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ब्लिंकन की सफल भारत यात्रा

अमेरिकी विदेश मन्त्री श्री अंटोनी ब्लिंकन ने अपने दो दिवसीय भारत दौरे में सर्वाधिक जोर अफगानिस्तान में कानून सम्मत राज कायम करने और हिन्द महासागर क्षेत्र में खुला व शान्तिपूर्ण माहौल बनाने पर दिया है।

अमेरिकी विदेश मन्त्री श्री अंटोनी ब्लिंकन ने अपने दो दिवसीय भारत दौरे में सर्वाधिक जोर अफगानिस्तान में कानून सम्मत राज  कायम करने और हिन्द महासागर क्षेत्र में खुला व शान्तिपूर्ण माहौल बनाने पर दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत की मंशा भी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सौहार्द व सहयोग का माहौल बनाने की है जिससे अधिकाधिक क्षेत्रीय सहयोग में पूरे इलाके का विकास हो सके। जहां तक अफगानिस्तान का प्रश्न है तो भारत की स्वतन्त्रता बाद से ही यह नीति रही है कि इस देश का विकास आधुनिकम रूप में हो और यह अपने आय स्रोतों के बूते पर तरक्की की नई सीढि़यां चढ़ता जाये। इसके लिए भारत की तरफ से सदा सहानुभूति  इस प्रकार रही कि इसके आधारभूत ढांचागत विकास में भारत ने सबसे ज्यादा योगदान किया जिससे पड़ोसी पाकिस्तान को चिढ़ भी मचती रही परन्तु अब अफागनिस्तान से अमेरिका व मित्र देशों की फौजों के निकल जाने से जिस तरह स्थानीय तालिबान शासन पर कब्जा करना चाहते हैं उसमें अमेरिका को प्रमुख भूमिका निभानी होगी और तय करना होगा कि इस देश में उसके जाने के बाद अराजकता का राज कायम न हो सके और देश के संविधान के अनुसार राज-काज चले। 
हमें यह ध्यान रखना होगा कि पिछले नब्बे के दशक में अफगानिस्तान  से सोवियत संघ का दबदबा खत्म करने के लिए स्वयं अमेरिका की तरफ से तालिबान को शह दी गई थी। मगर बाद में इनके भस्मासुर हो जाने पर अमेरिका को इनके खिलाफ खुले युद्ध की घोषणा करनी पड़ी। एक समय ऐसा भी आया था जब अफगानिस्तान में तालिबान ‘मुल्ला उमर’ की सरकार काबिज हो गई थी जिसे अकेले पाकिस्तान ने ही मान्यता प्रदान की थी। अतः बहुत साफ है कि पाकिस्तान का समर्थन तालिबानों को मिलता रहा है।  मगर यह भी कम हैरत की बात नहीं है कि इन्हीं तालिबानों के इस्लामी आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाया था और इसके लिए उसे करोड़ों डालर की मदद भी दी थी। मगर इस मदद का उपयोग उल्टा हुआ और पाकिस्तान भी आतंकवाद की जर-खेज जमीन में तब्दील हो गया। अब देखना केवल यह है कि अमेरिका न केवल अफगानिस्तान में अपनी भूमिका तालिबानों को सबक सिखाने की बनाये बल्कि पाकिस्तान को भी आगाह करे कि वह आतंकवाद को अपनी जमीन में किसी कीमत पर फलने-फूलने न दे। 
दूसरी तरफ भारत की प्रमुख भूमिका हिन्द महासागर क्षेत्र में है जिसमें चीन लगातार सैन्य खेमेबन्दी करने से बाज नहीं आ रहा है। यह क्षेत्र प्रशान्त महासागर के साथ मिल कर दुनिया के विभिन्न देशों के बीच कारोबार का बहुत बड़ा समुद्री रास्ता है। इसी वजह से अस्सी के दशक तक भारत लगातार यह मांग उठाता रहा था कि हिन्द महासागर क्षेत्र को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति क्षेत्र घोषित किया जाये जिससे किसी भी सूरत में यह समुद्री इलाका सैन्य प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र न बनने पाये परन्तु सोवियत संघ के विघटन के बाद जिस तरह विश्व की राजनीति में परिवर्तन आया और तीसरी दुनिया के निर्गुट या गुट निरपेक्ष आन्दोलन को झटका लगा उससे क्षेत्रीय शक्ति सन्तुलन पूरी तरह बिखर गया और चीन एक नई ताकत बन कर अपना दबदबा कायम करने की तरफ निकल पड़ा। इसकी सैन्य व आर्थिक शक्ति का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को नये सिरे से खेमेबन्दी करनी पड़ी। इस खेमेबन्दी में भारत को इस प्रकार तटस्थ रहना होगा  कि वह चीन व अमेरिका के बीच एक सेतु का काम कर सके और दोनों को हिन्द महासागर में युद्धपोतों की खेमेबन्दी करने से रोके। 
श्री ब्लिंकन ने भारतीय विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर के साथ अपनी वार्ता में दोनों देशों के लोकतान्त्रिक मूल्यों की तरफ भी ध्यान दिलाया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत की तरह अमेरिका भी विविध संस्कृतियों का संगम है और मानवाधिकारों का अलम्बरदार है। भारत का संविधान भी इन्हीं मूल्यों की हिमायत करता है और प्रत्येक नागरिक को उसके मानवाधिकार देता है। असल में अमेरिका को भी यह देखना होगा कि उसके यहां अश्वैत नागरिकों के साथ किसी प्रकार का अन्याय न हो। भारत की धार्मिक विविधता कोई नई चीज नहीं है। सदियों से इस देश में प्रत्येक धर्म के मानने वाले का एक समान सम्मान होता रहा है लेकिन दोनों देशों के महापुरुष एक-दूसरे के देश में उच्च सम्मान प्राप्त करते रहे हैं, चाहे वह अब्राहम लिंकन हों या मार्टिन लूथर किंग या महात्मा गांघी। भारत-अमेरिका के लोगों के बीच की यह सबसे बड़ी साझा विरासत है जिसके आलोक से दोनों ही देशों में लोकतन्त्र फला-फूला है और मानवीय अधिकारों का बोलबाला रहा है। श्री ब्लिंकन क्वैड देशों ‘भारत-अमेरिका आस्ट्रेलिया व जापान’ के बीच और सम्बन्ध गहरे करने की तजवीज पेश करके भी गये। भारत ने बहुत पहले ही यह साफ कर दिया था कि यह गठबन्धन चीन के खिलाफ नहीं है केवल आत्मरक्षार्थ सजगता है। जबकि चीन इसे लेकर आशंकित रहता है। चीन के सन्दर्भ में भी दोनों नेताओं की बातचीत हुई है जिसमें आपसी सहयोग बढ़ाने पर ही जोर दिया गया है। बेशक इसे हम ब्लिंकन की सफल भारत यात्रा मानेंगे। 

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