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मोदी की रैली से भ्रम दूर हुआ!

संशोधित नागरिकता कानून के बारे में छाये भ्रम को आज प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी रामलीला मैदान रैली से छांटने का प्रयास किया है।

संशोधित नागरिकता कानून के बारे में छाये भ्रम को आज प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी रामलीला मैदान रैली से छांटने का प्रयास किया है। श्री मोदी ने विश्वास दिलाया है कि इस कानून से भारत के किसी भी मुस्लिम नागरिक को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है  और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का अभी कोई खाका नहीं खिंचा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि दुनिया के मुस्लिम देशों में भारत का सम्मान बढ़ा है और ऐसे कई देशों की सरकारों ने भारतीय संस्कृति का सम्मान करते हुए उन्हें अपने ‘सर्वोच्च नागरिक सम्मान’ से भी नवाजा है।  
इन सबमें ‘सऊदी अरब’ का नाम विशेष उल्लेखनीय है क्योंकि पूरी दुनिया में इसी देश में मुसलमान नागरिक ‘मक्का और मदीना मुकद्दस’ में सिजदा करने जाते हैं। यह वास्तव में महत्वपूर्ण है कि सऊदी के शाह ने भारत में हिन्दू पार्टी समझी जाने वाली भाजपा के नेता नरेन्द्र मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया वैसे जब सऊदी अरब में भारतीय मुसलमान हज करने के लिए जाते हैं तो उनकी पहचान ‘हिन्दी’ कह कर की जाती है। हिन्द चूंकि फारसी भाषा का शब्द है अतः इसमें रहने वाले सभी नागरिक इस भाषा के व्याकरण के अनुसार ‘हिन्दी’ हुए।  
इसी शब्द का प्रयोग अल्लामा इकबाल ने अपनी प्रसिद्ध गजल- ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ में भी इस तरह किया है- ‘‘हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा’’ अतः भविष्य के लिए भी साफ होना चाहिए कि ‘हिन्द’ के रहने वाले ‘हिन्दी’ ही कहलायेंगे लेकिन इसके समानान्तर दिल्ली के ही ‘इंडिया गेट’ पर नागरिकता कानून के विरोध में आन्दोलन जारी रहा जिसमें भारी संख्या में युवाओं समेत नागरिकों ने हिस्सा लिया। 
यह भाजपा के लिए विचारणीय मुद्दा है कि सरकार की तरफ से इसके अल्पसंख्यक मन्त्री मुख्तार अब्बास नकवी के एक दिन पहले यह कहने के बावजूद कि नागरिक रजिस्टर राष्ट्रीय स्तर पर तैयार करने का कोई फैसला अभी नहीं हुआ है, इंडिया गेट पर आन्दोलनकारी इकट्ठा हुए और प्रधानमन्त्री की रैली के साथ-साथ उनका विरोध प्रदर्शन भी जारी रहा, बेशक इसकी जगहें अलग-अलग रहीं। इस संशोधित कानून से स्वयं प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की विश्वसनीयता और लोकप्रियता भी बावस्ता है। श्री मोदी भारत के पिछड़े समाज से आये प्रधानमन्त्री हैं। 
असम में नागरिकता कानून का विरोध हिन्दू-मुसलमान के भेद से ऊपर उठ कर हो रहा है। अतः रामलीला मैदान की रैली में श्री मोदी का यह आह्वान कि कानून का विरोध करने वाले कथित वामपंथी लोग पाकिस्तान द्वारा चलाये जा रहे आतंकवाद का विरोध भी हाथ में तिरंगा झंडा लेकर करें, समूचे माहौल से धुंध उठाने का काम करता है। भारत के मुस्लिम नागरिकों को अलग तरह से देखने के नजरिये का पूरी तरह विरोध होना चाहिए। यह भी हकीकत है कि जब विगत फरवरी महीने में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में हमारे सुरक्षा सैनिकों को शहीद किया था तो पूरे भारत में मुस्लिम नागरिकों ने पाकिस्तान के खिलाफ शान्तिपूर्ण प्रदर्शन किये थे। 
इसके बाद भारत द्वारा की गई बालाकोट हवाई कार्रवाई का समर्थन भी मुस्लिम नागरिकों ने पुरजोर तरीके से किया था। अतः स्पष्ट हुआ कि जो मुस्लिम नेता हिन्दोस्तानी मुसलमानों की छवि को वोट बैंक की खातिर अलग बनाये रखना चाहते हैं उनकी सियासत दम तोड़ती जा रही है। मगर नागरिकता कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश में हिंसा भड़का कर ये दल पुनः मुस्लिम सियासत में अपनी पैठ बनाना चाहते हैं जिसे ध्वस्त करने का कार्य भाजपा ही अपने कार्यों से कर सकती है।  
प्रधानमन्त्री ने इसी तरफ आज रामलीला मैदान की रैली से शुरूआत की है और मुसलमान नागरिकों को आश्वस्त किया है कि कल्पित नागरिक रजिस्टर तैयार करने के बारे में भय या डर पैदा करके विपक्षी दल राष्ट्रीय एकता के विरोध में काम करते लगते हैं, परन्तु इसके साथ ही यह सवाल भी जुड़ा हुआ है कि नागरिक रजिस्टर को सरकार पूरी तरह बर्खास्त क्यों नहीं कर रही है ? जाहिर है इसके लिए सरकार को संसद में किसी कानून बनाने की जरूरत नहीं है।  यह कार्य केवल अधिशासी आदेश (एक्जीक्यूटिव आर्डर) से उसी तरह होना है जिस तरह पिछड़ों के लिए आरक्षण का हुआ था। इससे स्वाभिक तौर पर यह सन्देह पैदा होता है कि भारत के विभिन्न राज्यों में घुसपैठिये हैं। 
मगर भारत के संविधान के अनुसार उनकी निशानदेही करना राज्य सरकारों का काम है क्योंकि यह विषय पूरी तरह कानून-व्यवस्था के दायरे में आता है जो कि राज्यों का एकनिष्ठ अधिकार है अतः राष्ट्रीय एकता के हित में ही राज्यों व केन्द्र के बीच किसी भी प्रकार को टाला जाना भी जरूरी है, परन्तु नागरिकता कानून के बारे में ही जिस तरह भारत के पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं वे भी सकारात्मक नहीं कही जा सकती। मलेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देश के प्रधानमन्त्री महाथिर मोहम्मद का यह कहना कि ‘यदि हम ऐसा कानून अपने देश में बनाये तो चारों तरफ बदअमनी फैल जायेगी’ चिन्ता का विषय माना गया और भारत सरकार ने इस पर कड़ा लिखित विरोध प्रदर्शन भी किया। 
मगर इससे  अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी फैली भ्रम की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। मोटे तौर पर यह तो कहा जा सकता है कि संशोधित नागरिकता कानून भारत की ‘विश्व छवि’  के अनुकूल नहीं माना जा रहा है। बेशक बंगलादेश से हमारे रिश्ते सभी क्षेत्रों में लगातार प्रगाढ़ हो रहे हैं मगर वहां की भारत समर्थित समझी जाने वाली सरकार ने भी इस बारे में चिन्ता तो प्रकट की है इसका मतलब यह निकलता है कि इस नये कानून से ऐसे देशों की आन्तरिक राजनीति प्रभावित हो सकती है। 
खास कर बंगलादेश में तो वहां की कट्टर मुस्लिम  जेहादी संस्था ‘जमाते इस्लामी’ और ज्यादा हिन्दू विरोधी जहर फैलाने लगेगी यह बेशक संस्था कानून प्रतिबन्धित है, परन्तु यह भी सच है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बंगलादेश में राजनीतिक उठा-पठक के चलते कई बार वहां हुकूमत में आयी कट्टरपंथी पार्टियां हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों पर होने वाले जौर-जुल्म से आंखें मूंद लेती हैं। ऐसी ही परिस्थिति बंगलादेश में यहां के फौजी हुक्मरान रहे जनरल जियाउर रहमान के पत्नी बेगम खालिदा जिया के शासनकाल में बनी थी जब वह 1991 से 96 और 2001 से 06 तक दो बार इस देश की प्रधानमन्त्री रही थीं। उनके पति ने ही बंगलादेश के राष्ट्रपति रहते इसका राजधर्म ‘इस्लाम’ घोषित किया था और जमात जैसी कट्टरपंथी तंजीम को फलने-फूलने का माहौल बनाया था। 
अतः 2003 में जब राज्यसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर डा. मनमोहन सिंह ने प्रताड़ित बंगलादेशी अल्पसंख्यकों का मामला उठाया था तो उसकी पृष्ठभूमि यही थी हम घटनाओं को विलगाव में रख कर नहीं देख सकते बल्कि समग्रता में हमें देखना होगा क्योंकि वर्तमान में बंग बन्धू शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना की सरकार पूरी तरह उदारपंथी राष्ट्रवादियों की सरकार है मगर इसमें कोई दोराय नहीं हो सकतीं कि इन तीन देशों से आये प्रताड़ित हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देकर सम्मान के साथ जीवन जीने का अवसर न प्रदान किया जाये। 
ऐसा करके मोदी सरकार ने मानवीयता का ही परिचय दिया है परन्तु मुसलमानों को ऐसी श्रेणी से अलग करके भारतीय संविधान के तारों को भी छेड़ दिया है जिसकी परख सर्वोच्च न्यायालय कर रहा है। अतः विरोध और समर्थन जरूर हो मगर पूरी शान्ति और लोकतान्त्रिक मर्यादा के साथ। प्रधानमन्त्री ने भी आम लोगों से यही अपील की है। हालांकि यह रैली दिल्ली की अवैध कालोनियों को नियमित करने के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद अदा करने के लिए हुई थी।

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