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प्रवासी मजदूरों की असमंजस!

कोरोना के इस संक्रमण काल में प्रवासी मजदूरों की रोजी- रोटी और स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के लघु व मध्यम क्षेत्र के चावल मिल मालिकों ने पूरे देश के उद्यमियों को दिशा दिखाने का साहसिक व प्रशंसनीय कार्य किया है।

कोरोना के इस संक्रमण काल में प्रवासी मजदूरों की रोजी- रोटी और स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के लघु व मध्यम क्षेत्र के चावल मिल मालिकों ने पूरे देश के उद्यमियों को दिशा दिखाने का साहसिक व प्रशंसनीय कार्य किया है। उनके ऐसा कदम उठाने से देश भर में फैले प्रवासी मजदूरों में न केवल आत्मविश्वास जागृत होगा बल्कि समूची व्यवस्था में उन्हें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का भी अंदाजा होगा। श्रमिकों के बिना आर्थिक विकास या औद्योगीकरण असंभव होता है। श्रमिक ही अपना श्रम देकर किसी राष्ट्र का विकास करते हैं। पूंजी के साथ जब तक श्रम कदमताल मिला कर न चले तो विकास असंभव होता है। इसका एहसास तेलंगाना व आन्ध्र प्रदेश के चावल मिल मालिकों ने अपने मजदूरों को पूर्ण सुरक्षा का वातावरण दिलाने का सद् प्रयास किया है। अकेले तेलंगाना में ही बिहार, प. बंगाल व झारखंड आदि राज्यों के डेढ़ लाख से अधिक प्रवासी मजदूर यहां की लगभग 2200 चावल मिलों में काम करते हैं। आन्ध्र प्रदेश में यह संख्या और भी अधिक है। तेलंगाना की इन छोटी-छोटी  मिलों के  मालिक कोरोना संक्रमण के चलते अपने मजदूरों को आश्वस्त कर रहे हैं कि उन्हें रहने व खाने-पीने की असुविधा किसी कीमत पर नहीं होने दी जायेगी औऱ लाॅकडाउन के खतरे से उन्हें वापस अपने राज्यों में जाने की जरूरत नहीं है। ये मिल मालिक इन मजदूरों के रहने की व्यवस्था मिल परिसर में ही कर रहे हैं और उनके भोजन का पूरा ध्यान रख रहे हैं।  इसके साथ ही उन्हें मास्क व सेनेटाइजर मुहैया करवा रहे हैं जिससे संक्रमण फैलने का खतरा जाता रहे और साथ ही ताईद कर रहे हैं कि वे परिसर से बाहर न जायें। इसी प्रकार आन्ध्र के चावल मिल मालिक भी अपने मजदूरों का ध्यान रख रहे हैं।
 पिछले वर्ष लाॅकडाउन लगने की स्थिति में सभी राज्यों से लगभग तीन करोड़ मजदूरों का उल्टा पलायन हुआ था जिससे बिहार , बंगाल व उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ व राजस्थान जैसे राज्यों में भारी अफरा-तफरी फैल गई थी जबकि महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, केरल, तमिलनाडु, दिल्ली  व कर्नाटक जैसे औद्योगीकृत राज्यों की अर्थव्यवस्था चौपट हो कर रह गई थी। मगर इस बार कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के चलते जिस तरह विभिन्न राज्यों में आंशिक लाॅकडाउन या कर्फ्यू लागू हो रहा है उससे यहां काम कर रहे दूसरे राज्यों के मजदूरों में अभी से आशंका पैदा हो रही है कि उन्हें फिर से पिछले साल वाले बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं अतः दिल्ली जैसे शहरों से उनका पलायन भी शुरू हो गया है। इस स्थिति को रोकने के लिए तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के लघु उद्यमियों ने जो रास्ता दिखाया है वह अन्य राज्यों के छोटे-बड़े उद्यमियों के लिए अनुकरणीय हो सकता है।
 मजदूरों का पलायन तभी रोका जा सकता है जब उन्हें अपनी रोजी के बरकरार रहने का आश्वासन मिले और कोरोना से सुरक्षा का वातावरण मिले। इससे उद्योग जगत व श्रमिकों दोनों का ही भला होगा मगर इसके लिए प्रशासनिक या सरकारी स्तर पर भी कुछ आवश्यक कदम उठाये जाने की जरूरत पड़ेगी। मसलन अपने-अपने राज्यों में औद्योगिक व व्यापारिक व वाणिज्यक गतिविधियां चालू रखने के लिए राज्य सरकारों को शुल्क आदि में उद्यमियों को कुछ छूट प्रदान करनी होगी परन्तु शुल्क व कराधान के सभी मामले अब जीएसटी के नियन्रण में होने से प्रत्येक राज्य द्वारा दी गई शुल्क छूट का समायोजन जीएसटी में ही करना पड़ेगा जिससे राज्यों का हिस्सा यथावत रह सके। यह प्रक्रिया थोड़ी पेचीदा हो सकती है परन्तु राष्ट्रहित और राष्ट्र के विकास के समक्ष यह कुछ नहीं है। इस समय सबसे बड़ा मुद्दा जान बचाने और आजीविका बचाने का है क्योंकि अर्थव्यवस्था पहले से ही ढीली चल रही है।
तेलंगाना व आंध्र के इन छोटे मिल-मालिकों द्वारा पेश की जा रही नजीर का पालन बड़े-बड़े उद्योगपति भी कर सकते हैं और अपने कर्मचारियों विशेषकर प्रवासी मजदूरों के लिए सुरक्षित सुविधाएं स्थापित कर सकते हैं। स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में इस बार कोरोना वैक्सीन के आने के बाद इसे लगाने के नियम जिस प्रकार लचीले किये गये हैं उनसे भी प्रवासी मजदूरों को उनके कार्यस्थल पर ही रोकने में मदद मिलेगी। मगर अब बदले हालात में यह संभव है कि मजदूरों का पलायन रुक सके। इसके लिए उद्योग जगत की दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत होगी। साथ ही यह भी जरूरी होगा कि देश में वैक्सीन उत्पादन की किसी भी हालत में कमी न हो। वैक्सीन के रूप में हमारे हाथ में अब कोरोना को परास्त करने का अस्त्र आया है। इसका उपयोग हर स्तर पर होना चाहिए और इस तरह होना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत असर न पड़ने पाये। दरअसल कोरोना हमें यह भी सिखा रहा है कि हमारी भौतिक सुख-सुविधाएं बिना मानवीय हितों को संरक्षित किये बिना जारी नहीं रह सकतीं। दूसरे राज्यों से आये ये प्रवासी मजदूर ही बड़े-बड़े शहरों में ‘सुबह’  होने का ऐलान करते हैं और रात्रि को निश्चिन्त होकर सोने का इंतजाम बांधते हैं। इनकी सुरक्षा करना ‘सामयिक’ धर्म भी है।

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