देश खौफ में है, कभी गोवंश की हत्या और कभी देश में बच्चा चोरों का गिरोह सक्रिय होने की अफवाहों के चलते मॉब लिचिंग की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। पिछले दो माह में अब तक भीड़ ने 25 लोगों की हत्या कर दी है। लोग बिना सोचे-समझे अफवाहों के मैसेज को पढ़ रहे हैं और आगे बढ़ा रहे हैं। इस तरह एक मोबाइल से होते हुए अफवाहों का ये खौफ दूसरे मोबाइल तक पहुंच रहा है। गांव-गांव शहर-शहर वायरल मैसेज लोगों को डरा रहे हैं। पिछले दो वर्षों में कश्मीर घाटी हो या असम, संवेदनशील इलाकों में गड़बड़ी होते ही सबसे पहले व्हाट्सएप और अन्य इंटरनेट सेवाएं रोकनी पड़ती हैं। व्हाट्सएप तो अफवाहों का प्राइमरी सोर्स बनकर उभरा है। लगातार हो रही हत्याओं से परेशान सरकार ने मामला व्हाट्सएप कंपनी से उठाया तो कंपनी ने भी कैलिफोर्निया से जवाब भेज दिया है कि वह भी इस तरह के हमलों से भयभीत है। अफवाहों और गलत खबरों को सरकार, सिविल सोसायटी आैर तकनीकी कंपनियां मिलकर इसे रोक सकती हैं। कंपनी इस दिशा में काम कर रही है और नए फीचर जोड़ रही है। सब जानते हैं कि अफवाहों को रोकने के लिए कोई राकेट साइंस नहीं है।
सोशल मीडिया जिस तरह से असामाजिक हो रहा है, व्हाट्सएप सीरियल किलर बन चुका है तो बड़ा सवाल उठता है कि क्या देश के करोड़ों लोग अपनी तात्कालिक जिम्मेदारियों से पलायन कर चुके हैं जिनको देश के सामने खड़ी चुनौतियों से कोई सरोकार नहीं, समाज से कोई सीधा सम्पर्क नहीं रहा। देश मोबाइल, टेबलेट, लैपटॉप की गिरफ्त में है। इन सभी के असीमित प्रचलन ने भारतीय बच्चों और किशोरों में अनेक विकृतियों को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम किया है। यूनिसैफ की एक रिपोर्ट में चिन्ता जताई गई है कि स्मार्ट फोन के इस्तेमाल से बच्चों में ‘बेडरूम कल्चर’ बढ़ रहा है। इंटरनेट के अनवरत इस्तेमाल से लोगों का जीवन एकाकी आैर असार्वजनिक हो रहा है। 15 वर्ष का किशोर इंटरनेट का उसी तरह इस्तेमाल करता है जैसे वह 25 साल का परिपक्व युवा हो। इंटरनेट पर चलने वाली डार्क वेबसाइट्स ने बच्चों की यौन जिज्ञासा को बढ़ा दिया है अंततः उनके यौन जनित क्रियाओं के विश्व स्वरूप से रूबरू होने का घातक रास्ता खोल दिया है। इंटरनेट गेमों की वजह से बच्चों और किशोरों में मौतों आैर आत्महत्याओं का दौर बढ़ रहा है।
एक दौर ऐसा भी आया कि ब्लूव्हेल गेम के चलते कई किशोरों और युवाओं की जान गई। यह कितना शर्मनाक है कि पोर्न फिल्म देखने पर 8 से 11 वर्ष के लड़कों ने चार वर्षीय बालिका से दुष्कर्म का प्रयास किया। टच स्क्रीन फोन आैर टेबलेट के अधिक इस्तेमाल से बच्चों की अंगुलियों की मांसपेशियां सही ढंग से विकसित नहीं हो पा रही हैं। उनकी अंगुलियां पेंिसल या पेन भी ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रहीं। सर्वे बता रहे हैं कि इन सब चीजों के इस्तेमाल से डिस्आर्डर, चिड़चिड़ापन और एंग्रीनेस की प्रवृत्ति में भी इजाफा हो रहा है। मोबाइल को भी लोग अपना गहन दोस्त मान बैठे हैं। उन्हें लगता है जो भी मैसेज आता है, वह सच है। बिना सोचे-समझे वे इसको फारवर्ड कर देते हैं। ऐसा लगता है कि लोग सोशल फोबिया का शिकार हो चुके हैं। उन्होंने सोचने, समझने की शक्ति खो दी है। व्यक्तित्व के विकास के लिए हर व्यक्ति की समाज में सक्रिय भागीदारी की जरूरत है। बुरा-भला समझने की ताकत लोगों को समाज में रहकर और जीवन के अनुभवों से आती है। समाज से कटे हुए लोग समाज का अच्छा कैसे सोच सकते हैं। भारत में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ वर्चस्व वाले समूहों द्वारा जाति और धर्म आधारित हिंसा कोई आज की बात नहीं।
आज समाज जिस ढंग से बदल चुका है उससे भारत नैतिक, सामाजिक और वैधानिक रूप से अधोगति को प्राप्त हो रहा है। अफवाहों की प्रकृति अस्थाई होती है। जैसे ही अधिकारी या विश्वसनीय स्रोत द्वारा घटना की सच्चाई स्पष्ट की जाती है, अफवाह समाप्त हो जाती है। अफवाहें समाज में तनाव, अनिश्चितता तथा भय पैदा करती हैं और बड़ी घटनाएं भी हो जाती हैं। देखना होगा कि अफवाह कौन फैला रहा है, कहीं यह असामाजिक तत्वों का षड्यंत्र तो नहीं। जिम्मेदारी समाज की भी है। हर मैसेज पर यकीन कर लोगों को मारने-पीटने के लिए दौड़ पड़ने की प्रवृत्ति अच्छी नहीं। मैसेज को बिना सोचे-समझे आगे मत बढ़ाइए और अपने बच्चों को भी सीख दीजिए कि वह ऐसा नहीं करें। अभिभावकों को चाहिए कि देश की भावी पीढ़ी को मौजूदा दौर से निकाल कर आदर्श नागरिक बनाने का प्रयास करें। अगर हमने बहुत देर कर दी तो फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे।