बुली बाई : घृणित मानसिकता या साजिश - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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बुली बाई : घृणित मानसिकता या साजिश

विवादास्पद बुली बाई ऐप मामले में लगातार गिरफ्तारियां हो रही हैं।

विवादास्पद ‘बुली बाई’ ऐप मामले में लगातार गिरफ्तारियां हो रही हैं। दिल्ली पुलिस ने गिरहब प्लेटफार्म पर ऐप बनाने वाले 21 वर्ष के नीरज बिश्नोई को असम में गिरफ्तार कर उसे ही मास्टर माइंड बना रही है। नीरज बिश्नोई भोपाल के वेल्लौर इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग कर रहा है। इस मामले में उत्तराखंड की 18 वर्ष की श्वेता सिंह, बेंगलुरु के 21 वर्षीय विशाल झा और 20 वर्षीय मयंक रावल को पहले ही ​गिरफ्तार किया जा चुका है। श्वेता सिर्फ 12वीं पास और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही थी। उसके कंधे पर दो बहनों और एक भाई की जिम्मेदारी है। उसकी मां की कैंसर से उसके पिता की मौत भी कोरोना से हो चुकी है। असम में पकड़े गए नीरज बिश्नोई के​ पिता एक दुकान चलाते हैं। लाकडाउन के दौरान वह भोपाल से घर चला आया था। पूरे दिन वह अपने कमरे में बैठकर कम्प्यूटर में घुसा रहता था और देर रात तक काम करता था। कुछ राजनीतिक दलों के लोग भी उससे मिलने आते थे। उसकी दोनों बहनों को उसके काम पर शक भी हुआ तो वह झगड़ने लगता। पकड़े गए दो अन्य युवकों की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं है। बुली बाई ऐप पर मुस्लिम महिलाओं को निशाने पर लेकर उनकी बोली तक लगाई जा रही थी। इस विवादित ऐप पर मुस्लिम महिलाओं के चित्र अपलोड कर उनके बारे में अश्लील और अनुचित बातें लिखी गईं। इससे पहले भी ​पिछले वर्ष जुलाई में ऐसे ही ​विवादित ऐप सुन्नी बाई पर मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के साथ ​खिलवाड़ करने का मामला सामने आया था, ले​किन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने पर उससे मिलता-जुलता ऐप सामने आ गया।
गिरहब एक होस्टिंग प्लेटफार्म है, इस प्लेटफार्म पर अलग-अलग तरह के ऐप मिल जाएंगे। गिरहब एक ओपन सोर्स प्लेटफार्म है, जो यूजर्स को ऐप्स बनाने और साझा करने की अनुमति देता है। इसके लिए आपको ईमेल की जरूरत पड़ती है। बुली बाई ऐप पर मुस्लिम महिलाओं के मानसिक उत्पीड़न का मामला तब सामने आया जब एक महिला पत्रकार ने ट्विटर पर अपनी आपबीती साझा की। इस ऐप क डेवलेप करने वाले लोगों ने इस महिला पत्रकार की फोटो ऐप पर शेयर कर दी थी। लोग उनकी फोटो पर अश्लील कमेंट लिख रहे थे। इस ऐप पर लगभग सौ महिलाओं को टारगेट किया गया।
अब सवाल यह उठता है कि क्या पकड़े गए युवाओं की मानसिकता घृणित है या उन्हें इस काम के लिए बरगलाया गया है। साइबर वर्ल्ड ने ​दुनिया को प्रगति का रास्ता जरूर दिखाया  है लेकिन यह घृणित मानसिकता वालों और अपराधियों के घातक मंसूबों को अंजाम देने का ह​थियार बन चुका है। सवाल यह भी है कि पकड़े गए युवकों को क्या इस बात का अहसास नहीं था ​कि ऐसा करने पर सामाजिकता ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो सकता है। क्या उन्हें इस बात की समझ नहीं थी कि इससे समाज में कटुता और विद्वेष फैल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हिंसा हाे सकती है। आखिर छोटी उम्र में बड़ा कांड करने की सोच उनके पास कहां से आई। अगर उन्हें किसी ने गुमराह नहीं किया तो यह हमारे समाज के लिए बहुत घातक है कि हमारे युवा किस मानसिकता का शिकार हो रहे हैं। उत्तराखंड से पकड़ी गई 18 साल की श्वेता में इतनी नफरत कैसे आ गई? कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के छात्र नीरज में आपराधिक कारनामा करने का साहस कैसे आया?
इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज में साम्प्रदायिक जहर फैलाने, आतंकवादी घटनाओं के लिए युवाओं को भर्ती करने वाले, धर्म के नाम पर ​युवाओं का माइंडवाश करने वाले संगठन और उनके स्लीपर सेल अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के लिए उन युवाओं का इस्तेमाल करते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं। गिरफ्तार युवकों की पारिवारिक पृष्ठभूमि का तो ब्यौरा ​​​मिल चुका है, लेकिन इस मामले की तह तक जाना जरूरी है। यह देखा जाना जरूरी है कि किन हालातों में युवा इस ऐप से जुड़े, क्या पर्दे के पीछे से इन्हें कोई इस्तेमाल कर रहा था। अगर यह साजिश है तो फिर असली किरदारों के चेहरे से नकाब उतरना  ही चाहिए। किशोरों और युवाओं को मोहरा बनाकर कौन साम्प्रदायिक विद्वेष फैला रहा है।
बुली बाई ऐप ने जितना  समाज में नुक्सान कर दिया  है, उसकी भरपाई आसान नहीं है। इसका एक पहलु यह भी है कि इस ऐप के जरिये हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश रची गई। गिरफ्तार युवाओं को कानून के मुताबिक सजा भी मिल जाएगी लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि समाज को ऐसी जहरीली सोच से बाहर कैसे निकाला जाए। अगर ऐसा नहीं किया गया तो सामाजिक समरसता का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
जरूरत इस बात की है कि समाज में नफरत फैलाने वाले साइबर अपराधियों पर नकेल कसी जाए। दरअसल दुनिया भर में साइबर स्पेस तेजी से यौन विकृतियों, आर्थिक अपराधों, आतंकवादी ​गिरोहों और महिलाओं को निशाने पर लेने वाले ट्रोलर्स का अड्डा बनता जा रहा है  भारत इससे अछूता कैसे रह सकता है। ​पिछले वर्ष देश में महिलाओं के​ खिलाफ साइबर अपराध के लगभग 2300 मामले सामने आए थे। इनमें से अधिकतर अपराध यौन सामग्री के प्रकाशन और  प्रसारण से जुड़े थे। समाज में बढ़ते मोबाइल फोन के बढ़ते उपयोग और इंटरनेट के दायरे के विस्तार ने महिलाओं को यौन उत्पीड़न की दृष्टि से बहुत संवेदनशील बना दिया है। महिला किसी भी समुदाय की क्यों न हो, ऐसे हमलों की शिकार नहीं होनी चाहिए। इसके​ लिए आईटी संशोधन अधिनियम को और  भी सख्त बनाया जाना चाहिए।

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