क्या विकास कुर्बानी मांगता है? वैसे हमारे देश में विकास के नाम पर लोगों को उजाड़ दिया जाता है और वर्षों तक उनके पुनर्वास के बारे में सोचा नहीं जाता। आज किसान मर रहे हैं, छात्र मर रहे हैं, संवेदनाएं मर रही हैं, जिज्ञासाएं मर रही हैं। कभी पुल गिर जाता है, कभी पुरानी इमारतें गिर जाती हैं, कभी तूफान से मकान ढह जाते हैं और लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जाता है। यह तो प्रकृति का नियम है- जो संसार में आया है, उसे एक दिन तो जाना ही है। हादसे तो रोजाना ही होते हैं लेकिन दुःख इस बात का है कि मानवीय चूक या लापरवाही से हादसे में सड़क पर चलते लोगों की मौत हो जाती है। वाराणसी में कैंट रेलवे स्टेशन के पास कई महीने से बन रहे ओवरब्रिज का भारी-भरकम गार्डर क्रेन का संतुलन बिगड़ जाने से गिरा और उसने 18 लोगों की जान ले ली। ओवरब्रिज के नीचे तो पहले से ही जाम लगा हुआ था। गार्डर गिरने के बाद तो चीखो-पुकार मच गई। गार्डर इतना भारी था कि गाड़ियां ही पिचक गईं और लोगों ने भीतर ही कराहते-कराहते दम तोड़ दिया। हर दर्जे की लापरवाही यह कि हादसा स्थल पर भीड़ प्रबन्धन का इंतजाम न होने से चिकित्सा कर्मियों को राहत कार्य में दिक्कत हुई। घायलों को अस्पताल पहुंचाने का कार्य दो घण्टे बाद शुरू हुआ। भारी-भरकम गार्डर को हटाना लोगों आैर पुलिस के बस की बात नहीं थी। क्रेन से गार्डर हटाए जाने के बाद से राहत कार्य शुरू हो पाया।
चौकाघाट-लहरतारा फ्लाईओवर निर्माण से पहले ही विवादों में रह चुका है। पिछले वर्ष जुलाई में इस फ्लाईओवर के डिजाइन को लेकर सवाल उठ खड़े हुए थे। इस फ्लाईओवर को पूरा करने की समय-सीमा दिसम्बर 2017 थी, जिसे घटाकर मार्च 2017 कर दिया गया था लेकिन बाद में फिर से इसकी मियाद बढ़ाई गई थी। हादसे से एक दिन पहले ही कमिश्नर साहब ने फ्लाईआेवर के कार्य को हर हाल में अक्तूबर माह तक पूरा कराए जाने का निर्देश भी अफसरों को दिया था। लोगों का कहना है कि पुल का निर्माण सही ढंग से नहीं हो रहा था क्योंकि पुल कांपता हुआ महसूस हो रहा था। पुल निर्माण में तेजी आैर लापरवाही से इतना भीषण हादसा हुआ कि देखने वालों की रूह कांप उठी।दिल्ली में मैट्रो रेल परियोजना के निर्माण कार्यों को लोगों ने देखा है कि किस तरह निर्माण कार्य से पहले लोगों के आवागमन के लिए एक तरफ से रास्ता तैयार किया जाता था ताकि निर्माण कार्य में कोई बाधा नहीं आए और लोगों को भी परेशानी का सामना न करना पड़े। हैरानी की बात तो यह है कि भारी-भरकम गार्डर उठाकर रखने का काम अक्सर रात के समय किया जाता है ताकि हादसे से बचा जा सके। रात के वक्त लोग भी सड़कों पर नहीं होते परन्तु दिन के समय जब ट्रैफिक सड़कों पर हो, वह भी फ्लाईओवर के नीचे तो फिर गार्डर रखने की जल्दबाजी क्यों की गई? पिरयोजना से जुड़े अधिकारी भले ही यह कहें कि कोई गलती नहीं हुई। हादसा तो क्रेन का संतुलन बिगड़ने से हुआ है लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते कि लोगों की जान की परवाह किए बिना जोखिम भरा काम दिन में क्यों जारी था? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी को क्योटो बनाने का वादा किया है, हो सकता है कि निर्माण कार्य जल्दी पूरा करने के लिए अधिकारी आैर कम्पनी दबाव में हों। हादसे पर कार्रवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने 4 अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया है। जांच के लिए कमेटी भी गठित कर दी गई है। सवाल यह है कि समाजवादी पार्टी के शासन में शुरू हुआ यह फ्लाईओवर अब तक पूरा नहीं हुआ। इस पुल के कारण सर्विस लेन पर ट्रैफिक घण्टों जाम रहता है।
लोग कई महीनों से चिल्ला रहे थे कि पुल हिल रहा है लेकिन अधिकारियों और राज्य सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब लोगों की जान चली गई तो सरकार ने तुरन्त मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे का ऐलान कर दिया। क्या इस फ्लाईओवर के निर्माण में भ्रष्टाचार की बू नहीं आ रही है? इस हादसे को महज हादसा नहीं माना जा सकता, यह सीधे-सीधे लोगों की जान से खिलवाड़ का मामला है। देश में परियोजनाओं की अवधि क्यों बढ़ाई जाती है ताकि बंटवारे का काम चलता रहे। जो पुल देश के विकास के लिए बनाए जाते हैं, उनका फायदा लोगों को भी मिलता है लेकिन पुल अगर जानलेवा साबित होता है तो फिर ऐसे पुलों का क्या फायदा।