संशोधित नागरिकता कानून व एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण) के मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विरोधी दलों की बैठक में द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, आप, व समाजवादी पार्टी ने भाग न लेकर सन्देश दिया है कि वे अपनी लड़ाई स्वयं लड़ने में समर्थ हैं। ये सभी भाग न लेने वाली पार्टियां क्षेत्रीय पार्टियां हैं और इनका दबदबा अपने सम्बद्ध राज्यों में है। जाहिर है कि इन पार्टियों ने अपने दलगत हितों को वरीयता देते हुए ही यह फैसला किया होगा जिससे वे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की अनुगामी न दिखें।
जहां तक विरोध का सवाल है तो ये सभी पार्टियां नागरिकता कानून का खुला विरोध कर रही हैं किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर गोलबन्द और एकीकृत विपक्ष का सन्देश देना नहीं चाहती हैं। यह भाजपा के लिए प्रसन्नता का विषय हो सकता है क्योंकि उसकी नीतियों के विरोध मे विपक्ष कटा-फटा हुआ है। वैसे भी नागरिकता विरोधी आंदोलन का श्रेय विपक्षी पार्टियों को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसकी शुरूआत विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की युवा पीढ़ी की तरफ से हुई है जिसका कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं है दूसरी तरफ हाल ही में समाप्त हुई कांग्रेस पार्टी की कार्य समिति ने घोषणा की थी कि वह न केवल संशोधित नागरिकता कानून की मुखालफत करती है बल्कि राष्ट्रीय पंजीकरण रजिस्टर (एन.पी.आर.) बनाये जाने की प्रक्रिया के भी खिलाफ है और इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) का ही स्वरूप मानती है।
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी और प्रमुख विपक्षी पार्टी है अतः लोकतन्त्र में इसकी राय मायने रखती है परन्तु इसी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री ने यह घोषणा करके साफ कर दिया है कि वह अपने राज्य में कोई ऐसा फैसला लागू नहीं करेंगे जिससे समाज आपस में विभाजित हो। श्री कमलनाथ ने दो टूक कहा है कि केन्द्र के किसी भी फैसले को राज्य सरकारों का अमला ही लागू करता है और जब वह ही इस पर ठंडा रुख अख्तियार कर लेगा तो फिर किस तरह कोई फैसला लागू हो सकता है।
मगर कमलनाथ का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि एनपीआर या नागरिकता कानून लागू न करने के लिए विधानसभा में कोई प्रस्ताव पारित करने की जरूरत नहीं है। ऐसा कह कर उन्होंने राजनैतिक व संवैधानिक परिपक्वता व दायित्व बोध का परिचय ही दिया है क्योंकि भारत की संघीय व्यवस्था में संसद द्वारा बनाये गये कानून के विरोध में प्रस्ताव पारित करना संवैधानिक दायित्वहीनता का परिचायक कहा जा सकता है। कमलनाथ ने यह कह कर साफ कर दिया है कि राजनैतिक युद्ध राजनीति के स्तर पर ही लड़ा जाना चाहिए कांग्रेस समझती है कि नागरिकता कानून भारतीय नागरिकों में हिन्दू-मुसलमान के आधार पर भेदभाव पैदा करने वाला है और एक नागरिक के ऊपर दूसरे नागरिक की धार्मिक पहचान की वजह से वरीयता देने वाला है जिसका संविधान निषेध करता है अतः इसका विरोध राजनैतिक स्तर पर पुरजोर तरीके से होना चाहिए।
श्री कमलनाथ के विचारों से साफ है कि कांग्रेस शासित अन्य राज्य सरकारें भी इसका अनुसरण करेंगी और केन्द्र से असहयोग करेंगी। संविधान उन्हें असहयोग करने से नहीं रोकता है परन्तु केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने से रोकता है। कांग्रेस ने स्वयं देश पर 50 साल तक राज किया है अतः उसके अनुभवी नेता इस भेद को पहचानते हैं। नागरिकता कानून के बारे में कांग्रेस पार्टी की राय संसद के दोनों सदनों में भी किसी से छिपी नहीं रही और इसने संशोधित नागरिकता विधेयक का पुरजोर तरीके से विरोध भी किया। पार्टी का मानना है कि पुराने नागरिकता कानून मे संशोधन संविधान की नजर और नुक्ते से गलत है क्योंकि इसमें व्यक्ति के धर्म को बीच में ले आया गया है।
केन्द्र सरकार का कहना है कि संशोधन तीन इस्लामी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान को केन्द्रित करते हुए किया गया है जहां रहने वाले गैर मुस्लिम या हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों को उनके देश में प्रताड़ित होने पर भारत में शरणार्थी के तौर पर आने पर नागरिकता प्रदान की जा सके परन्तु कमलनाथ ने सवाल खड़ा किया है कि इस कानून की जरूरत ही क्या है और सरकार पहले बताये कि शरणार्थी कौन से देश आ रहे हैं जो पहले ही आ चुके हैं कांग्रेस उन्हें नागरिकता देने के हक में है। फिलहाल बेरोजगारी व खराब होती अर्थव्यवस्था प्रमुख मुद्दे हैं।
सरकार इनसे ध्यान हटाने के लिए बेवजह समाज मे विभाजन कर रही है, अतः आम जनता खास कर युवा वर्ग इसका विरोध कर रहा है। कांग्रेस कार्य समिति ने युवकों व छात्रों के समर्थन में एक अलग से प्रस्ताव भी पारित किया है, परन्तु कांग्रेस कार्य समिति के ही दो सदस्यों आरपीएन सिंह व जितेन्द्र सिंह के अनुसार नागरिकता के मुद्दे को उठा कर पार्टी भाजपा के फेंके जाल में फंस सकती है कमलनाथ ने इस पलायनवादी सोच को किनारे करते हुए राजनैतिक रूप से इसका पुरजोर विरोध करने की वकालत की है जिससे भाजपा की रणनीति का जमीन से लेकर सत्ता के आसन तक मुकाबला किया जा सके।
जमीनी हकीकत के अनुसार रणनीति तय करना राजनैतिक दलों का दायित्व होता है, कांग्रेस को मौजूदा वक्त की राजनैतिक चुनौतियों से ही जूझना होगा और इस तरह जूझना होगा कि आम जनता में उसके विचारों को सम्मान मिले और सामान्य लोग सोचने पर मजबूर हों कि सकल भारत के हित में कौन से विचार हैं। लोकतान्त्रिक राजनीति विचारों की ही लड़ाई होती है और इसी के चलते आज भाजपा कांग्रेस को पीछे धकेल कर सत्ता पर काबिज है, परन्तु अब सवाल यह है कि विपक्षी एकता की कमी के चलते कांग्रेस किस तरह अपनी मुहीम को आगे बढ़ायेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा