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भाजपा का शानदार प्रदर्शन

निश्चित रूप से पांच राज्यों में से चार में अपनी सरकारों की पुनरावृत्ति करके भाजपा ने यह सिद्ध कर दिया है कि चुनाव में विजय के लिए सत्ता समर्थक भावनाओं को सतह पर लाकर भी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया जा सकता है।

निश्चित रूप से पांच राज्यों में से चार में अपनी सरकारों की पुनरावृत्ति करके भाजपा ने यह सिद्ध कर दिया है कि चुनाव में विजय के लिए सत्ता समर्थक भावनाओं को सतह पर लाकर भी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में भाजपा की विजय का सेहरा सकारात्मक वोट के सिर बांधा जा सकता है परन्तु पंजाब में जिस तरह आम आदमी पार्टी ने इस राज्य की प्रतिष्ठित पार्टियों के पांव उखाड़े हैं उसका आशय यही निकलता है कि सत्ता के विरुद्ध गुस्से को ढाल बना कर जनाक्रोश के तूफान में तब्दील किया जा सकता है। दरअसल पंजाब में आम आदमी पार्टी की विजय में सत्तारूढ़ कांग्रेस के ही एक नेता नवजोत सिंह सिद्धू का योगदान भी कम नहीं है जिन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ कदम-कदम पर लोगों के गुस्से को उपजाया और अपनी छवि को मुख्यमन्त्री चरणजीत सिंह चन्नी से भी चमकदार बनाने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों व कार्यों को ही जम कर कोसा। मगर यह पुरानी बात हो गई है और आम आदमी पार्टी के नेता भगवन्त सिंह मान को पंजाबियों से चुनावों में किये गये वादों को पूरा करना होगा परन्तु सबसे महत्वपूर्ण चुनाव उत्तर प्रदेश के ही थे जहां से भाजपा ने अपनी शानदार जीत दर्ज करके मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के शासन को लोकतन्त्र का पर्याय बना दिया है। 
दरअसल प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह उत्तर प्रदेश के चुनाव को अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा का सवाल बना कर यहां चुनाव प्रचार किया उसने योगी आदित्यनाथ को सबल सम्बल दिया और उनकी प्रशासन क्षमता पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी। दूसरी ओर श्री योगी ने जिस तरह पांच वर्ष तक राज्य का शासन चलाया उससे राज्य की जनता में वह आशा की किरण उगी जो पिछले लगभग 35 वर्षों के दौरान सपा-बसपा की सरकारों के दौरान केवल जात-पात और सम्प्रदायवाद के घने जंगल में गुम हो गई थी। योगी ने सुशासन को मन्त्र बना कर जनता के बीच यह सन्देश पहुंचाने में सफलता प्राप्त की सरकार का मतलब केवल जन कल्याण ही होता है विशेष रूप से गरीब वर्ग के लोगों को ही सरकार की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अतः केन्द्र व प्रदेश की जितनी भी कल्याणकारी परियोजनाएं इन पांच वर्षों में शुरू की गईं उन्हें योगी प्रशासन ने सुपात्र लोगों तक पहुंचाने में पूरी पारदर्शिता के साथ ईमानदारी से लागू करने में सरकारी मशीनरी को दोनों टांगों पर खड़ा कर दिया और उद्घोष किया कि ‘सबके साथ न्याय मगर तुष्टीकरण किसी का नहीं’। सामाजिक सन्दर्भों में इस सन्देश के बहुत महत्वपूर्ण मायने थे क्योंकि उत्तर प्रदेश एक जमाने में साम्प्रदायिक दंगों का गढ़ समझा जाता था और कानून-व्यवस्था को सत्ताधारी पार्टियों के नेता अपनी जेब में रख कर चलने की हेकड़ी दिखाते थे। जिसकी वजह से राज्य में ‘गुंडाराज’ जैसी शब्दावली का प्रयोग भी आम हो गया था। इसकी तफसील में जाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि राज्य का पिछले 30 वर्षों का प्रशासनिक इतिहास इसकी बखूबी तसदीक करता है। क्योंकि पूर्व सरकारों के दौरान जिस तरह राज्य पुलिस का प्रयोग राजनीतिक हित साधने के लिये किया जाता था उसकी वजह से सूबे के पुलिस थानों में थानेदार की जगह सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं का हुक्म चलता था। अतः श्री योगी ने जिस तरह सुशासन की स्थापना की उसके मूल में इसी व्यवस्था को जड़-मूल से उखाड़ने की मंशा थी जिसे लोगों ने ‘बाबा का बुलडोजर’ कहा लेकिन भाजपा को शानदार सफलता मिलने के बावजूद विपक्षी अखिलेश यादव के गठबन्धन की ताकत में भी खासा इजाफा हुआ है।
 लोकतन्त्र में इसका भी स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि मजबूत विपक्ष ही सुशासन की गारंटी भी होता है। इसके साथ अगर हमें गोवा व मणिपुर जैसे छोटे राज्यों को देखें तो यहां भी भाजपा को अच्छी सफलता मिली है और मतदाताओं ने कमोबेश स्पष्ट बहुमत देने का प्रयास किया है। मगर ऐसे ही एक पहाड़ी राज्य उत्तराखंड राज्य में तो कमाल ही हो गया जहां की 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया मगर इसके मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं अपना चुनाव हार गये। ठीक एेसा ही नजारा हमने प. बंगाल में भी पिछले वर्ष देखा था जब ममता दीदी की पार्टी तो प्रचंड बहुमत से जीत गई थी मगर वह स्वयं अपना चुनाव हार गई थीं। लोकतन्त्र में ऐसे कमाल होते रहते हैं। मगर भाजपा की शानदार जीत से एक तथ्य स्पष्ट है कि अब राजनीति में जाति-बिरादरीवाद के दिन लदने वाले हैं और लोक कल्याण मूलक नीतियों के दिन आने वाले हैं।
 बाजार मूलक अर्थ व्यवस्था के दौरान गरीब कल्याण हेतु सरकारी योजनाओं का लागू करना राजनीति की प्रमुख शर्त बन सकती है। लोकतन्त्र में लोक कल्याण का लक्ष्य ही जनता की सरकार का ध्येय होता है। इसके साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों की वीरता के साथ रक्षा करना भी जनहित की नीति ही होती है। योगी आदित्यनाथ ने विभिन्न विसंगतियों के बावजूद भारतीय संस्कृति के मूल दरिद्र नारायण की सेवा  और सर्वजन सुखिनाः के सिद्धान्त को संविधान के दायरे में जिस तरह लागू किया है उसी का परिणाम है कि उन्हें उत्तर प्रदेश की जनता ने अपना प्यार दिया है। बेशक अखिलेश यादव ने भी अपने राजनीतिक विमर्श के तहत कड़ा मुकाबला किया है और अपनी पार्टी की ताकत को जातिगत व सम्प्रदायगत आधार पर बढ़ाया है परन्तु एेसी राजनीति के दिन अब लदते हुए नजर आ रहे हैं।

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