भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को पुनर्जीवित करने के लिए मोदी सरकार ने 89047 करोड़ रुपए का पैकेज मंजूर किया है। इस पैकेज का इस्तेमाल बीएसएनएल द्वारा 4जी और 5जी सेवाओं पर किया जाएगा। केन्द्र सरकार का फैसला देर से हुआ लेकिन कम्पनी में जान फूंकने के लिए यह एक अच्छा फैसला है। कहते हैं देर आयद दुरस्त आयद। हालांकि कुछ समय पहले भी बीएसएनएल के निजीकरण का ढिंढोरा पीटा गया था। सरकार पहले ही घाटे में चल रही एयर इंडिया का विनिवेश कर चुकी है और एयर इंडिया का स्वामित्व टाटा के हाथ जा चुका है। सरकार ने एलआईसी और अन्य कई कम्पनियों में अपनी हिस्सेदारी भी बेची है। सरकारों द्वारा विनिवेश की प्रक्रिया कोई नई नहीं है। बीएसएनएल को भारी-भरकम पैकेज दिए जाने से कम्पनी के अच्छे दिन फिर से लौट आने की उम्मीद है। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इससे कम्पनी को अपनी सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। हालांकि यह केन्द्र की ओर से बीएसएनएल के लिए घोषित पहला पैकेज नहीं है। इससे पहले सरकार ने 2019 में 69 हजार करोड़ और 2022 में 1.64 लाख करोड़ की राहत दी थी।
लगातार घाटे में चल रही बीएसएनएल पिछले दो राहत पैकेज की मदद से परिचालन लाभ में आ गई है। इस पैकेज की मदद से वह अगले तीन साल में कर्ज मुक्त हो जाएगी। कम्पनी पर अभी 22289 करोड़ का कर्ज है। दो साल पहले यह कर्ज 32944 करोड़ का था। 2022-23 में कम्पनी का परिचालन लगभग 1559 करोड़ रुपए का रहा है। टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल 20वीं सदी में एक चमकता हुआ सितारा थी लेकिन आज स्थिति है कि कंपनी अपने 1.75 लाख कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रही है। बीएसएनएल एक ऐसी कंपनी थी जिसके ग्राहक उसके बिना रह नहीं सकते थे। बाजार पर बीएसएनएल के एकाधिकार और लोकप्रियता का मंजर ये था कि जब प्राइवेट कंपनियां अपना सिम 20-25 रुपये में देती थीं, बीएसएनएल का सिम 2000- रुपये में ब्लैक में मिलता था लेकिन एक-एक करके बीएसएनएल के ग्राहक उससे दूर होते गए। इसके लिए जिम्मेदार खुद बीएसएनएल ही है।
बीएसएनएल का नाम पहले ‘दूरसंचार सेवा विभाग था। एक अक्टूबर, 2000 को इसका नाम बदलकर भारत संचार निगम लिमिटेड कर दिया गया। इसके साथ ही बीएसएनएल एक पीएसयू की तरह काम करने लगी। तर्क ये दिया गया कि इससे बीएसएनएल की कार्यक्षमता बढ़ेगी और ये निजी कंपनियों का मुकाबला अधिक पेशेवर तरीके से कर सकेगी। इसके बाद बीएनएनएल ने तेजी से विस्तार योजनाओं पर काम शुरू किया। बीएसएनएल की वेबसाइट के मुताबिक कंपनी ने 2000 में इंटरनेट, 2002 में 2जी मोबाइल, 2005 में ब्रॉडबैंड सेवा और 2010 में 3जी मोबाइल सेवा शुरू की। इसके बावजूद बीएसएनएल का घाटा लगातार बढ़ता गया। बीएसएनएल के पास 2000 में 2.8 करोड़ लैंडलाइन कनेक्शन थे जो लगातार घटते गए। बीएसएनएल की सबसे अधिक कमाई लैंडलाइन कनेक्शन से ही होती थी। मार्च 2018 में कंपनी का घाटा बढ़कर करीब 8000 करोड़ रुपये हो गया।
कम्पनी की सेवाएं खराब होती गईं। लोग परेशान हो उठे और उन्होंने कम्पनी की सेवाएं लेनी बंद कर दीं। पहले आओ पहले पाओ के आधार पर स्पैक्ट्रम घोटाला सामने आया और प्राइवेट आपरेटर्स बाजार में छा गए। बीएसएनएल जहां अपने ग्राहकों को 3जी उपलब्ध कराने में परेशानी का सामना करने लगी वहीं जियो और एयरटेल जैसे खिलाड़ी 5जी भी लेकर आ गए। अब तक जमाना काफी बदल गया है। फोन की जगह स्मार्ट फोन ने लेनी शुरू कर दी है। वहीं टैलीकॉम कम्पनियों की पहुंच गली-गली तक हो गई। फोन पर इंटरनैट और कॉलिंग के लिए दरों में कटौती का चलन शुरू हो गया। बाजार में एक नहीं बल्कि कई प्राइवेट कम्पनियां एक से बढ़कर एक प्लान लाती गईं।
आरोप तो यह भी है कि जिन लोगों के पास दूरसंचार मंत्रालय रहा उन्होंने बीएसएनएल को प्रमोट करने की बजाय प्राइवेट सैक्टर को प्रोत्साहित किया। इसके पीछे के कारणों को कोई भी आसानी से समझ सकता है। जहां सभी कम्पनियों ने 4जी पर दांव खेला वहीं बीएसएनएल के पास इस सैगमैंट में कुछ भी नहीं था। प्राइवेट कम्पनियों के मुकाबले बीएसएनएल 4जी को लागू ही नहीं कर पाई। इससे कम्पनी पूरी तरह हाशिये पर चली गई। इसमें बड़ी भूमिका लालफीताशाही और धीरे-धीरे लिए गए फैसलों की थी। एक अक्तूबर 2000 को शुरू होने वाली बीएसएनएल का कभी एक छत्र राज था। जब कम्पनी के निजीकरण की बात चली तो कर्मचारियों ने इसका जबरदस्त विरोध किया। सरकार ने कम्पनी को फिर से खड़ा करने के लिए लगातार कोशिशें कीं। सरकार के नए पैकेज से कम्पनी अब 4 जी और 5 जी सेवाएं प्रदान करने में सक्षम होगी तथा अपनी पैकेज सेवाओं में सुधार कर सकेगी। सरकार द्वारा दिए गए पैकेज के बेहतर इस्तेमाल से बीएसएनएल अपना विकास और विस्तार कर सकेगी और प्राइवेट खिलाड़ियों का मुकाबला करने की ताकत अर्जित करेगी लेिकन इसके लिए प्रबंधन कौशल की जरूरत होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि कम्पनी का प्रबंधन अब सही फैसले लेगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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