रखे। इसके साथ ही श्रीकान्त त्यागी पर फौजदारी कानून के तहत जो दफाएं लगाई गई हैं उन्हें और पुख्ता किया जाये क्योंकि नोएडा में ‘आरडब्ल्यूए’ का धंधा भी अपराधिक तत्वों के गिरोह में फंसता जा रहा है और राजनैतिक प्रभाव रखने वाले लोग इन पर काबिज होने के प्रयास में रहते हैं। इसकी रोकथाम स्वयं निवासी ही बेखौफ होकर कर सकते हैं और आपराधिक तत्वों की निशानदेही आसानी से कर सकते हैं। सोचिये किस तरह समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने श्रीकान्त त्यागी को विधायक का ‘स्टिकर’ दिलाया जिसे वह अपनी कार पर लगा कर शान से घूमता था और यह सब सोसायटी के निवासियों की नजरों के सामने ही हो रहा था। आरडब्ल्यूए क्या इस बारे में पुलिस व प्रशासन से पूछताछ नहीं कर सकती थी?

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