‘बापू तुम्हें प्रणाम’ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

‘बापू तुम्हें प्रणाम’

आज 2 अक्तूबर है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस। यह दिन केवल परंपरा निभाने का नहीं है बल्कि राष्ट्रीय आत्मचिन्तन का है कि इस देश को बापू ने जो रास्ता दिखाया उस पर हम किस तरह आगे बढे़ हैं।

आज 2 अक्तूबर है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस। यह दिन केवल परंपरा निभाने का नहीं है बल्कि राष्ट्रीय आत्मचिन्तन का है कि इस देश को बापू ने जो रास्ता दिखाया उस पर हम किस तरह आगे बढे़ हैं। यह हृदय विदारक है कि जिस बाल्मीकि समाज के उत्थान को राष्ट्रपिता ने नवीन भारत के विकास का पैमाना बनाया उसी समाज की एक युवती की मृत्यु रोंगटे खड़े कर देने वाली बर्बर परिस्थितियों में हुई। इसका अर्थ कुछ चिन्तक यह भी निकाल सकते हैं कि 1932 में हम जहां खड़े थे आज भी वहीं हैं। वर्ष 1932 इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर और महात्मा गांधी के बीच दलितों की हैसियत को लेकर ऐतिहासिक समझौता हुआ था जिसे ‘पूना पैक्ट’ के नाम से जाना जाता है।  इस समझौते में यह प्रावधान था कि दलित या हरिजन हिन्दू समाज का ही अभिन्न अंग है और उनके साथ होने वाला सामाजिक दुर्व्यवहार हिन्दू समाज के माथे पर लगा हुआ कलंक है जिसे समाप्त करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है। इस समझौते में दलितों के लिए पृथक चुनाव परिसीमा का भी निषेध किया गया था। महात्मा गांधी ने सबसे पहले यह महसूस किया कि भारत का हिन्दू समाज मानवता के सिद्धांतों में परिलक्षित किसी अन्य मानव के साथ केवल उसकी जाति के कारण जानवरों जैसा व्यवहार नहीं कर सकता। इसके साथ ही गांधी के समक्ष भारत की उस एकता का भी सवाल था जो इसके लोगों के ही भाईचारे और उनके आपसी मेलजोल पर निर्भर करती थी। अतः पाकिस्तान निर्माण का विरोध भी गांधी की समग्र मानवीय दृष्टि में भारतीयता के मूल से उपजा हुआ विचार था।  इस मामले में गांधी व्यक्तिगत प्रतिशोध के पूरी तरह खिलाफ थे और समग्रता में प्रतिशोध पैदा करने वाली परिस्थितियों को समाप्त करना चाहते थे। अतः उत्तर प्रदेश के हाथरस शहर में एक बाल्मीकि युवती के साथ कथित ऊंची जाति के लोगों ने जिस प्रकार की पाशविकता की है उसका इलाज बदला नहीं बल्कि जड़ से समूची परिस्थितियों में एेसा बदलाव लाना है जिससे एेसा जघन्य अपराध करने वाले व्यक्ति को जाति से नहीं जानवरों की नस्ल से पहचाना जाये। यह बदलाव बापू लाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन के समानान्तर ही ‘अस्पृश्यता’ अर्थात छुआछूत  समाप्त करने का आन्दोलन चलाया। इसकी प्रेरणा महात्मा गांधी को 1893 में अपने दक्षिण अफ्रीका के प्रवास के दौरान ही तब मिल गई थी जब एक रेलगाड़ी में डरबन से पइटोरिया जाते समय उन्हें प्रथम दर्जे का वैध टिकट होने के बावजूद इसलिए उतार दिया गया था कि उनका रंग गोरा नहीं बल्कि अश्वेत था। शरीर के रंग के आधार पर मानव-मानव में भेदभाव करना और एक-दूसरे को नीचा समझना ‘बैरिस्टर’ गांधी के गले नहीं उतरा और उन्होंने तब फैसला किया कि व्यवस्था बने इस नियम को बदलने के लिए संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। 
वैध बना दी गई इस सामाजिक असामनता को जड़ से उखाड़ना गांधी को इसलिए जरूरी लगा क्योंकि तब अश्वेत लोगों ने इसे ही अपना भाग्य समझ लिया था। अतः भारत में जब बापू ने स्वतन्त्रता आन्दोलन का बिगुल बजाया तो उनके सामने भारत में बिखरी गरीबी ही एकमात्र कारण नहीं था बल्कि भारतीयों में जमा हुआ अंग्रेजों के प्रति ‘दास भाव’ भी गंभीर मसला था। इस दास भाव को भारतीयों के मन से निकालना भी गांधी के अहिंसक आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य था और इसी से असहयोग आंदोलन का जन्म भी हुआ जिससे अंग्रेजों को मालूम हो सके कि वे इस मुल्क के मालिक नहीं हैं बल्कि शासन करने का अधिकार उन्होंने भारतीयों के हक पर डाका डाल कर उनके साथ धोखा करके प्राप्त किया है। ठीक यही स्थिति हिन्दू समाज में दलितों को लेकर आज तक बनी हुई है।
 समाज का एक वर्ग अभी तक यह मानता चला आ रहा है कि जाति-बिरादरी की ऊंच-नीच इस देश की वैध परिपाठी और परंपरा है जबकि स्वतन्त्र भारत में संविधान अपनाने के साथ ही यह शपथ उठा ली गई थी कि जातिविहीन व समता मूलक समाज की स्थापना नवीन भारत का दर्शन होगा। इसके लिए नागरिकों में वैज्ञानिक सोच तैयार करने के लिए सरकारों को हिदायत दी गई और लिखा गया कि सामाजिक गैर बराबरी दूर करना संवैधानिक लक्ष्य होगा, किन्तु आजादी के 73 साल बाद भी अगर हम समाज की गन्दगी दूर करने वाले समाज के लोगों के साथ साफ-सुथरा व्यवहार नहीं कर सकते हैं तो किस मुंह से स्वयं को सभ्य कह सकते हैं। बाबा साहेब ने सभी वर्गों के लोगों को एक वोट का अधिकार देकर तय कर दिया था कि सत्ता में सबकी भागीदारी एक समान होगी। निश्चित रूप से यह कार्य सत्ता में बैठे लोगों का ही है कि वे देखें कि किसी की ‘अमानत’ में कोई दूसरा ‘खयानत’ तो नहीं कर रहा है, क्योंकि लोकतन्त्र पांच साल के लिए सिर्फ सेवादारों का चयन करता है मिल्कियत नहीं बांटता।  गांधी का यही सिद्धान्त आजादी के बाद से भारत की दिशा तय करता रहा है। अतः उनके जन्म दिवस पर यही सबसे बड़ी प्रेरणा होगी कि हम केवल ‘इंसान’ बनें।  बापू को प्रणाम करते समय यही भाव हर भारतीय के मन में होना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two + five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।