भ्रष्टाचार में जड़ से संशोधन हो! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

भ्रष्टाचार में जड़ से संशोधन हो!

सितम्बर 1965 में जब स्व. लाल बहादुर शास्त्री की सरकार के खिलाफ रखे गये अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हुई थी तो उसका जवाब देते हुए शास्त्री जी ने कहा था

सितम्बर 1965 में जब स्व. लाल बहादुर शास्त्री की सरकार के खिलाफ रखे गये अविश्वास प्रस्ताव पर बहस हुई थी तो उसका जवाब देते हुए शास्त्री जी ने कहा था कि भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में किसी भी मन्त्री के खिलाफ प्राथमिक आधार पर सबूत पाये जाने पर उसे तत्काल त्यागपत्र देने के लिए कहा जाना चाहिए। यह कार्य केन्द्र व राज्य दोनों ही स्तर पर किया जाना चाहिए। कमोबेश कांग्रेस की सरकारों में इस नियम का पालन होता रहा। अटल बिहारी वाजपेयी की देश में पहली एेसी सरकार थी जो मूलभूत रूप से गैर-कांग्रेसी थी मगर इसने भी शास्त्री जी द्वारा रखे गये इस सिद्धान्त का अंशतः पालन किया और अपने रक्षामन्त्री श्री जार्ज फर्नांडीज का तहलका मामले में नाम आने पर थोड़ी ना-नुकर के बाद इस्तीफा ले लिया मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस सरकार में तीन एेसे मन्त्री थे (लालकृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी व उमा भारती) जिनके खिलाफ सीबीआई अदालत में ही अयोध्या कांड में चार्जशीट दाखिल हो चुकी थी और इन पर आपराधिक षड्यन्त्र रचने जैसी गंभीर धारा 120 (बी) लगाई गई थी। इसमें भी सबसे बड़ी विडम्बना यह थी कि श्री लालकृष्ण अडवानी को देश का गृहमन्त्री बना दिया गया था मगर इनमें से किसी ने भी अपने ऊपर निर्धारित किये आरोपों को बदलने की कोशिश नहीं की बल्कि जब श्री अडवानी के ऊपर से सीबीआई ने अपनी चार्जशीट बदलकर धारा 120 (बी) हटाई तो संसद में कोहराम मच गया और खुद प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को सफाई देनी पड़ी कि वह स्वयं सीबीआई के निष्पक्ष बने रहने की गारंटी देते हैं।

आज राज्यसभा में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (संशोधन) पर बहस हुई है जिसमें कांग्रेस पार्टी के उपनेता श्री आनन्द शर्मा ने सरकार से पूछा है कि इस मामले में वह स्पष्ट करे कि क्या देश में दो तरह का निजाम चल रहा है जिसमें सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष के लिए अलग-अलग नियम हैं। उन्होंने यह तथ्य रखा कि एक ही अपराध के लिए किस तरह चार-चार सरकारी एजेंसियां चार-चार अलग मुकद्दमे दर्ज कर सकती हैं। बेशक इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश जैसे राज्य से ही हुई है जहां जातिवादी दलाें ने शासन को पूरी तरह राजनीतिक कलेवर में बदलकर कानून की जगह अपनी पार्टियों का कानून लागू करने तक की हिमाकत की। इससे राज्य में भ्रष्टाचार को सांस्थनिक स्वरूप मिलता गया जो अभी तक बाकायदा जारी है। सवाल आज सबसे बड़ा यह पैदा हो रहा है कि क्या हम भ्रष्टाचार को केवल राजनैतिक चश्मे से देखने लगे हैं जबकि हमारे राजनैतिक तन्त्र में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार चुनावी तन्त्र में समाया हुआ है। सभी बुराइयों की जड़ महंगे होते चुनाव और इसमें खड़े होने वाले धन्नासेठ प्रत्याशी होते हैं। जब गंगा का स्रोत ही प्रदूषित हो चुका है तो उसमें बहने वाले जल में प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है अतः कोई भी पार्टी यह कहने की क्षमता नहीं रखती कि वह भ्रष्टाचार मुक्त है और सरकारें इन्हीं पार्टियों के प्रत्याशियों के गठन से बनती हैं अतः कोई भी सरकार यह कैसे कह सकती है कि वह भ्रष्टाचार से मुक्त है?

छुपे रुस्तम हर पार्टी में होते हैं। समय-समय पर उनके नाम उछलते भी हैं मगर उन्हें उनकी पार्टी ही अपने साये में छुपा लेती है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम भ्रष्टाचार को जड़ से साफ करें। राजनीतिज्ञों को निशाना बनाने से हम अपनी इसी मूल जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं और अपने लोकतन्त्र को और अधिक प्रदूषित होते देखते रहते हैं। कई राज्यों के मुख्यमंत्री जिस तरह भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाने के बावजूद साधू बने घूम रहे हैं उनके कारनामों को हम सिर्फ इसलिए नहीं ढक सकते कि मामले न्यायालय के निर्देश पर जांच के घेरे में हैं। सवाल तो प्रथम दृष्टया सन्देह की पुष्टि का होता है जिस पर लाल बहादुर शास्त्री का दिया हुआ पाठ लागू होना चाहिए। इसके साथ नये भ्रष्टाचार कानून में किसी भी तरह रिश्वत लेने वाले और देने वाले को एक ही तराजू पर रखकर नहीं तोला जा सकता। आज ही असम राज्य में प्रादेशिक लोक सेवा आयोग की लिखित परीक्षा में सफल होने के लिए धन देकर नौकरी पाने के मामले में 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें एक सांसद पुत्री व एक राज्यमंत्री की रिश्तेदार भी है। इन सभी ने बेरोजगार युवाओं को रिश्वत देने के लिए मजबूर किया होगा जिससे युवाओं को नौकरी मिल सके। इस मामले को नये भ्रष्टाचार कानून में किस दृष्टि से देखा जायेगा। देश में जब बेरोजगारी की स्थिति यह हो कि एक चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडी पास तक अभ्यर्थी हो और रेलवे में एक पद के लिए कम से 23 हजार प्रत्याशी हों तो इसमें युवा पीढ़ी के लोगों को रिश्वत लेने वालों के समकक्ष किस प्रकार रखा जा सकता है। नहीं भूला जाना चाहिए कि यह देश दीनदयाल उपाध्याय और डा. लोहिया का भी है जिन्होंने कहा था कि राजनीति किसी काे भी शक के आधार पर गुनाहगार घोषित नहीं करती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 + 7 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।