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कोरोना : जीत जाएंगे जंग!

अमेरिका में फाइजर, ब्रिटेन में फाइजर और एस्ट्रोजेनेका, चीन में सिनोफार्म तथा रूस में स्पूतनिक के बाद भारत में विशेषज्ञों के पैनल ने सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया द्वारा तैयार की गई कोविशील्ड वैक्सीन को देश में इस्तेमाल करने की सिफारिश कर दी है।

अमेरिका में फाइजर, ब्रिटेन में फाइजर और एस्ट्रोजेनेका, चीन में सिनोफार्म तथा रूस में स्पूतनिक के बाद भारत में विशेषज्ञों के पैनल ने सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया द्वारा तैयार की गई कोविशील्ड वैक्सीन को देश में इस्तेमाल करने की सिफारिश कर दी है। इस वैक्सीन को आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रोजेनेका द्वारा तैयार किया गया है। विशेषज्ञों की सिमिति ने भारत बायोटैक द्वारा तैयार की गई स्वदेशी कोवैक्सीन के भी आपातकालीन इस्तेमाल की हरी झंडी दे दी गई है। अब यह तय है कि सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों वैक्सीन जरूरतमंदों को लगाने का काम शुरू हो जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपातकालीन उपयोग के लिए फाइजर वैक्सीन को अनुमति दी है। यह हैरानी की बात है कि अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देश फाइजर वैक्सीन की अनुमति पहले ही दे चुके हैं और वहां टीकाकरण शुरू भी हो चुका है, उसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फाइजर को अनुमति दी है। कोरोना के भय में जी रहे लोगों को वैक्सीन की मंजूरी से राहत मिली है। उम्मीद की एक मात्र किरण इसका कारगर टीका ही था। सब कुछ इसी सम्भावना पर टिका था कि जब तक कोरोना का टीका नहीं आ जाता तब तक सिर्फ बचाव उपायों से ही संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। भारत भी दुनिया के उन अग्रणी देशों में रहा जिन्होंने टीका विकसित करने के काम को एक चुनौती के रूप में लिया और सीरम इंस्टीच्यूूट, भारत बायो​टेक सहित कुछ कम्पनियों ने टीके तैयार ​किए। दुनिया की नजर भारत पर लगी हुई थी। दरअसल भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन की दुनिया में सबसे बड़े निर्माताओं में होती है। पुणे की सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया वैक्सीन के डोज के उत्पादन और दुनिया भर में बिक्री के लिहाज से यह दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन कम्पनी है। 53 साल पुरानी यह कम्पनी हर साल 1.5 अरब डोज बनाती है। कम्पनी के दो बड़े प्लांट पुणे में हैं। हालां​िक कम्पनी के नीदरलैंड और चेक रिपब्लिक में भी छोटे प्लांट्स हैं। कम्पनी 165 देशों को कोई 20 तरह की वैक्सीन की सप्लाई करती है। बनाई जाने वाली कुल वैक्सीन का करीब 80 फीसदी हिस्सा निर्यात किया जाता है। इनकी कीमत 50 सेंट प्रति डोज होती है। इस तरह से यह दुनिया की कुछ सबसे सस्ती वैक्सीन बेेचने वाली कम्पनियों में है। भारत बायोटेक ने भी कोरोना वैक्सीन तैयार कर ली है।
इसके अलावा भी भारत में छोटी-बड़ी कई कम्पनियां हैं जो पोलियो, निमो​िनया, मस्तिष्क ज्वर, रोटा वायरस, बीसीजी, मीजल्स और रुबेला समेत दूसरी बीमारियों के लिए वैक्सीन बनाती है।
यह भी भारत की ताकत का परिणाम है कि संकट के दौरान ही सीरम कम्पनी ने जोखिम उठाते हुए पांच करोड़ वैक्सीन तैयार कर ​ली हैं। कम्पनी ने यह भी फैसला किया है कि उसकी पहली प्राथमिकता भारत की जरूरतों को पूरा करना है, बाद में वैक्सीन दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशों को आपूर्ति की जाएगी। खास बात यह है कि कोविशील्ड आम आदमी के बजट में आने वाली सबसे सस्ती वैक्सीन होगी और इसे भारत में सम्भव तापमान में रखा जा सकता है।
अमेरिकी कम्पनी फाइजर और भारत बायोटेक ने भी अपनी वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग की अनुमति मांगी है लेकिन अभी इनके बारे में विचार किया जा रहा है। फाइजर को लेकर कम्पनी ने कुछ शर्तें रखी थीं। फाइजर का कहना है कि अगर उसकी वैक्सीन से किसी को साइड इफैक्ट होते हैं तो उससे मुआवजा नहीं मांगा जाना चाहिए। दूसरा फाइजर को माइनस सत्तर डिग्री सेल्सियस पर रखना अनिवार्य है जो भारत जैसे विकासशील देश में सम्भव नहीं है। ​ब्रिटेन के बाद भारत में विशेषज्ञों द्वारा कोवि​शील्ड को अनुमति देने से अब यह निश्चित है कि भारत अब कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई लड़ने को तैयार है। देशभर में आज कोरोना वैक्सीन का ड्राई रन चलाया गया। देश में एक लाख 75 हजार हैल्थ वर्कर का डाटा राज्यों ने तैयार करके केन्द्र को भेजा है। करीब 83 करोड़ सीरिंज का आर्डर दिया गया है और 35 करोड़ सीरिंज के लिए टैंडर आमंत्रित ​किया गया है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्द्धन तैयारियों की कमान सम्भाले हुए हैं। मै​िडकल और फ्रंटलाइन वर्कर्स को मुफ्त टी​का लगाए जाने की उनकी घोषणा भी सराहनीय है। उन्हें पोलियो उन्मूलन अभियान के तहत देशभर में पोलियो ड्राप्स देने का अनुभव प्राप्त है। सरकार की कोशिश है कि अगले छह महीने में करीब 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन की डोज दी जानी है। टीकाकरण का पूर्वाभ्यास इसलिए भी जरूरी है कि सघन आबादी वाले विशाल देश भारत में इस अभियान से जुड़े पहलुओं का आकलन जरूरी हो जाता है।
यह भी सुखद है कि भारत में कोरोना संक्रमण का ग्राफ लगातार ​गिर रहा है और रिकवरी रेट 97 फीसदी तक पहुंच गया है। टीकाकरण के लिए एक कारगर तंत्र की जरूरत होती है, निःसंदेह यह करोड़ों जिंदगियां बचाने का प्रश्न भी है। वैक्सीन के अनुकूल वातावरण और तापमान में उपलब्ध कराने के साथ ही उसका न्याय संगत वितरण भी जरूरी है। टीकाकरण अभियान को अपने लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए मेडिकल, पुलिस विभाग के साथ जिला प्रशासन और कई अन्य विभागों में बेहतर तालमेल जरूरी है, इसमें फ्रंट लाइन वर्करों का सहयोग भी रहेगा। टीकाकरण को लेकर भ्रम दूर करना भी जरूरी है।
भारत की विडम्बना यह है कि यहां वैक्सीन को भी हिन्दू-मुस्लिम में बांटने की साजिश रची जा रही है। कुछ संगठन इसे धार्मिक दृष्टि से देख रहे हैं। पूछा जा रहा है कि वैक्सीन हलाल है या हराम। कोरोना वैक्सीन को भी दलगत राजनीति से जोड़ा जा रहा है।  इस वक्त जरूरत है इंसानी जिन्दगियों को बचाने की। इस दौर में यही सबसे बड़ा मानव धर्म है। यद्यपि टीके वर्षों से प्रयोगों और परीक्षणों के गुजरने के बाद ही उपयोग के लिए  बाजार में लाए जाते हैं लेकिन वैज्ञानिकों ने सम्पूर्ण मानकों के तहत जितने कम वक्त में कोरोना के टीके तैयार किए हैं, इसके ​लिए वे बधाई के पात्र हैं। ऐसे में डरने की जरूरत नहीं। पर्याप्त जनभागीदारी से हम कोरोना वायरस से जंग जीत जाएंगे।

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