बीसीसीआई के नए दादा - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

बीसीसीआई के नए दादा

सौरव गांगुली ने बीसीसीआई का अध्यक्ष पद सम्भाल लिया है। साथ ही उनकी टीम ने भी कामकाज सम्भाल लिया है। क्रिकेट की पावरफुल लॉबी ने अपने-अपने उम्मीदवारों को अध्यक्ष बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी।

सौरव गांगुली ने बीसीसीआई का अध्यक्ष पद सम्भाल लिया है। साथ ही उनकी टीम ने भी कामकाज सम्भाल लिया है। क्रिकेट की पावरफुल लॉबी ने अपने-अपने उम्मीदवारों को अध्यक्ष बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी। अनुराग ठाकुर और श्रीनिवासन गुट आमने-सामने थे लेकिन अंतिम मुहर सौरव गांगुली के नाम पर लगी। दादा सौरव गांगुली अब बीसीसीआई के नए दादा बन गए हैं। गांगुली का कार्यकाल बहुत कम यानी दस माह का ही होगा। सौरव गांगुली ने अपनी आक्रामक कप्तानी के साथ भारतीय क्रिकेट में नए युग की शुरूआत की थी। 
वह शीर्ष पद पर बैठने वाले दूसरे भारतीय कप्तान होंगे। बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने वाले एकमात्र अन्य भारतीय कप्तान विजयन ग्राम के महाराज कुमार थे, जिन्होंने 1936 में इंग्लैंड के दौरे के दौरान 3 टैस्ट मैचों में भारतीय टीम का नेतृत्व किया था। वह 1954 में बीसीसीआई के अध्यक्ष बने थे। सौरव गांगुली के रूप में 65 वर्ष बाद बीसीसीआई को क्रिकेट कप्तान मिला है। किसी पूर्व खिलाड़ी का बीसीसीआई का अध्यक्ष पद सम्भालना खिलाड़ियों और क्रिकेट प्रेमियों के लिए खुशी की बात है। पूर्व क्रिकेटर होने के नाते मैं स्वयं भी इस नियुक्ति से खुश हूं। बीसीसीआई आज दुनिया का सबसे धनी और बड़ा संगठन है। यह अपने आप में एक पावर हाऊस है। 
पूर्व में हमने देखा कि बीसीसीआई पर प्रभावशाली व्यक्तियों और राजनीतिज्ञों का कब्जा रहा। उन्होंने न केवल इस संगठन के जरिये अपनी प्रतिष्ठा का विस्तार किया बल्कि अपनी इस प्रति​ष्ठा का इस्तेमाल अपनी सियासी छवि चमकाने के लिए किया। दाग तो बीसीसीआई पर भी कम नहीं लगे। भाई-भतीजावाद, पारदर्शिता की कमी, पैसों की अंधी लूट, मैच फिक्सिंग और बीसीसीआई से लेकर राज्य क्रिकेट संघों में घपले सब कुछ हआ है। रातोंरात अमीर बनने के सपनों ने कई ​खिलाड़ियों पर ऐसे दाग लगाए कि उनका करियर ही तबाह हो गया। मैंने जितने भी वर्ष क्रिकेट खेली, तब इस खेल में पैसे का बोलबाला नहीं था। हमने इस जेंटलमैन गेम को जेंटलमैन की तरह खेला। जब से क्रिकेट का क्लब संस्करण सामने आया तब से पूरा परिदृश्य ही बदल गया। अब ट्वेंटी-20 के लिए भी खिलाड़ी करोड़ों में ​बिकते हैं। 
जिस खेल में भी पैसों की चमक आ जाती है, उसमें विकृतियां जन्म लेने लगती हैं। सियासी लोगों और धन का संबंध बहुत खतरनाक हो जाता है। यही कुछ भारतीय क्रिकेट में भी हुआ। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित जस्टिस लोढा समिति की सिफारिशें आने के बाद बहुत बदलाव देखे गए। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। मुझे इसके इतिहास में जाने की जरूरत नहीं क्योंकि क्रिकेट प्रेमी समूचे घटनाक्रम के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं।अब अहम सवाल यह है कि क्या सौरव गांगुली भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड पर लगे दाग धो सकेंगे? चाहे लार्ड्स की बालकनी में टी-शर्ट उतारना हो या मुख्य कोच रहे ग्रेग चैपल के खिलाफ मोर्चा खोलना, उनकी आक्रामकता में कोई कमी नहीं आई। 
सौरव गांगुली ने समय-समय पर सही फैसले लिए और यही कारण है कि मौजूदा क्रिकेट खिलाड़ी और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी उनकी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को आशाओं भरी नजरों से देख रहे हैं। जब काफी समय तक टीम इंडिया की हालत खराब रही तब उन्होंने ही भारतीय टीम को जीतना ही नहीं बल्कि विदेश में भी लड़ना सिखाया। बीसीसीआई की हालत भी पुरानी टीम इंडिया की तरह हो चुकी है। जगमोहन डालमिया, शरद पवार और एन. श्रीनिवासन ने भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड का रुतबा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाया था, अब वह रुतबा कायम नहीं रहा। बीसीसीआई के प्रशासक बने लोगों में भी हितों का टकराव कम नहीं था। यद्यपि अब पदों से हटाए जाने वाले लोग कह रहे हैं कि हालां​िक उनमें कई मामलों में मतभेद रहे ले​िकन इसमें उनका व्यक्तिगत कुछ भी नहीं था।
सवाल यह भी है कि क्या बीसीसीआई के नए अध्यक्ष अपने ही टूर्नामैंट आईपीएल में कथित सट्टेबाजी पर रोक और  बीसीसीआई को आईसीसी से मिलने वाला अपना हिस्सा बढ़वा पाएंगे? सबसे बड़ा सवाल तो भाई-भतीजावाद का है। भाई-भतीजावाद से भरी पड़ी बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघों पर क्या गांगुली लगाम लगा पाएंगे? गांगुली को घरेलू क्रिकेट खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाओं और पैसे पर भी ध्यान देना होगा। उन्हें भविष्य के भारत के क्रिकेट कार्यक्रम भी तय होने होंगे। अगर क्रिकेट में भ्रष्टाचार नहीं फैलता तो शायद सौरव गांगुली इस पद पर कभी आते ही नहीं। उन्हें आईपीएल को भी साफ-सुथरा बनाना होगा। देखना यह भी होगा कि नई टीम उनके साथ कैसे काम करती है। कुछ समय पहले ही कर्नाटक प्रीमियर लीग और तमिलनाडु प्रीमियर लीग में भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। 
गांगुली को दो-तीन महीने तो डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज में लगाने पड़ेंगे। लोढा समिति की सिफारिशों में भी कहा गया था कि बीसीसीआई में क्रिकेटरों का बोलबाला होना चाहिए। सौरव गांगुली अपने सामने मुंह बाए खड़ी चुनौतियों से कैसे निपटेंगे यह तो समय ही बताएगा। उम्मीद है कि वह क्रिकेट को साफ-सुथरा और ईमानदार खेल बनाने के लिए अच्छी एवं ठोस शुरूआत कर सकते हैं। दादा के नाम से मशहूर गांगुली कितनी दादागिरी दिखा पाते हैं, इस पर हम सबकी नजरें लगी रहेंगी। उन्हें दस माह के कार्यकाल में बहुत तेजी से फैसले लेने होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eight − seven =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।