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बच्चों का बचपन…हमारे भविष्य के सुपर हीरो

आज जब मैंने कोरोना काल में हमारे सामने खड़ी चुनौतियों के संबंध में लिखने के लिए कलम उठाई ही थी, तब मेरे सामने सबसे संवेदनशील मामला उन बच्चों का था जिनके माता-पिता कोरोना का ग्रास बन गए उनका क्या होगा? एक मां होने के नाते मेरा भावुक होना स्वाभाविक है।

आज जब मैंने कोरोना काल में हमारे सामने खड़ी चुनौतियों के संबंध में लिखने के लिए कलम उठाई ही थी, तब मेरे सामने सबसे संवेदनशील मामला उन बच्चों का था जिनके माता-पिता कोरोना का ग्रास बन गए उनका क्या होगा? एक मां होने के नाते मेरा भावुक होना स्वाभाविक है। हमने कोरोना काल में बहुत से करीबियों को खाेया है। जैसे ही मैंने लिखना शुरू किया टीवी चैनलों पर फ्लैश आ गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनाथ हुए बच्चों की मदद के लिए आगे आ गए हैं। प्रधानमंत्री ने अनाथ बच्चों के 18 वर्ष तक की आयु होने पर उन्हें हर माह पीएम केयर फंड से स्टाइफंड और 23 वर्ष की आयु होने पर उन्हें एकमुश्त दस लाख रुपए देने का ऐलान कर दिया है। इसके अलावा भी उनका स्वास्थ्य बीमा और अन्य कई सुविधाएं देने का भी ऐलान किया है। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ भी अनाथ बच्चों की मदद करने के लिए ऐलान कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनाथ बच्चों की मदद के ऐलान की राष्ट्रीय नीति घोषित करने से उन परिवारों को बहुत राहत मिली है जिनकी आंखों के सामने अंधकार ही अंधकार छाया हुआ है। अनाथ बच्चों का पालन पोषण करना ना केवल सरकार का दायित्व है बल्कि समाज का भी दायित्व है। 
बहुत सी सामाजिक संस्थाएं आगे आकर सहायता कर रही हैं। कई लोग सिर्फ आलोचना ही कर रहे हैं, यह हो गया, वो क्यों नहीं हुआ। क्योंकि अगर हमारे घर में कोई समस्या आए तो हम अपने परिवार के मुखिया का पूरा साथ देते हैं। उस समस्या से निकलने के लिए मुश्किल चुनौतियों का सामना करते हैं और जब समस्या निकल जाए तो जरूरी विश्लेषण मंथन करते हैं। यह क्यों हुआ, यह आगे न हो आदि-आदि।  इस  समय हम सब देशवासियों का भी यही फर्ज बनता है। इस समय हमें कुदरत की चुनौतियों का सामना करना है। इस समय कुदरत ऐसा कहर ढाह रही है, कभी कोरोना, ब्लैक फंगस, समुद्री तूफान क्या नहीं। बहुत से लोगों की जानें चली गईं हैं, बहुत से बच्चे अनाथ हो गए हैं। हमें उनकी सहायता करनी है, उनके बारे में सोचना है।
विशेषकर जो बच्चे अकेले रह गए और तो और जो बच्चे साल से ऊपर हो गया घर बैठे हुए कभी उनके बारे में किसी ने सोचा, उनका बचपन कहां जा रहा है। कई बच्चों ने तो स्कूल का मुंह ही नहीं देखा। यानि उनके एडमिशन तो हुए परन्तु स्कूल नहीं जा सके। कई छोटे बच्चे, बड़े बच्चे टिनेजर जिनका इस समय खेलने-कूदने का समय था, स्कूल जाने का समय था घरों में बंद हैं। यह सुपर हीरो जो देश का भविष्य हैं, उनकी हर मनपसंद चीज या उनका बचपन ही छिन गया। उनके ऊपर आनलाइन क्लास का दबाव है। स्कूल जाना, अपने दोस्तों को मिलना, आईसक्रीम खाना, अपने छोटे दोस्तों के साथ खेलना, अपने टीचर का सम्मान करना, नया रोज कुछ सीखना परन्तु अब घंटों लैपटॉप, फोन की स्क्रीन पर रहना, वह नैच्यूरल लाइफ से दूर हो गए हैं। हम बड़े लोग इस अचानक आई महामारी कोरोना से घबरा गए हैं, जो कभी सोचा नहीं था। उनका क्या जिनके जीवन की शुरूआत ही एक भय से हुई है, जो हमेशा यही खबर सुनते हैं आज इतने गए, आज वैक्सीन लग रही है, आज आक्सीजन की जरूरत है, उनके छोटे मासूम दिमाग क्या सोच रहे हैं। यही नहीं उन माओं के बारे में भी सोचें जो सारा दिन इनको व्यस्त रखने में, पढ़ाने में ओवरलोडिड है। उनके ​लिए भी कुछ नार्मल नहीं है। एक भय की तीसरी लहर आएगी जो बच्चों पर असर करेगी। आप सोचो बच्चे को हल्का सा जुकाम, खांसी या बुखार हो जाए तो एक मां की क्या हालत होती है। सो हमें अभी से तीसरी लहर की तैयारी भी करनी है (भगवान से प्रार्थना है कि यह न आए) हमें बच्चों की मानसिकता, माओं की मानसिकता पर ध्यान देना होगा।
उन्हें इनडोर एक्टीविटीज कराई जा सकती है। कई स्कूल वालों ने प्राइमरी तक के लिए पिछले दिनों इनडोर एक्टीविटीज चलाई थी उससे बच्चों का मन खेलों में लग जाता है। जितनी केयर होगी उतना ही कोरोना की चुनौती का हम मजबूती से सामना कर पायेंगे आज मृत्युदर लगभग एक-डेढ़ प्रतिशत है और रिकवरी रेट 90 प्रतिशत से ज्यादा है लेकिन बच्चों को बचाना एक बड़ी चुनौती है। इसलिए हम सरकार से अपेक्षा करने की बजाये लोगों से ही अपील कर रहे हैं कि वह खुद नियमों का पालन करें, सैनेटाईज करें, बच्चों को घर से बाहर न जाने दें। यदि सचमुच ऐसा करते हैं तो सचमुच बच्चों को बचाया जा सकता है। आज की तारीख में मैं एक नारा बुलंद कर रही हूं कि कोरोना के खिलाफ जंग में बच्चों को बचाओ, कोरोना को भगाओ और देश बचाओ।
जीवन में कठिन समय किस पर नहीं आता। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र ने जब इस पृथ्वी पर जन्म लिया तो उन्होंने भी जीवन में बहुत कठिनाईयां झेली। कुल चौदह वर्ष का वनवास सचमुच पीड़ादायी था लेकिन श्रीराम ने कठिनाईयों में धैर्यशीलता के साथ अपने आपको प्रतिकूल परिस्थितियों के अनुकूल बना लिया था। चौदह साल बाद जब वह अयोध्या लौटे और उनका राज्याभिषेक हुआ तो उन्होंने यही कहा था कि मुश्किल समय में जब आप प्रतिकूलता के दौरान स्वयं को अनुकूल बना लेते हैं तो सब कुछ संभव है। इसी तरह मोदी जी के लिए कुदरत की कठिन चुनौतियां हैं। शायद कुदरत को भी मालूम है सिर्फ यही व्यक्ति इनका सामना कर सकता है, इसलिए चारों तरफ से आ रही है।  कोरोना ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है और दूसरी लहर ने भारत में सचमुच तबाही मचाई। आखिरकार मोदी सरकार की कुशल मानिटरिंग और दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए एक महीने का लॉॅकडाउन लगाने के बाद आखिरकार कोरोना पर काबू कर लिया। अब दिल्ली में एक दिन में एक हजार केस आ रहे हैं और संक्रमण दर लगभग 1 प्रतिशत है। सब कुछ अनलॉक होने जा रहा है परंतु इस बीच बच्चों के कोरोना की चपेट में आने की खबरों ने माताओं को हिला कर रख दिया है।

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