कोरोना वायरस ने पूरे विश्व को जिस तरह अपनी विकरालता में समेटने का स्वरूप धारण किया है उससे भारत जैसे देश का चिन्तित होना स्वाभाविक है परन्तु इस वायरस के डर से हाय-तौबा मचाने की जरूरत भी नहीं है मगर सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि भारत जैसे प्रजातान्त्रिक देश में इस संक्रमणकारी बीमारी को लेकर किसी भी प्रकार की राजनीति नहीं होनी चाहिए और इससे लड़ने की तैयारी पूरे देश को एक साथ एक आवाज में करनी चाहिए। प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह दक्षेस (सार्क) देशों के शासन प्रमुखों के साथ एक वीडियो कान्फ्रेंस के जरिये विचार-विमर्श करके पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को संयुक्त रूप से आवश्यक चिकित्सकीय कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है उसके पीछे भारत की मानवीय दृष्टि ही प्रमुख है।
भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, बंगलादेश, मालदीव, भूटान व नेपाल में कुल 150 कोराेना वायरस से संक्रमित लोगों की पुष्टि ही हुई है परन्तु इस वायरस के अन्य सम्पर्क में आने वाले लोगों में फैलने की संभावना होती है जिसकी वजह से वायरस से संक्रमित लोगों को एकान्त में रख कर उनका इलाज किया जाता है। इसी भयावहता के मद्देनजर भारत की सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया है जिससे सामान्य नागरिकों में लगातार सावधान रहने की प्रवृत्ति पनप सके। इससे बचाव के साधनों को भी सरकारें लगातार विभिन्न प्रचार माध्यमों से लोगों तक पहुंचा रही हैं। भारत की यही दृष्टि पड़ोसी दक्षेस देशों के नागरिकों के प्रति भी है। अतः श्री मोदी ने सभी सदस्य देशों को मदद देने की पेशकश भी की है। इन देशों के सभी लोगों का आपस में एक-दूसरे के साथ सदियों से भाईचारा रहा है और किसी हद तक सांस्कृतिक सांझेदारी के साथ एका भी रहा है। अतः क्षेत्रीय स्तर पर आपदा का मुकाबला करना पूरी तरह मानवतावादी कदम है। भारत के सन्दर्भ में हमें एक बात सबसे पहले समझनी चाहिए कि हमारे समाज में ऐसे तत्व हमेशा ही विद्यमान रहे हैं जो मानवीय त्रासदी को तिजारत करने का बेहतरीन मौका समझते हैं।
यह अंधी भौतिकतावादी दौड़ की निशानी है। ऐसी आपदाओं का कुछ लोग अंधविश्वासों से भी मुकाबला करने का अभियान चला देते हैं। प्रसन्नता की बात है कि योग गुरू बाबा रामदेव ने ऐसे सभी तत्वों के चेहरों से नकाब उतारने का सराहनीय कार्य किया है। बाबा रामदेव ने साफ कहा कि रोग या संक्रमण अथवा बीमारी का मुकाबला अंधविश्वासों से नहीं बल्कि वैज्ञानिक रूप से पुष्ट उपचारों से ही हो सकता है। वायरस के आक्रमण को रोकने के लिए मनुष्य के शरीर की ‘रोग प्रतिरोधक क्षमता’ को बढ़ावा देने वाली आयुर्वेदिक औषधियों या जड़ी-बूटियों का उपयोग सहायक होता है। अतः इनकी सही जानकारी प्राप्त करके प्रयोग करना सावधानी बरतने की श्रेणी का कदम माना जायेगा।
प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने के लिए सोयाबीन या दालों का अथवा दूध का सेवन और विटामिन सी की मात्रा बढ़ाने के लिए नींबू का उपयोग गुणकारी होगा। इससे संक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी मगर यह उपचार नहीं है। योग क्रियाएं भी शरीर को स्वस्थ बनाने में सहायक होती हैं। उनका यह कहना कि गौमूत्र से कोरोना जैसे वायरस का मुकाबला करने की सलाह देने वाले लोग सामान्य लोगों के साथ कदापि अन्याय ही करेंगे क्योंकि आयुर्वेदिक विज्ञान में गौमूत्र का यह गुण नहीं है। बाबा रामदेव भी इस मत से सहमत हैं कि राष्ट्रीय आपदा से मुकाबला करने के जो उपाय सरकार बताती है उन्हीं का अनुसरण सर्वश्रेष्ठ माना जाना चाहिए परन्तु मानव आपदा के तिजारतियों ने मुंह पर लगाये जाने वाले ‘मास्क’ और हाथ धोने वाले ‘सेनेटाइजर’ तक की न केवल कालाबाजारी शुरू कर दी बल्कि इनका जाली उत्पादन भी शुरू कर दिया। अब राष्ट्रीय आपदा घोषित होने के बाद सरकारों का भी यह कर्त्तव्य बनता है कि वे आवश्यक प्रतिरोधी वस्तुओं की सुलभता आम लोगों तक इफरात में इस तरह करायें कि उन पर आर्थिक बोझ न पड़े।
प्रधानमन्त्री शुरू से ही चेता रहे हैं कि कोरोना से घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि केवल सावधानी से ही इसे दूर भगाया जा सकता है। सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि इसके संक्रमण से प्रभावित लोग खुद को छिपाये नहीं बल्कि हिम्मत के साथ स्वयं को उपचार के लिए आगे करें। भारत के विभिन्न राज्यों में पीड़ित व्यक्तियों का सफल उपचार हो चुका है। ऐसा करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कोरोना हमारी ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने की क्षमता रखता है। स्कूल, कालेज, शापिंग माल, सिनेमा हाल, खेल प्रतिस्पर्धाएं या अन्य सार्वजनिक कार्यक्रम एक समय तक ही बन्द रखे जा सकते हैं। ऐसी कौन सी गतिविधि है जो मनुष्य अकेला होकर ही कर सकता है?
आर्थिक गतिविधियों के बिना उसके जीवन की गाड़ी कैसे खिंच सकती है? अतः स्वयं को ही सुखी रखने के लिए सावधानी रखनी बहुत जरूरी है और इसके लिए वैज्ञानिक उपायों का करना आवश्यक है। महाराष्ट्र, कर्नाटक व केरल को छोड़ कर अभी तक कोरोना भारत के सुदूर कस्बों व गांवों में नहीं गया है। शहरों के नागरिक सावधानी से चलते रहें तो यह पहुंच भी नहीं सकेगा। अतः पहली सावधानी बार- बार हाथ धोने की सबसे प्रमुखता के साथ निभानी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ऐसा करने से कोरोना के फैलने का खतरा कम होता जाता है। इसके साथ ही अफवाहों से बचना चाहिए और छुटभैये नेताओं के बरगलाने में नहीं पड़ना चाहिए। अगर हम गौर से देखें तो श्री मोदी द्वारा चलाया गया ‘स्वच्छ भारत अभियान’ क्या वैज्ञानिक धरातल पर नहीं खड़ा हुआ है?