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पाकिस्तान में गृह युद्ध

पाकिस्तान में एक तरफ न्यायपालिका और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान हैं तो दूसरी तरफ शहबाज सरकार और सेना है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इमरान खान पाकिस्तान के सबसे बड़े और चर्चित राजनेता के तौर पर उभरे हैं।

पाकिस्तान में एक तरफ न्यायपालिका और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान हैं तो दूसरी तरफ शहबाज सरकार और सेना है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इमरान खान पाकिस्तान के सबसे बड़े और चर्चित राजनेता के तौर पर उभरे हैं। क्रिकेट की कामयाब पारी के बाद राजनीति के मैदान में भी उन्होंने अपने मजबूत जनाधार का परिचय दे दिया है। उनको जुल्फिकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो के बाद तीसरा ऐसा राजनेता माना जाता है जिन्होंने सेना से टक्कर ली है। इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई मामलों पर उनको जमानत देने और रिहाई के आदेश देने पर शहबाज सरकार और मुख्य न्यायाधीश के बीच भयंकर टकराव हो चुका है। सेना के भीतर भी शहबाज शरीफ समर्थक जनरल आसिम मुनीर और इमरान समर्थक सैन्य अधिकारियों में टकराव शुरू हो गया है। शहबाज सरकार के मंत्री और नेता सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ आग उगल रहे हैं और मरियम नवाज ने तो उन पर भ्रष्टाचार के सीधे आरोप लगाते हुए उनसे इस्तीफे की मांग कर डाली। 
9 मई को इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद देश के कई हिस्सों में हुई हिंसा से पाकिस्तान की विभिन्न संस्थाओं में टकराव इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान में जिस तरह से सेना ने सभी संस्थाओं को कमजोर किया है उससे भयावह स्थि​ित उत्पन्न हो गई है। पाकिस्तान के आवाम ने यह दिखा दिया है कि अब वे सेना से नहीं डरते। दूसरी तरफ शहबाज सरकार इमरान खान को लेकर आर-पार के मूड में है और वह हर हालत में इमरान को गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहती है। पंजाब विधानसभा चुनावों को लेकर भी न्यायपालिका और सरकार में ठनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए 14 मई की तारीख तय की थी लेकिन शहबाज सरकार ने संसद में प्रस्ताव लाकर कोर्ट के फैसले काे दरकिनार कर दिया था। अब न्यायपालिका प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और अन्य के खिलाफ अवमानना कार्यवाही करने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाई देती है। जबकि शहबाज सरकार कोर्ट के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप के खिलाफ खड़ी दिखाई दे रही है।
सैन्य तंत्र इस वक्त आपस में ही बंटा हुआ है। यही कारण है कि जब पीटीआई समर्थक सैन्य प्रतिष्ठानों एवं सरकारी संस्थाओं में तोड़फोड़ कर रहे थे तो कुछ पंजाबी सैन्य अधिकारी मौन साधे हुए थे। कारण कि उनकी निष्ठा इमरान के साथ थी। ऐसी घटना पहले भी हो चुकी है। जुल्फिकार अली भुट्टो के  वक्त जब पीपुल्स पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पंजाब में आंदोलन किया तो तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक बहुत नाराज हुए और उन्होंने लाहौर में गोली चलाने के​ लिए तत्कालीन सैन्य अधिकारी को आदेश दिया था। बताया जाता है ​िक उक्त अधिकारी ने यह कहते हुए प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से मना कर दिया कि उनमें ज्यादातर पंजाबी हैं। यद्यपि भुट्टो सिंध मूल के थे किन्तु पीपीपी के ज्यादातर कार्यकर्ता पंजाबी थे। सेना में वैसे भी लगभग 60 प्रतिशत अधिकारी और सैन्य बल में पंजाबी हैं। 
स्थिति इस कदर बिगड़ चुकी है कि पाकिस्तान में गृह युद्ध होना तय दिखाई देता है। पाकिस्तान में प्रतिष्ठानों का आपसी टकराव ऐसे समय में सामने आया है जिस समय देश सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। मुद्रा स्फीति सभी रिकार्ड तोड़ते हुए 35 प्रतिशत तक पहुंच गई है जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है। पाकिस्तान रुपए की कीमत रोजाना गिर रही है। पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा एक के बाद एक आतंकी हमले किए जा रहे हैं और पाकिस्तान सेना के जवान मारे जा रहे हैं, उससे परिस्थितियां बहुत खतरनाक होती जा रही हैं। धरती का जन्नत माने जाने वाली स्वात घाटी पर तालिबान का कब्जा हो चुका है। पाकिस्तान के हुक्मरानों की पहली प्राथमिकता देश की अर्थव्यवस्था को सम्भालने, लोगों के लिए रोटी-पानी का प्रबंध करने और अन्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए होनी चाहिए थी लेकिन सत्ता और सत्ता से जुड़े प्रतिष्ठान आपस में ही टकराने लगे। इससे देश की संस्थाएं कमजोर हो गई हैं और अनिर्वाचित शक्ति केन्द्र मजबूत होते चले गए। सच तो यह है कि पाकिस्तान की सारी संस्थाओं के बीच आपसी टकराव के ​लिए वहां के राजनेताओं का निकम्मापन और सेना की साजिशें  जिम्मेदार हैं। पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों में पहले से ही जबरदस्त आक्रोश है और वे पाकिस्तान से आजादी मांग रहे हैं। 
सिंध में पाकिस्तान के हुक्मरानों के जुल्मों की दास्तानें लोग  अभी तक नहीं भूल पाए हैं। ब्लूचिस्तान में अराजकता का माहौल कायम है। पाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है वह एक तरह से गृहयुद्ध ही है। पाकिस्तान के लोग अब जाग उठे हैं। एक तरफ लोगों को इमरान खान से उम्मीद है कि वह पाकिस्तान को सेना के चंगुल से मुक्त करा सकते हैं तो दूसरी तरफ सरकार और सेना के बेरहम बदहाली वाले राज से जनता मुक्ति चाहती है। पाकिस्तान ऐसे चक्रव्यूह में फंसा हुआ है जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। अगर स्थितियां नहीं सम्भलीं तो देश टुकड़ों-टुकड़ों में बंट जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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