जम्मू-कश्मीर की वादियों में हमें हमेशा से ही जहरीले बोल सुनने को मिलते हैं। हुर्रियत के नाग हमेशा जहर फैलाते रहे हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदार बनने वाले सियासतदानों की भाषा भी विषैली ही रही है। लोकसभा चुनावों के दौरान भी हर रोज धमकी भरे बोल सुनाई दे रहे हैं। चुनावों के प्रचार शुरू होते ही कश्मीर में ‘मैं मुजाहिदीन’ मुहिम शुरू हुई थी, अब वह ‘मैं मुजाहिद’ में बदल गई है। नैशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी के बीच होड़ तो लगी हुई थी कि किसका कैडर असली मुजाहिदीन है तो अब श्रीनगर नगर निगम के डिप्टी मेयर इमरान शेख ने नई मुहिम ‘मैं मुजाहिद’ शुरू कर दी है।
उन्होंने भाजपा के मैं भी चौकीदार अभियान पर हमला बोलते हुए विवादित बयान दिया है। शेख इमरान ने भी मैं भी चौकीदार की तरह अपने नाम के आगे मुजाहिद लगा लिया है। उनके समर्थकों ने भी ऐसा ही कहना शुरू कर दिया है। उन्होंने मुजाहिद शब्द की व्याख्या जिहाद (पवित्र लड़ाई) में शामिल होने वाले लोगों के तौर पर की है और ऐसे लोगों ने बुराई पर हमला करने और सरकार का समर्थन करने वाला रक्षक बताया है। उन्होंने तो यह भी कहा है कि ‘सभी मुसलमानों काे ‘मुजाहिद’ होना ही चाहिए और इस शब्द का प्रयोग करने में कोई समस्या नहीं है। जिहाद दुश्मनों के खिलाफ एक आध्यात्मिक लड़ाई है।
मीडिया के एक वर्ग ने हमारे धर्म की गलत व्याख्या की है’। कांग्रेस के समर्थन में श्रीनगर नगर निगम के डिप्टी मेयर बने शेख इमरान, जो आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के काफी नजदीकी माने जाते हैं, के बोल किसी के भी गले नहीं उतर रहे। इससे पहले नैशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी के कार्यकर्ता खुद को असली मुजाहिदीन कहने लगे थे तो उन्हें लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा था। शब्द की व्याख्या अलग-अलग तरीकों से की जा सकती है। सकारात्मक दृष्टि से भी और नकारात्मक दृष्टि से भी। अब सवाल उठता है कि क्या शेख इमरान ने ऐसा करके जिहादी मानसिकता का परिचय दिया है या नहीं? वह स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि मुजाहिद वह होता है जो इस्लाम के दुश्मनों से लड़े। इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक गैर मुस्लिम दुश्मनों की श्रेणी में आता है।
जो इस्लाम को नहीं मानता वह काफर है। शेख इमरान का यह कदम सीधा हिंसा को उकसाने वाला है। ऐसा करके उन्होंने मजहब के नाम पर हिंसा का उन्माद पैदा करने की कोशिश की है। उन्होंने साम्प्रदायिक आधार पर इन शब्दों का इस्तेमाल किया है। पूरी दुनिया जानती है कि इस्लाम के नाम पर आतंकवादी संगठन मानवता के खिलाफ जिहाद छेड़े हुए हैं जिससे मुस्लिमों को संदेह की नजर से देखा जाने लगा है। इस्लाम में कहीं भी हिंसा का उपदेश नहीं दिया गया लेकिन इस्लाम के नाम पर पूरी दुनिया में खूनी खेल खेला जा रहा है।
क्या हम भूल जायें कि जिहाद के नाम पर –
-हमारे देवस्थान भी अछूते नहीं बचे
-रघुनाथ मन्दिर आैर अक्षरधाम मन्दिरों पर हमले हुए
-लश्कर ने संसद पर हमला किया
-मुम्बई पर आतंकवादी हमला हुआ
-पिछले कई दशकों से जिहाद के नाम पर आतंकवादी हमलों में हजारों जवान शहीद हो चुके हैं।
कौन नहीं जानता कि यह हुर्रियत के नागों का कश्मीर है, आतंकवाद को विदेशी फंडिंग से मिलने वाले यासीन, शब्बीर और अब्दुल गनी बट का कश्मीर है। यह लश्कर, जैश और हिज्बुल मुजाहिदीन का कश्मीर है। यह विदेशी और अरब वर्ल्ड के पैसों से राष्ट्र का विखंडन चाहने वालों का कश्मीर है। यह अनुच्छेद 370 की आड़ में पनपती जिहादी चंगेजी संस्कृति का कश्मीर है। यह वह कश्मीर है जहां भारतीय तिरंगा फहराने को एक उपलब्धि समझा जाता है। इस्लाम हमारा दुश्मन नहीं है लेकिन कट्टर इस्लाम की विचारधारा मानवता की दुश्मन है जो अपनी विचारधारा को सही और दूसरे को गलत ठहराती है।
हिंसा अतिवादी कट्टर विचारधारा के चलते ही हो रही है। निर्दोष लोगों को वीभत्स तरीके से मारना आतंकवादियों के लिये कोई गुप्त काम नहीं रहा। आतंकियों का दुस्साह इतना ज्यादा होता है कि वे अपने कृत्य को सीधे-सीधे मुस्लिम धर्म व धार्मिक आस्थाओं के अनुसार चलने वाला अभियान बनाते हैं। उन्हें लोगों को मारने में अंशमात्र भी दुख नहीं होता। हैरानी होती है कि मुस्लिम देशों की सरकारें, वहां का मीडिया भी किसी न किसी रूप में विशेषकर वैचारिक रूप से आतंकवादियों के समर्थन में खड़ा नजर आता है।
कितना अच्छा होता शेख इमरान सभी को अपने साथ कश्मीरी शब्द जोड़ने को कहते ताकि सभी सम्प्रदाय और विचारधारा के लोग साथ आते और अपने नाम के आगे कश्मीरी लिखते। जब तक आतंकवाद की विचारधारा को संरक्षण और समर्थन देने वाली ताकतें रहेंगी तब तक आतंकवाद खत्म नहीं हो सकता। पूरे देश को शेख इमरान को मुंह तोड़ जवाब देना होगा। समूचा राष्ट्र संकल्प ले कि आज के जयचंदों और मीरजाफरों को अब और सहन नहीं किया जायेगा। राष्ट्र विरोधी स्वरों का मुकाबला उससे दुगनी आवाज करके करना ही होगा।