दिल्ली : यह तस्वीर बदलती क्यों नहीं - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

दिल्ली : यह तस्वीर बदलती क्यों नहीं

राजधानी दिल्ली में मानसून की वर्षा से लोगों को गर्मी से राहत तो मिली लेकिन मूसलाधार वर्षा ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया कि इसने चार लोगों की जान ले ली।

राजधानी दिल्ली में मानसून की वर्षा से लोगों को गर्मी से राहत तो मिली लेकिन मूसलाधार वर्षा ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया कि इसने चार लोगों की जान ले ली। कहीं सड़क तो कहीं बस डूब गई, तो कहीं दफ्तरों में पानी भर गया। दिल्ली के व्यस्ततम रहने वाले आईटीओ के पास कई घर देखते ही देखते नाले में बह गए। सबसे दिल दहलाने वाली तस्वीर मिंटो ब्रिज की रही।
जलभराव के कारण एक ड्राइवर का शव भी बहता नजर आया। कुछ घंटों की बारिश ने राजधानी के जनजीवन को ठप्प कर दिया। दिल्ली में मानसून के दिनों में यमुना में तो बाढ़ आती ही है और यमुना के तटीय और उसके साथ सटी बस्तियों में भी पानी भर जाता है। कई वर्षों से लगातार समाचार पत्र मिंटो ब्रिज के नीचे पानी में डूबी बस की फोटो प्रकाशित करते आ रहे हैं।
मिंटो रोड का खतरनाक मंजर कोई नया नहीं है। इस रोड पर जल जमाव की समस्या 1950 के दशक से चली आ रही है। सवाल यह है कि यह तस्वीर बदली क्यों नहीं? दिल्ली के दिवंगत इतिहासकार और चर्चित लेखक आर.वी. स्मिथ के अनुसार यह ब्रिज 1933 में बना था। 1958 में जल जमाव से निजात पाने के लिए पंप सैट इंस्टाल किए गए थे।
1958 से आज 62 साल हो गए लेकिन सिविक एजैंसीज अभी तक यहां बारिश के कारण जल जमाव को लेकर कोई हल नहीं निकाल पाई। यह अंडरब्रिज दीनदयाल उपाध्याय मार्ग और स्वामी विवेकानंद मार्ग के मुख्य ट्रैफिक जंक्शन पर स्थित है। इस रोड पर एक तरफ कनाट प्लेस और दूसरी तरफ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन है, इसके साथ ही पुरानी दिल्ली और  दरियागंज   को भी यह रोड जाता है।
समस्या यह है कि इसमें सभी अप्रोच रोड्स से गहरी ढलान की ओर पानी आता है, इसका कोई आउटलेट नहीं। 1967 में वाटर फ्लो रोकने के लिए ढलान को चौड़ा किया गया था, लेकिन इससे भी कोई मदद नहीं मिली। 1980 के दशक में दीनदयाल उपाध्याय मार्ग के दोनों ओर स्टार्म वाटर नालियां बनाई गईं, परन्तु उससे भी काम नहीं बना।
हैरानी की बात तो यह है कि अभी तक कोई भी एजैंसी फिक्स क्यों नहीं कर पाई। 2010 के कॉमनवैल्थ गेम्स के दौरान पुल के दो और ट्रैक को बढ़ाने की योजना थी और इसकी ऊंचाई बढ़ाने के लिए नीचे से सड़क को समतल किया गया था लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। यह ब्रिज एक हैरिटेज स्ट्रक्चर है लेकिन समस्या का समाधान तो होना ही चाहिए। जहां तक दिल्ली में वर्षा से जल जमाव का सवाल है, इसके लिए जिम्मेदार है अनियोजित विकास।
दिल्ली में हर वर्ष आबादी का बोझ बढ़ता जा रहा है। दूसरे राज्यों के लोग रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। इन लोगों को रहने के लिए छत्त भी चाहिए। दिल्ली में भू-माफिया और राजनीतिज्ञों की सांठगांठ से अवैध कालोनियां बसाई जाती रही और दिल्ली का मास्टर प्लान नाकाम होता गया।
अनधिकृत कालोनियों के रहने वाले लोग एक बड़ा वोट बैंक बन गए और हर चुनाव में अनधिकृत कालोनियों चुनावी मुद्दा बनी। इन कालोनियों में रहने के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहा। लोग बिना पानी, बिजली के भी रहते थे। हालांकि अब अनधिकृत कालोनियों में बुनियादी जन सुविधायें उपलब्ध कराई गई हैं। दिल्ली में राज्य सरकार है, स्थानीय ​निकाय दिल्ली नगर निगम है और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद है लेकिन स्थानीय निकायों के सामने इतनी बड़ी जनसंख्या को जन सुविधायें उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है।
बढ़ती आबादी के सामने राजधानी का बुनियादी ढांचा चरमर्राने लगता है। दिल्ली को मिनी भारत कहा जाता है। आप पार्टी के उदय होने से पहले यहां की राजनीति कांग्रेस और भाजपा में ही बंटी हुई थी। भाजपा का उदय और ​ विकास इसी शहर की राजनीति से अपना सिक्का जमाने के बाद पूरे देश में फैला है। कांग्रेस की शीला दीक्षित ने लगातार दिल्ली में 15 वर्षों तक शासन किया। उनके कार्यकाल में दिल्ली का अभूतपूर्व विकास हुआ।
नए फ्लाईओवर बने। भाजपा में मदन लाल खुराना के शासनकाल में मैट्रो परियोजना शुरू की गई। दिल्ली के विकास का विजन रखने वाले मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली को सिंगापुर जैसा शहर बनाने का संकल्प लिया। इसे लन्दन-पैरिस बनाने के वायदे किए गए लेकिन दिल्ली में जल जमाव की समस्या खत्म नहीं हुई। आप सरकार ने भी दिल्ली की सड़कों को विदेशी शहरों की सड़कों की तरह बनाने की घोषणा की लेकिन जल निकासी की व्यवस्था ज्यों की त्यों है। जब भी समस्या सामने आती है तो सियासत शुरू हो जाती है।
सब एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने लग जाते हैं। तीखी बयानबाजी शुरू हो जाती है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि इस साल सभी एजैंसियां चाहे तो वो दिल्ली सरकार की हों या भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम की, कोरोना की वजह से उन्हें कई कठिनाइयां आई। यह वक्त एक-दूसरे पर दोषारोपण का नहीं है। सबको मिलकर अपनी जिम्मेदारियां निभानी हैं। दिल्ली एक प्राचीन शहर है। जमीन के नीचे जल निकासी की पाईप लाइन भी खस्ता हो चुकी हैं।
जरूरत है नए सिरे से प्रबंधन की। वर्षा से पहले गटरों और नालों की सफाई शायद ही अच्छे ढंग से होती है। काफी कुछ कागजों पर ही होता है। कोरोना काल में तो सफाई कार्य प्रभावित हुआ है। सिविक एजैंसियों को परस्पर तालमेल बनाकर जल ​िनकासी का नियोजन नए सिर से करना होगा।
महानगर के लिए नई योजनायें तैयार करनी होंगी। एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से कुछ नहीं होगा। महानगर की समस्याओं को हल करने के लिए सभी राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से उठकर युद्ध स्तर पर तैयारी करनी होगी और विदेशों की तर्ज पर नई प्रौद्योगिकी अपनानी होगी। वर्षा के जल संचय की व्यापक योजना को भी साकार रूप देना होगा तभी दिल्ली रहने योग्य बनेगी। यह तस्वीर बदलनी ही होगी।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

12 + 15 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।