क्या भारतीय टेलीकॉम सैक्टर अब अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है? इस समय टेलीकॉम सैक्टर की जो हालत बनी है, उससे केवल दो कम्पनियों के ही बाजार में बचे रहने की आशंका है। बाजार का विश्लेषण करने वाले भी यह मानते हैं कि टेलीकॉम सैक्टर एकाधिकार की तरफ बढ़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) के बकाये से संबंधित आदेश पर अमल नहीं होने को लेकर शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाने के बाद दूसरंचार कम्पनियों की हालत कमजोर हो गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह टेलीकॉम सैक्टर के लिए बहुत बुरी खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने 1.47 लाख करोड़ का बकाया तुरन्त चुकाने के आदेश दिए हैं। अभी दूरसंचार क्षेत्र में सरकारी कम्पनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल के अलावा तीन निजी कम्पनियां भारती एयरटेल, वोडाफोन, आईडिया और रिलायंस जियो है।
आर्थिक रूप से कमजोर कम्पनियों के पास अब उपाय की कम ही सम्भावना है लेकिन यदि सरकार इसे दीर्घकालिक समस्या मानें तो वह नीति में बदलाव कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर अमल नहीं होने पर कड़ा रुख अपनाया और दूरसंचार विभाग के डेस्क अधिकारी के आदेश पर नाराजगी व्यक्त की। इस अधिकारी ने समेकित सकल राजस्व के मामले में न्यायालय के फैसले के प्रभाव पर रोक लगा दी थी। इस अधिकारी ने अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और अन्य सांविधानिक प्राधिकारियों को पत्र लिखा कि वे दूरसंचार कम्पनियों और अन्य पर इस रकम के भुगतान के लिए दबाव नहीं डालें और यह सुनिश्ति करें कि उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो।
हैरानी की बात तो यह है कि कोई डेस्क अधिकारी इस तरह का आदेश कैसे दे सकता है। अगर सरकार इन कम्पनियों को राहत देती थी तो उसे नीति बनानी चाहिए थी। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करना उचित भी नहीं है। सरकार अगर कम्पनियों से ज्यादा टैक्स वसूलना चाहती है तो क्या इस वजह से टेलीकॉम उद्योग को नुक्सान हो रहा है।
समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) की कई वर्षों से एक ही व्याख्या चली आ रही है। नई बात यह सामने आई कि ये राजस्व भी उन्हें देना होगा। जिन कम्पनियों ने स्पैक्ट्रम की बोलियां लगाई थीं, उनको उम्मीद थी कि उन्हें राजस्व नहीं भरना पड़ेगा। इतना बड़ा बोझ डालने से एक बड़ा संकट कम्पनियों के आगे खड़ा हो गया है। टेलीकॉम कम्पनियों का कहना था कि एजीआर की गणना सिर्फ टेलीफोन सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए थी।
दूरसंचार विभाग का कहना है कि एजीआर की गणना किसी टेलीकॉम कम्पनी को होने वाली सम्पूर्ण आय या राजस्व के आधार पर होनी चाहिए। जिसमें डिपोजिट ब्याज और सम्पत्ति की बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या सरकारी की नीति ही गलत है। सुप्रीम कोर्ट तो नीति के मुताबिक ही आदेश देगा। पिछले कुछ वर्षों से टेेलीकॉम सैक्टर में अभूतपूर्व बदलाव हुआ है।
ड्राई के आंकड़ों पर जाएं तो जहां पहले कम्पनियों की 80 प्रतिशत कमाई कालिंग के जरिये होती थी वहीं अब डाटा मुख्य आधार बन गया है। बाजार में नई कम्पनियों के आने के बाद हालात खराब हुए। प्रतिस्पर्धा का मैदान सबके लिए एक जैसा नहीं रहा। अनलिमिटेड कालिंग सुविधा और डाटा उपलब्ध कराने की स्कीमों ने गला काट स्पर्धा पैदा कर दी। रिलायंस कम्युनिकेशंस और एयरसेल जिस तरह से रातोंरात बंद हो गई, उससे वितरकों को काफी नुक्सान हुआ। हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए।
वोडाफोन और आइडिया का विलय भी रणनीतिक नहीं था बल्कि मजबूरी से लिया गया फैसला था। बाजार में प्राइस वार के चलते इन दोनों कम्पनियों की हालत बिगड़ गई, बल्कि बाजार की अग्रणी एयरटेल की बैलेंसशीट भी बिगड़ गई। वोडोफोन और आइडिया दोनों ने बाजार में साझा लड़ाई का फैसला किया था।
निवेश संबंधी विषयों पर शोध करने वाली कम्पनी सैनफोर्ड सी बर्नस्टीन की विश्लेषक क्रिस लेन ने दो वर्ष पहले कहा था कि भारत के टेलीकॉम बाजार में जो हालत है उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कई कम्पनिया बंद हो जाएंगी या फिर विलय करेंगी। आज यही कुछ हो रहा है। बाजार में आई अस्थिरता को रोकने के लिए सरकार ने भी कोई प्रयास नहीं किया।
टेलीकॉम कम्पनियां ध्वस्त हुईं तो बाजार में हाहाकार मचेगा ही। अगर ऐसा हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुक्सान पहुंचेगा। अब नजरें सरकार की तरफ हैं कि वह इन्हें बचाने के लिए क्या नीतिगत परिवर्तन करती है। कम्पनियों को राहत की दरकार है।