राजधानी दिल्ली में पुलिस समाज को झकझोर देने वाले श्रद्धा हत्याकांड की कड़ियां जोड़ने में जुटी हुई है। श्रद्धा के शव के टुकड़े तलाशने से लेकर आरोपी आफताब से सच उगलवाने में दिन-रात एक किए हुए है। इसी बीच दिल्ली में एक महिला और उसके बेटे को पिता की हत्या कर शव के टुकड़े-टुकड़े कर फ्रिज में रखने और अगले कई दिनों तक उन टुकड़ों को अलग-अलग जगह ठिकाने लगाने की घटना ने बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे पहले उत्तर प्रदेेश के आजमगढ़ में भी ऐसे ही जघन्य हत्याकांड का पर्दाफाश हुआ है। श्रद्धा हत्याकांड को लेकर अपराध को धर्म और जाति की दृष्टि से देखा जा रहा है लेकिन राजधानी में पांडवनगर में हुए हत्याकांड को लेकर क्या कहा जाए? एक तरफ लव जेहाद पर रोक की मांग को लेकर शोर-शराबा मचाया जा रहा है। समाज का एक वर्ग लिव-इन रिलेशनशिप पर सवाल उठा रहा है। तीखी टिप्पणियां की जा रही हैं। जो कुछ समाज में हो रहा है, वह पाश्विकता की हद है। वैवाहिक हो या सहमति संबंध, हिंसात्मक व्यवहार और अंत को बीमार दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता। यह सवाल लगातार उठाया जा रहा है कि हिन्दू लड़कियां ही क्यों मुस्लिमों के जाल में फंस जाती हैं। लेकिन पांडव नगर हत्याकांड में एक हिन्दू महिला ने अपने तीसरे पति को बेटे के साथ मिलकर ठिकाने लगा दिया। इसको लेकर कोई टिप्पणी करने को तैयार नहीं होगा। बढ़ते शहरीकरण, समाज में आए खुलेपन के चलते वर्जनाएं टूट रही हैं। सोशल मीडिया के प्रभाव में समाज में बहुत कुछ बदला है। सर्वोच्च अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में लिव-इन रिलेशनशिप को न तो अपराध और न ही अनैतिक माना था। संविधान के अनुच्छेद-21 से जोड़कर इसकी व्याख्या की गई थी कि कोई भी बालिग अपनी मर्जी से साथी के साथ रहने को स्वतंत्र है।
अदालत ने एक अंतराल के बाद लिव-इन को शादीशुदा का दर्जा देने की बात भी कही थी और ऐसे संबंधों से जन्में बच्चों को भी कई अधिकार दिए थे। इससे पहले भी श्रद्धा की तरह महिलाओं की क्रूर हत्या हो चुकी है। 1995 में दिल्ली प्रदेश यूूथ कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की गोली मार कर हत्या कर दी थी और शव के टुकड़े-टुकड़े कर उन्हें घर से दूर बगिया रेस्टोरेंट के तंदूर में जलाने के लिए ले गया था। सुशील शर्मा को कई सालों तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी। इस हत्याकांड को तंदूर कांड के नाम से जाना जाता है। 2011 में सुमित हांडा नामक व्यक्ति पर अपनी दक्षिण अफ्रीकी मूल की पत्नी की हत्या के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े कर फैंकने का आरोप लगा था।
श्रद्धा हत्याकांड को यद्यपि साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया है, लेकिन हत्या कर शव को टुकड़े-टुकड़े कर देने के घिनौने अपराधों ने सबको सकते में डाल दिया है कि कोई ऐसा अपराध कैसे कर सकता है। हत्यारा पुरुष हो या महिला उसके दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि उसने हत्या करने के बाद ऐसा क्रूर कदम उठाया? ऐसा अपराध करने की मानसिकता एक दिन में विकसित नहीं होती। यह देखना भी जरूरी है कि अपराध करने वाला व्यक्ति किस परिवेश में पला-बढ़ा है। उसकी बचपन से लेकर बड़े होने तक उसकी कैसी सोच रही है और उसके आचरण पर उसका कैसा प्रभाव पड़ा है। ऐसे लोगों के लिए अपनी जरूरत को पूरा करना, चीजों को नियंत्रण में लेना ही सर्वोपरि हो जाता है और सही गलत का ज्ञान होने के बावजूद वो तार्किक समझ खो बैठते हैं। आए दिन हत्याओं की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती हैं और ऐसे घिनौने अपराध की खबरें ऐसे सवाल भी उठाती हैं कि रिश्तों में होने वाले ऐसे अपराध समाज को किस ओर ले जा रहे हैं। हत्याओं के पीछे यौन पिपासा भी एक बड़ा कारण रही है। पांडव नगर हत्याकांड में यह खुलासा हुआ है कि महिला ने अपने तीसरे पति की हत्या इसलिए की क्योंकि वह बेटी और बहू पर गलत नजर रखता था। बढ़ती हत्याओं के पीछे कई सामाजिक पहलू भी हैं।
पहले संबंधों में पारिवारिक मूल्य होते थे। आपस में जुड़ाव होता था और भौतिक चीजों से ज्यादा परिवार को प्राथमिकता दी जाती थी लेकिन आज के दौर में इंसानियत और संवेदनाओं को समझने की बजाय हर कोई भौतिकवाद के पीछे भाग रहा है और पारिवारिक मूल्य खत्म हो चुके हैं। पति-पत्नी में भी भावनात्मक जुड़ाव नहीं रहा। बस केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक-दूसरे का सहारा लेते हैं। हमारी समस्या यह है कि हम अपराध को धार्मिक चश्मे से देखना शुरू कर देते हैं। अपराधी की न कोई जाति होती है और न कोई धर्म होता है। अपराधों को अपराध की दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए। मथुरा में यमुना एक्सप्रेस-वे के किनारे बैग में मिली लाश की गुत्थी भी पुलिस ने सुलझाई तो पता चला कि इसमें पिता ने ही बेटी की हत्या की है। हत्या इसलिए की गई कि लड़की ने परिवार की मर्जी के बिना दूसरी जाति के युवक से शादी कर ली थी। आजमगढ़ में एक युवक ने अपनी पूर्व प्रेमिका की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि उसने किसी और से शादी कर ली थी। आरोपी इतने पर भी नहीं रुका। उसने लड़की की हत्या करने के बाद उसके शव के 6 टुकड़े कर दिए। समाज में बदलाव आने के साथ-साथ परम्परागत वर्जनाएं भी टूटती हैं। प्रदूषित सामाजिक हवाओं के रुख को कैसे बदलें यह सवाल सबके सामने है। हत्याएं पाश्विकता की पराकाष्ठा है। क्या समाज अपनी मानसिकता बदलेगा, यह सवाल सबके सामने है?
आदित्य नारायण चोपड़ा