देश और विदेश में क्या फर्क है तथा भारतीय और विदेशी में क्या अंतर है, यह सवाल बहुत ही अहमियत रखता है। इसी से जोड़कर अगर हम असम की बात करें और पिछले दिनों एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) से निकले निष्कर्ष पर पहुंचें तो खुद पता लग जाएगा कि भारतीय और विदेशी कौन है? स्वतंत्र भारत के असम जैसे सीमांत प्रदेश में अगर लगभग 40 लाख से ज्यादा लोग विदेशी बसे हुए हैं तो बताइए वो यहां कैसे रहते रहे और कौन उन्हें पनाह देता रहा? अब राजनीतिक प्रश्न पर आते हैं कि 40 लाख लोग वोटर हैं या नहीं, इसके अलावा अनेक ऐसे विदेशी अर्थात असम में रहने वाले लोग बंगलादेशी हैं, जिनके पक्के वोटर कार्ड और आधार कार्ड बन चुके हैं। पूरे देश में सुप्रीम कोर्ट इन अवैध नागरिकों अर्थात विदेशियों की पहचान के लिए प्रक्रिया चला चुका है जिसे लेकर पूरे देश में बवाल मच गया है। देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इस रिपोर्ट का अगर संसद में खुलासा किया है तो बताओ क्या गुनाह किया है? जब हम इस विदेशी नागरिकता वाले मामले को राजनीति के तराजू पर नफे और नुकसान में तौलते हैं तो उन लोगों को तकलीफ होगी जो सत्ता की खातिर यह व्यापार करते आ रहे हैं। एक के बाद एक सवाल खड़े हो रहे हैं। चाहे मामला भारत-पाक विभाजन का हो जब मुसलमान और हिन्दू की दो कौमें दो मजहबों में बंट गईं। एक पाकिस्तान में रही, दूसरी हिन्दुस्तान में लेकिन लाखों पाकिस्तानी भारत-पाक विभाजन के बाद भारत में ही बस गए और आज हिन्दू-मुसलमान को लेकर बराबर वक्त-बेवक्त देश में बवाल मचते रहते हैं परंतु इसी कड़ी में 1970 के अंत में जब भारत में पूर्वी पाकिस्तान से बंगलादेशी नागरिक पाकिस्तान के जुल्मों से आिजज आकर शरणार्थियों के रूप में हिन्दुस्तान आ बसे तो उस समय की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 13 दिन की जंग के बाद पाकिस्तान के लाखों सैनिकों को आत्मसमर्पण पर मजबूर कर दिया और एक नया बंगलादेश बन गया। हम याद दिलाना चाहते हैं कि तब हजारों शरणार्थी अपने नए वतन बंगलादेश में जाने की बजाए असम में ही बस गए।
धीरे-धीरे वक्त बदला और वे अपने राशन कार्ड बनवाकर भारतीयता के चोले में आ गए। आगे चलकर उन्हें सत्ता के चुनावी गणित में इस्तेमाल किया जाने लगा। आज की तारीख में बंगाल, बिहार, झारखंड, अरुणाचल, मणिपुर या पश्चिम बंगाल या फिर दिल्ली में कितने पाकिस्तानी या बंगलादेशी बसे हुए हैं, इसे लेकर भी एक नया विवाद अंदर ही अंदर पनपने लगा है। आवाजें उठने लगी हैं कि बंगलादेशियों को वापिस भेजा जाए। इसी मामले में रोहिंग्याओं का मामला भी पिछले छह महीने से चर्चा में आया है, जो इस वक्त देश के कोने-कोने में बसे हुए हैं। फिर भी गृहमंत्री राजनाथ सिंह की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने इस सारे मामले पर साफ कहा है कि जो देश के नागरिक नहीं हैं और उनकी पहचान अब चाहे रोहिंग्या के रूप में या बंगलादेशी के रूप में हुई तो वो अवैध हैं और यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट की है लेकिन विपक्ष ने बवाल मचा रखा है। हमें राजनाथ सिंह जी की राष्ट्रीयता और कर्त्तव्य परायणता की जितनी तारीफ करनी चाहिए वह कम है लेकिन यह भी तो सच है कि कभी 1983-84 के दौर में श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक इंटरव्यू में साफ कहा था कि विदेशी नागरिक अगर घुसपैठ करके हमारे देश में घुस जाते हैं और यहां आकर अपनी तादाद बढ़ाकर कारोबार जमा लेते हैं तो ये सब अच्छे संकेत नहीं हैं। भारत और भारतीयता इसे स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि कल यही घुसपैठिए अगर देश के वोटर बन गए तो हमारे सारे सिस्टम को सैबोटेज (तोड़फोड़) करेंगे। लिहाजा अवैध रूप से देश में आकर बसने वाले किसी भी देश के नागरिक को भारत स्वीकार नहीं करेगा।
हम उनकी विचारधारा को नमन करते हैं, जो वस्तुत: हिन्दुत्व के रूप में संजय गांधी की विचारधारा से मिलती थी। हालांकि खुद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नागरिकों की पहचान की पहल का मुद्दा उठाया था। वक्त बदल गया। तब की राजनीति और आज की सियासत में बहुत फर्क आ गया है लेकिन यह सच है कि राष्ट्रीयता और राष्ट्रभक्ति भाजपा ने जीवित रखी है। प्रधानमंत्री मोदी ने समान नागरिकता और राष्ट्रीयता के तथ्य को अगर आगे बढ़ाया है तो वह संवैधानिक व्यवस्था का ही पालन कर रहे हैं। असम में बंगलादेशियों का यह मामला भारतीय राजनीति की जमीन पर एक इतिहास के रूप में उभरा है। राजनीतिक नफे-नुकसान की परवाह किए बगैर राजनाथ जी ने और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस मामले पर अपनी बातें राष्ट्रहित में लोगों के समक्ष रखी हैं। अब आज अगर कांग्रेस के लोग या ममता बनर्जी या अन्य विपक्षी नेता बवाल मचा रहे हैं तो इसे लोकतंत्र की आड़ में सत्ता में लाभ-हानि के रूप में देखकर ही सब कुछ किया जा रहा है। कभी दिल्ली में भाजपा के सांसद रहे बैकुंठ लाल शर्मा ने विदेशी नागरिकों विशेष रूप से अवैध बंगलादेशियों को यहां से धकेलने की बात कही थी। अगर हम सब भारतीयता और राष्ट्रीयता की बात करते हैं और भाजपा इसे निभा रही है तो फिर इसमें किसी को आपत्ति क्यों? यह सवाल देश पूछ रहा है।