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कांग्रेस का विघटनकारी रूप

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ए.ओ. ह्यूम की पार्टी, महात्मा गांधी की पार्टी, पंडित नेहरू जी की पार्टी, वल्लभ भाई पटेल की पार्टी, लाल बहादुर शास्त्री जी की पार्टी, इन्दिरा जी, राजीव जी, सोनिया जी और राहुल बाबा की कांग्रेस को क्या हो गया है? क्या वैचारिक और सैद्घांतिक स्तर पर कांग्रेस खोखली हो चुकी है। क्यों उसका विघटनकारी चेहरा बार-बार सामने आ रहा है। यह कांग्रेस के लिये कितना शर्मनाक है और अफसोसजनक है कि कर्नाटक में उसके मुख्यमंत्री सिद्घारमैया की सरकार जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर राज्य के अलग झंडे की मांग करे और इसे मान्यता दिलवाने के लिये 9 सदस्यों की समिति बना दे। एक भयंकर भूल पंडित नेहरू ने की थी। नेहरू और शेख अब्दुल्ला की मिलीभगत ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 लगाकर उसे राष्ट्र की मुख्यधारा से जानबूझ कर काट दिया। कालांतर में पाकिस्तान ने कबायलियों के वेष में आक्रमण कर दिया। आक्रमण के दौरान भी दोगली नीति अपनाई गई। सारे साक्ष्य चीख-चीख कर कह रहे हैं कि न केवल जानबूझ कर यह मामला यूएनओ पहुंचाया गया बल्कि जम्मू-कश्मीर का 2/5वां हिस्सा, जो पाक अधिकृत कश्मीर कहलाता है, षड्यंत्र के तहत उसे तश्तरी में रखकर पाकिस्तान को सौंप दिया गया। कश्मीर मुद्दा आज तक भारत के लिए नासूर बना हुआ है। संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे के तहत ही अलग झंडा फहराने की अनुमति है।

पूरे देश में एक देश, एक विधान और एक निशान के लिये प्रखर राष्ट्रवादी विचारक और राजनीतिज्ञ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया था। क्या राष्ट्र उनकी शहादत को भूल सकता है? यद्यपि कर्नाटक की सत्ताधारी कांग्रेस सरकार को गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि फ्लैग कोड के तहत सिर्फ एक झंडे को मंजूरी दी गई है। इससे स्पष्ट है कि एक देश का एक झंडा ही होगा। कर्नाटक की अलग सांस्कृतिक पहचान के नाम पर राज्य के कई कन्नड़ संगठन नये झंडे की मांग कर रहे थे। जब भाजपा के येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे उस समय उनके सामने भी ऐसी मांग रखी गई थी। उस समय के सांस्कृतिक मंत्री गोविंद एम. करजोल ने कहा था कि ‘फ्लैग कोड राज्य के लिये अलग झंडे की इजाजत नहीं देगा।’ हमारा राष्ट्रीय ध्वज देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता का प्रतीक है। यदि राज्य का झंडा होगा तो यह हमारे राष्ट्रीय ध्वज के महत्व को कम करेगा। दरअसल महाराष्ट्र की सीमा से सटे कर्नाटक के बेलगावी जिला की एक घटना झंडा विवाद का ट्रिगर है। बेलगावी नगर निगम में मराठी अस्मिता की बात करने वाले संगठन का बहुमत है लेकिन यहां पीले और लाल रंग का झंडा फहराया गया जिसे कन्नड़ ध्वज की तरह पेश किया जाता है। हाईकोर्ट में भी सरकारी वकील ने कहा कि इस झंडे को सरकारी मान्यता नहीं। इस पर कोर्ट ने सरकार से उसका पक्ष पूछा, उसके बाद राज्य सरकार ने कमेटी बना दी। आखिर सिद्घारमैया सरकार ने अलग झंडे की मांग क्यों की? कर्नाटक में अगले वर्ष मई में चुनाव होने हैं। इस मांग को विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। सिद्घारमैया कहते हैं कि क्या संविधान में कोई ऐसा प्रावधान है जो राज्य को अलग झंडे को अपनाने से रोकता है? अगर भाजपा चाहती है कि अलग झंडा नहीं चाहिए तो वह ऐसा करे।’

भारत में जर्मनी, अमेरिका और आस्ट्रेलिया जैसी संघीय प्रणाली नहीं है जहां राज्यों की अलग क्षेत्रीय पहचान है। भारत जैसे देश में विविधता में एकता का प्रतीक ही राष्ट्रीय ध्वज है। यह कितना शर्मनाक है कि देश के लिये देश की सबसे पुरानी पार्टी अभी भी वही दुर्भावनापूर्ण कुचक्र रच रही है। पहले देश विभाजन, फिर कश्मीर, सेना की खुली आलोचना, सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगना, पाकिस्तान जाकर मोदी को हटाने की सहायता मांगना और अब राज्य द्वारा अपने लिए अलग ध्वज मांगना। अलग झंडे के नाम पर कांग्रेसी कुचक्र तो चालू है ही, वहां हिन्दी विरोध का आन्दोलन भी होने लगा है। बहुत लोग अंग्रेजी विरोध में भी उतरने लगे हैं। कर्नाटक में राज्य दिवस मनाये जाने के दौरान भी अलग प्रकार का झंडा देखा जाता है। वह झंडा पीले और लाल रंग का होता है। इसे कन्नड़ कार्यकर्ता एम. राममूर्ति ने 1960 में डिजाइन किया था लेकिन कर्नाटक सरकार इसे कन्नड़ अस्मिता से जोड़कर लोगों की संवेदनाओं से खेल रही है। कांगेस खतरनाक खेल खेल रही है। सवाल यह भी है कि क्या कर्नाटक की पहचान तिरंगे से नहीं बल्कि अलग झंडे से होगी? क्या देश का खिलाड़ी जीतने पर तिरंगे के साथ राज्य का ध्वज भी लहरायेगा, शहीद हुए कर्नाटक के किसी जवान के शव को अलग झंडे में रखा जायेगा?

कर्नाटक कांग्रेस ने कहा कि हमने राज्य सरकार से सफाई मांगी है। हम सबके पास सिर्फ एक झंडा है और वह है राष्ट्र ध्वज। क्या अलग झंडे से अलगाववादी भावनायें जागृत नहीं होंगी? किसी राज्य में अपना अलग झंडा देशवासियों को बर्दाश्त नहीं होगा। कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व को यह समझना चाहिए कि लोगों की संवेदनाओं से खेलकर सत्ता प्राप्ति का घिनौना प्रयास उसके लिये भी घातक सिद्घ होगा। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भावनाएं हमेशा राजनीतिक हितों से ऊपर रखनी चाहिएं। सोनिया जी और राहुल को जवाब देना ही होगा कि क्या वे किसी राज्य के अलग झंडे से सहमत हैं या नहीं? वर्षों पहले मुझे किसी ने एक लम्बा झंडा गीत भेजा था, उसके पढऩे पर आंखों में आंसू आ जाते हैं। कवि ने थोड़े शब्दों में अपना दिल निकाल कर रख दिया। उसकी बानगी देखिए-
कितने शहीद गुमनाम रहे, कर गये मौतव्रती महाप्रयाण
मांगा नहीं मोल शहादत का, वह मनुज नहीं थे महाप्राण
न लिखी कभी कोई आत्मकथा, न रचा गया कोई वांग्मय
चुपचाप जहां में आये थे, चुपचाप जहां से विदा हुए
थी आंखों में तेरी छवि, तेरा ही अक्स, तेरा पयाम
हे राष्ट्रध्वज तुम्हें शत्-शत् प्रणाम।

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