इस्राइल की सेना में पुरुषों और महिलाओं की संख्या लगभग बराबर है। इस्राइल की महिला सैनिकों को दुनिया में सबसे खतरनाक माना जाता है। चीन की सेना में ढाई लाख के करीब महिला सैनिक हैं, जिनमें डेढ़ लाख आर्म्ड फोर्सेज का हिस्सा हैं। अमेरिका में महिला सैन्य शक्ति सन् 1775 से ही अपने देश की सेवा कर रही है। अमेरिकी सेना में महिलाओं को काम्बैट ऑपरेशन में शामिल होने की अनुमति 2015 में मिली। सेना में 2 लाख के लगभग महिला सैनिक हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ में महिला सैन्य ताकत करीब 8 लाख थी लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद अब भी रूस में करीब 2 लाख महिला सैनिक हैं। फ्रांस में महिलाएं सन् 1800 से ही सेना में शामिल हैं। यूक्रेन, चेक गणराज्य, पोलैंड, ब्रिटेन, पाकिस्तान, यूनान, आस्ट्रेलिया और रोमानिया में सेना में महिलाएं लड़ाकू और प्रशासनिक दोनों तरह की भूमिकाएं निभा रही हैं। इनमें से कुछ देशों की महिलाएं जासूसी का काम करती हैं। अनेक अण्डर कवर एजैंट हैं। महिलाएं हर वह किरदार निभा रही हैं जो पुरुष निभाते आए हैं।
भारतीय सेना पुलिस में भी अब महिलाओं की जवान के तौर पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अब तक महिला सिर्फ अधिकारी के तौर पर सेना में आती थीं। अभी 14 लाख सशस्त्र बलों के 65 हजार अधिकारियों के कैडर में देखें तो थलसेना में 1500, वायुसेना में 1600 और नौसेना में 500 महिलाएं ही हैं। सेना पुलिस में महिलाओं की जवान के तौर पर भर्ती एक बड़ा बदलाव होगा। जिन देशों ने महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में तैनात किया है उनके लिए इस बदलाव को सहज बनाना आसान नहीं था और सांस्कृतिक परिवेश अलग होने के बावजूद उनके अनुभवों से काफी कुछ सीखा जा सकता है। इसके लिए हमें मानसिकता में भी बदलाव लाना होगा। भारत को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में विकसित होने के लिए महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन जरूरी है। कई अर्थों में सशस्त्र सेनाओं के लिए यह उस बदलाव में भागीदार होने का अवसर है, विश्व में अपनी सही जगह पाने के लिए जिससे गुजरना भारत के लिए जरूरी है।
भारतीयों की मानसिकता इस प्रकार की है कि युद्ध होने की स्थिति में महिलाओं को युद्धबंदी बनाया जा सकता है और देश के भीतर भी वह आतंकवादियों के निशाने पर रहेंगी। यह भी कहा जाता है कि लड़ाकू भूमिकाओं में भर्ती के लिए अनिवार्य कठोर शर्तों को महिलाएं स्वीकार नहीं कर पाएंगी क्योंकि महिलाओं के लिए मानक वही होंगे जो लड़ाकू भूमिकाओं के लिए किसी आम सैनिक से अपेक्षित होते हैं। दूसरी तरफ हम महिलाओं की भूमिका देखें तो भारतीय वायुसेना में पहले ही महिलाएं फाइटर पायलट बन चुकी हैं जबकि नौसेना में भी महिलाओं को नौसैनिक के रूप में भर्ती किए जाने पर विचार चल रहा है। महिलाएं नौका से पूरी दुनिया का चक्कर लगा चुकी हैं। सीमा सुरक्षा बल का महिला दस्ता सीमाओं की चौकसी कर रहा है। भारत में महिलाओं ने 1990 के दशक में आर्मी में जाना शुरू किया लेकिन अब तक यह आंकड़ा 1,610 एयरफोर्स में, 1,561 आर्मी में और 489 ही नौसेना में पहुंचा है। शार्ट सर्विस कमीशन के तहत चुनी गई महिलाएं सिर्फ 14-15 वर्ष तक ही अधिकतम अपनी सेवाएं दे पाती हैं।
बहुत कम महिला अधिकारियों को ही स्थायी कमीशन में जगह मिलती है। महिलाओं को फाइटर जेट उड़ाने की अनुमति जरूर मिली है लेकिन युद्ध क्षेत्र, सबमरीन और संकटग्रस्ट क्षेत्रों में महिलाओं की नियुक्ति अभी तक नहीं है। महिलाओं को सेना पुलिस में भूमिका का प्रस्ताव थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने रखा था। हालांकि रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में इसकी मंजूरी दी थी। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि शार्ट सर्विस कमीशन के तहत सशस्त्र बलों में भर्ती होने वाली महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन लेने का विकल्प दिया जाएगा। सेना पुलिस में शामिल होने वाली महिलाएं दुष्कर्म, छेड़छाड़ जैसे मामलों की जांच करेंगी। सेना पुलिस की भूमिका सैन्य प्रतिष्ठानों के साथ-साथ केन्टोनमेंट क्षेत्र की देखरेख करने में भी होगी। सेना पुलिस शांति और युद्ध के समय जवानों और उनके सामान की गतिविधि को संचालित करती है।
देश की बहादुर बेटियों के सामने सेना में करियर बनाने का अवसर है लेकिन सवाल यह भी है कि क्या उनके अभिभावक अपनी बेटियों को जवान के तौर पर देखने के लिए सहज होंगे? अभिभावकों की यही सोच रहती है कि उनकी बेटी की शादी अच्छे घर में हो जाए और वह सुखी जीवन जिये। देखना होगा कि ऑनलाइन आवेदन करने वाली महिलाओं की संख्या कितनी है। अगर महिलाएं ज्यादा संख्या में रुचि दिखाती हैं तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। किसी भी बड़े बदलाव के लिए समाज को तैयार करना आसान नहीं होता क्योंकि समाज को मानसिक रूप से तैयार करने में समय लगता है। सेना को प्रशासनिक संस्थागत नीतियों के जरिये महिलाओं के अधिकार की रक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी।