जीएसटी लागू होने के बाद 22 राज्यों ने चैकपोस्ट खत्म कर दिए हैं। इस फैसले से 2300 करोड़ तक का फायदा होने की उम्मीद है। चुंगी-नाकों का इतिहास बहुत पुराना है। मनुष्य जाति के इतिहास में बहुत बाद में चलकर शासन ने राजस्व वृद्धि के लिए करों का सहारा लिया। शताब्दियों तक सार्वजनिक क्षेत्रों से ही मुख्य रूप से राजस्व संकलन किया जाता था जिसमें घरेलू उपयोग की वस्तुओं पर लगाए गए उत्पाद शुल्क और विदेशी व्यापार पर लगाए गए सीमा शुल्क का स्थान मुख्य था। भारत में भी प्राचीनकाल से वर्तमान तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली किसी न किसी रूप में चलती आ रही है। मनुस्मृति और अर्थशास्त्र दोनों में अनेक प्रकार के करों के संदर्भ मिलते हैं। मनु ने कहा है कि शास्त्रों के अनुसार राजा कर लगा सकता है। उन्होंने सलाह दी थी कि करों का सम्बन्ध प्रजा की आय तथा व्यय से होना चाहिए। मनु ने अत्यधिक कराधान के प्रति राजा को आगाह किया था कि दोनों चरम सीमाओं अर्थात करों का पूर्ण अभाव और हद से ज्यादा कराधान से बचना चाहिए। राजा को करों की ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि प्रजा करों की अदायगी करते समय कठिनाई महसूस न करे।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कराधान प्रणाली को वास्तविक, व्यापक और सुनियोजित व्यवस्था प्रदान की गई। औरंगजेब के शासन में व्यापारियों पर माल के लाने-ले जाने पर कर लगाया जाता था। ऐसा समय भी आया जब एक शहर से दूसरे शहर में माल लाने पर स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिका, नगर निगम ने शहर के प्रवेश द्वारों पर चुंगी-नाके बना दिए। चुंगी कर की गिरफ्त में लोग फंसते गए। चुंगी कर की चोरी होने लगी। अगर कोई छोटा व्यापारी या दुकानदार ट्रेन से माल लेकर आता तो वह इस बात का इंतजार करता कि ट्रेन स्टेशन पर पहुंचने से पहले आउटर सिग्नल पर रुक जाए। ट्रेन अगर आउटर सिग्नल पर रुकती तो वह अपनी बोरी नीचे उतार दूसरे रास्ते से माल अपनी दुकान पर ले जाता था। अगर वह रेलवे रोड से जाता तो उसे चुंगी देनी पड़ती। कई बार चुंगी कर अधिकारियों को दुकानदारों का पीछा करते देखा जाता था। धीरे-धीरे फिर चुंगी-नाके भ्रष्टाचार की चपेट में आते गए। कहीं चुंगी कर की चोरी होने लगी तो कहीं अवैध वसूली होने लगी। किसी की चुंगी पर ड्यूटी लगते ही लोग कहने लगते कि भाई तेरे तो वारे-न्यारे हो गए। कभी चुंगी पर कर चुकाने के लिए वाहनों की लम्बी कतारें लग जातीं और घंटों समय बर्बाद हो जाता। जैसा कि आजकल पथकर वसूल रहा कोई भी नाका हो, वह लोगों को शारीरिक और मानसिक तनाव देने वाला ही होता है। कभी-कभी सोचता हूं यह कैसी व्यवस्था थी जो केवल लोगों को पीड़ा देती थी। अब जबकि 22 राज्यों ने अपनी सीमा से जांच चौकियां हटा ली हैं और अन्य 8 राज्य भी हटाने की तैयारी में हैं तो यह दुकानदारों, व्यापारियों और वाहन चालकों को सुखद अहसास दिलाने वाला ही है।
इससे पहले अलग-अलग राज्य अलग-अलग कर वसूलते थे, साथ ही केन्द्र सरकार भी टैक्स वसूलती थी। जीएसटी के आने से सभी टैक्स की जगह सिर्फ एक टैक्स वसूला जा रहा है। जीएसटी में केन्द्र सरकार के सर्विस टैक्स, विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क, विशेष उत्पाद शुल्क, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सैस सरचार्ज आदि को इसमें समाहित कर दिया गया है। सरकार ने कहा था कि जीएसटी के आने के बाद राज्यों के बीच चुंगी कर, एंट्री टैक्स जैसे कई टैक्स वसूलने के लिए जो नाके हैं, वह सब खत्म हो जाएंगे। जीएसटी का मुख्य लक्ष्य देश को एकल बाजार बनाना है जहां वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही बिना किसी रुकावट के हो सके। राज्य सीमा चौकियां सामान और गंतव्य के हिसाब से कर अनुपालन की जांच करती रही हैं। इससे वस्तुओं की आपूर्ति में विलम्ब होना ही है, साथ ही ट्रकों की कतारें लगने से पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ता था। सीमा पर वाहनों के खड़े होने भर से अर्थव्यवस्था को 2300 करोड़ का नुक्सान हो रहा था। अब जब एकल कर वसूलने का काम ऑनलाइन हो रहा है तो भी रास्ते में अवरोधक खड़े करने का कोई औचित्य नहीं। भ्रष्टाचार और खौफ फैलाने का काम कर रहे नाके खत्म होने से दुकानदारों, व्यापारियों को राहत मिली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जीएसटी को गुड एवं सिम्पल बताया है। यह एक ऐतिहासिक बदलाव है। भारत एकल बाजार की तरह संगठित रहेगा। उत्पादों, सेवाओं और पेशेवर लोगों को एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने और आने वाली बाधाएं दूर होंगी। कारोबारी, किसान, नौकरी-पेशा और उद्यमियों के लिए यह प्रणाली फायदेमंद होगी। जरूरत है केवल इसे समझने और अपनाने की।