अब चुनाव प्रचार वर्चुअल रैलियों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर ही अधिक होगा। न तो रथ यात्राएं संभव हैं और न ही घर-घर जाकर दस्तक दी जा सकती है। राजनीति का तिलिस्म बहुत जटिल होता है, परन्तु यह भी सही है कि यदि कोई पार्टी, कोई व्यक्ति दृढ़ता के साथ अपने संकल्प पर दृढ़ रहे तो अंततः विजय उसकी ही होती है। भारतीय जनता पार्टी कैडर बेस पार्टी है और पार्टी कार्यकर्ता जीत के लिए काम करता है।
चुनाव जीतना या हारना तो लोकतंत्र में चलता ही रहता है लेकिन चुनावों में केवल विजय को ही लक्ष्य मान कर काम करना बहुत जरूरी होता है। भाजपा के सफलतम अध्यक्ष रहे और अब देश के गृहमंत्री का पदभार संभाल रहे अमित शाह के चुनावी कौशल का परिणाम है कि भाजपा ने एक के बाद एक विजय हासिल की।
अमित शाह ने अपने कार्यकर्ताओंं के साथ बहुत स्पष्ट संवाद कायम करके आम जनता से सीधा संवाद स्थापित करने में सफलता भी पाई और वह राष्ट्रवादी विचारधारा के विस्तृत स्वरूप को राजनैतिक कैनवस पर उतार कर उसे आम जनता को दिखाने में भी सफल रहे हैं। राष्ट्रवाद के परिकल्पनात्मक स्वरूप को अगर भाजपा जनता के हृदय तक पहुंचाने में कामयाब रही है तो इसका श्रेय काफी हद तक अमित शाह को ही दिया जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पाठशाला से संगठन के गुर सीख कर निकले अमित शाह का जीवन ही राजनीतिक जज्बों से भरा रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने वर्चुअल रैली के माध्यम से बिहार के लोगों को सम्बोधित कर राज्य विधानसभा चुनावों की दुंदुभी बजा दी है।
भाजपा ने कोरोना काल में भी बिना समय गंवाये चुनावी रणभूमि में बिगुल फूंक दिया है। इससे चुनावी युद्ध का माहौल तैयार होगा। कोरोना काल में बड़ी रैलियों का आयोजन संभव नहीं। सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए नुक्कड़ सभायें भी नहीं हो सकती। ऐसी स्थिति में खुलकर चुनाव अभियान को प्रचंड बनाने की चुनौती हर राजनीतिक दल के सामने है लेकिन भाजपा ने वर्चुअल रैली की शुरुआत कर अन्य दलों से बाजी मार ली है।
कोरोना की महामारी ने सब कुछ बदल दिया है तो चुनाव इससे अछूते कैसे रह पाते, इसलिए चुनाव प्रचार की शैली ही बदल दी है। चुनाव प्रबंधन के खिलाड़ी अमित शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनावों में गांधी नगर में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण अडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था लेकिन उनके चुनाव प्रबंधन का करिश्मा 1995 के उपचुनाव में तब नजर आया, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अधिवक्ता यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया था।
बूथ प्रबंधन में उन्होंने करिश्मा कर दिखाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सम्पर्क में अमित शाह पहली बार उस समय आये थे जब वह बतौर प्रचारक 1982 में अहमदाबाद आए थे। उसके बाद दोनों की ऐसी जोड़ी बनी कि उन्होंने अहमदाबाद का निगम चुनाव, गुजरात विधानसभा चुनाव जीता। दोनों ने ही 2014 में केन्द्रीय सत्ता तक की राह साथ मिलकर पूरी की। 2014 में स्वयं नरेन्द्र मोदी ने स्वीकार किया था कि शाह में संगठन को मजबूती से खड़ा करने का गजब का जज्बा है।
2014 में सत्ता में आने के बाद अमित शाह हर वक्त सक्रिय रहे। एक राज्य के चुनाव होते ही वह अपना ध्यान दूसरे राज्य पर केन्द्रित कर देते। उन्हें विजय के अलावा कुछ और नहीं दिखता। अमित शाह को कार्यकर्त्ताओं की अच्छी परख है और वे संगठन तथा प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी हैं।
नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर अमित शाह ने बिहार के कार्यकर्ता और आम जनता के बीच संवाद कायम कर यह दिखा दिया कि परिस्थितियां कितनी भी मुश्किल भरी क्यों न हो, वे हौंसले को कमजोर नहीं होने देंगे। अमित शाह के बिहार जनसंवाद कार्यक्रम के लिए व्हाट्सएप, फेसबुक, एसएमएस, ट्विटर सहित सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों के जरिए भाजपा कार्यकर्त्ताओं को लिंक भेजे गए थे।
बिहार की आबादी 12 करोड़ के लगभग है और मोबाइल फोन 9 करोड़ हैं। एक जनसभा करने का खर्च लाखों में होता है लेकिन वर्चुअल रैली पर खर्चा एक लाख से भी कम होता है। ऐसी रैलियां चुनावों का परिदृश्य बदल देंगी। अन्य दल भी ऐसी ही तैयारियां कर रहे हैं। राजनीतिक दलों की अंदरूनी राजनीति भी डिजिटल होती जा रही है।
यद्यपि बिहार में राजद कार्यकर्ताओं ने अमित शाह की रैली के विरोध में थालियां पीटी, वामपंथी दलों ने विरोध दिवस मनाया लेकिन भाजपा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल नरेन्द्र मोदी सरकार की उपलब्धियों में सर्जिकल स्ट्राइक, तीन तलाक से मुक्ति और अमित शाह के खाते में जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाये जाने की बड़ी उपलब्धियां हैं।
उनके राजनीतिक कद के सामने फिलहाल कोई नहीं टिक रहा। अमित शाह ने दिया दिया कि यदि कोई राष्ट्र के कल्याण के लिए भारत की जनता के पास जाता है तो जनता अवश्य उसके साथ होती है। यही कारण है कि अमित शाह को आधुनिक राजनीति का चाणक्य माना जाता है। राजनीति के इतिहास में अमित शाह अपना स्थान भाजपा की शक्ति के रूप में स्थापित कर चुके हैं।