देश के निर्यात में लगातार तीसरे महीने भी गिरावट का दौर जारी रहा। फरवरी में निर्यात 8.8 फीसदी घटकर 33.88 अरब डॉलर रह गया। जबकि आयात भी 8.21 फीसदी घटकर 51.31 अरब डॉलर रह गया। आयात-निर्यात घटने का सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि वैश्विक स्तर पर मांग में नरमी आई है। यद्यपि विपरीत वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद भारतीय निर्यातकों ने गति को बनाए रखा है। व्यापार घाटा भी कम हुआ है। फिर भी व्यापार घाटा कम करने के लिए बहुत प्रयास करने होंगे। चालू वित्त वर्ष के 11 महीनों के दौरान निर्यात के लिहाज से नकारात्मक वृद्धि दर्ज करने वाले क्षेत्रों में इंजीनियरिंग सामान, रत्न और आभूषण, सूती धागे, कपड़े और प्लास्टिक शामिल हैं। अप्रैल-फरवरी 2022-23 के दौरान इंजीनियरिंग निर्यात घटकर 98.86 अरब डॉलर रह गया, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 101.15 अरब डॉलर था। रत्न और आभूषण निर्यात अप्रैल-फरवरी 2022-23 के दौरान घटकर 35.21 अरब डॉलर रह गया, जो एक साल पहले इसी अवधि में 35.32 अरब डॉलर था।
सकारात्मक वृद्धि दर्ज करने वाले क्षेत्रों में पैट्रोलियम उत्पाद, रासायन औषधि और इलैक्ट्रॉनिक सामान, चावल और रेडीमेड वस्त्र शामिल हैं। व्यापार एक युद्ध की तरह होता है और व्यापार को युद्ध की तरह ही संचालित किया जाना चाहिए। वैसे तो आयात-निर्यात एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन निर्यात का घटना भारत के लिए चिंता का विषय है। इससे व्यापार घाटा बढ़ता है और देश की विदेशी मुद्रा की देनदारी भी बढ़ती है। पूरे हालात को देखते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय इस बात पर गहन मंथन कर रहा है कि गैर जरूरी वस्तुओं का आयात कैसे कम किया जाए। सम्भव है कि आने वाले दिनों में सरकार कुछ उपायों की घोषणा करे। आयात नियमन को लेकर उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग आईटी और इलैक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय, इस्पात मंत्रालय से राय ली जा रही है। फिलहाल गैर जरूरी 371 वस्तुओं के आयात पर निगाह रखी जा रही है। भारतीयों का सोने के प्रति बहुत मोह है और आज की युवा पीढ़ी विदेशी इलैक्ट्रॉनिक उपकरण ही पसंद कर रही है। अगर भारत में मोबाइल फोन बनाए जाते हैं तो उनमें लगने वाली िचप विदेशों से ही मंगाई जा रही है। एक देश जो अंतरिक्ष, सॉफ्टवेयर, आटो मोबाइल, मिसाइल समेत कई क्षेत्रों में सुपर पावर है। वह टैक्नोलॉजी से जुड़ी वस्तुएं क्यों नहीं बना सकता। जहां तक भारत के औषधि उद्योग का संबंध है, इस बारे में एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडियंट (एपीआई) का एक ज्वलंत उदाहरण है। आज से 20 वर्ष पूर्व हमारी एपीआई आवश्यकताओं की 90 प्रतिशत आपूर्ति भारत से ही होती थी, जबकि चीन और अन्य देशों की डंपिंग के कारण एपीआई उद्योग नष्ट हुआ और आज इसकी 90 प्रतिशत आपूर्ति आयात से होती है। हमारे दवा उद्योग की इतनी बड़ी निर्भरता केवल आर्थिक ही नहीं, स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा साबित हो रही है।
पीएलआई के साथ सरकार को अन्य उपाय भी अपनाने होंगे, ताकि भविष्य में चीनी आयात नए बन रहे एपीआई उद्योग को नष्ट न कर सके। यहां सवाल केवल चीन से आने वाले प्रत्यक्ष आयातों का ही नहीं है। देश में बड़ी मात्रा में चीनी आयात विभिन्न आसियान देशों के माध्यम से भी होकर आ रहे हैं। भारत का आसियान देशों से मुक्त व्यापार समझौता है, जिसके तहत शून्य आयात शुल्क पर अधिकांश आयात आते हैं।
इसी तरह भारत में चल रही कई विदेशी आटो मोबाइल कम्पनियां भी कलपुर्जे विदेशों से मंगा रही हैं। भारत वस्त्र एवं परिधान हेतु कच्चे माल एवं मध्यवर्ती वस्तुओं के क्षेत्र में पर्याप्त क्षमता रखता है, लेकिन उसमें भी विदेशों से भारी आयात हो रहा है। यह सर्वविदित है कि भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तेल आयात करता है। इसलिए हमारा आयात बिल काफी बढ़ रहा है। जिस तरह का वैश्विक वातावरण बन रहा है उससे संकेत मिल रहे हैं कि वैश्विक मंदी दस्तक दे चुकी है। ऐसे में गैर जरूरी वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है। भारत में सामर्थ्य है। हम जब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हैं तो हम गैर जरूरी उत्पादों को यहीं बना सकते हैं। इसके लिए हमें गम्भीर प्रयास करने होंगे। अगर यह उत्पाद भारत में ही बनने लगे तो मैन्यूफैक्चरिंग जीडीपी में बढ़ौतरी होगी और साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। देश में हर साल करीब 11,500 वस्तुओं का आयात होता है, अगर इसमें से आधी भी भारत में बनने लगें तो हमारा आयात बिल काफी कम होगा और व्यापार घाटा पाटने में सहजता होगी। भारतीयों को भी विदेशी वस्तुओं का मोह छोड़ना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा