भारत और चीन-दो पड़ोसी देश। दोनों की जनसंख्या काफी विशाल, सीमाएं भी सटी हुईं। ब्रिटिश उपनिवेशवाद से एक ही समय संघर्ष। आपस में असीम सद्भाव। करीब-करीब एक ही समय आजादी (1947 और 1949)। कभी ऐसा समय आया कि पंचशील के ‘नाद’ दोनों देशों में गूंजते थे। कभी वह समय भी आया जब हिन्दी-चीनी भाई-भाई को गीतों की शक्ल में गाया गया। भारत भगवान बुद्ध को दसवें अवतार की संज्ञा देने वाला देश। हजारों वर्षों के इतिहास में कभी भी ‘वैमनस्य’ का कोई उदाहरण नहीं लेकिन 1962 के चीनी आक्रमण के बाद से ही दोनों देशों में विश्वास का संकट खड़ा हो गया जो आज तक बरकरार है। चीन तब से ही अधिनायकवादी रवैया अपनाए हुए है। कई दशकों तक भारत चीन की दादागिरी पर खामोश रहा। पहली बार उसे डोकलाम में भारत के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। कुछ दिन पहले उसने अरुणाचल सीमा में घुसकर सड़क बनाने का प्रयास किया लेकिन भारत के कड़े प्रतिरोध के चलते चीनी सैनिक अपना सामान छोड़ भाग गए। सेना प्रमुख विपिन रावत ने दो दिन पहले ही कहा था कि चीन एक मजबूत राष्ट्र लेकिन भारत भी कमजोर नहीं है। निश्चित रूप से आज का भारत 1962 का भारत नहीं है।
व्यापारिक गतिविधियों को छोड़ दें तो सीमा विवाद, सैन्य घुसपैठ, अरुणाचल प्रदेश आदि को लेकर भारत-चीन के रिश्ते नाजुक होते ही रहते हैं। चीन भारत को चारों ओर से घेरने का प्रयास कर रहा है। दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के सहयोग से भारत काफी सालों से तेल खनन कर रहा है। अब वियतनाम के भारत को निवेश करने के लिए आमंत्रित करने का भी विरोध कर रहा है। चीन भारत की बढ़ती ताकत से लगातार परेशान हो रहा है और ऐसा कुछ करने में लगा रहता है जिससे भारत की चिन्ताएं बढ़ें। चीन जब भी किसी योजना को अमलीजामा पहनाता है, वह भारत के लिए एक नया खतरा ही होती है।
भारत और चीन के बीच नेपाल बफर स्टेट की तरह काम करता है। सांस्कृतिक आैर ऐतिहासिक तौर पर नेपाल भारत के करीब है लेकिन चीन नेपाल में मौजूद भारत विरोधी ताकतों को उभारने में जुटा है। भारत के लिए नेपाल के मन में खटास पैदा करने के लिए चीन लगातार कुछ खास नीतियों पर काम करता रहा है। नेपाल में वामपंथियों की सरकार का सत्ता संभालना अब तय हो चुका है। यह जगजाहिर है कि वामपंथी सरकार का रुख चीन की तरफ ही होगा। अब चीन ने आप्टीकल फाइबर के जरिए नेपाल में दखल दिया है। चीन की यह कोशिश सिर्फ अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए ही नहीं है बल्कि वह अब नेपाल को पूरी तरह से अपने काबू में रखना चाहता है। नेपाल को इंटरनेट सेवाएं देने वाला भारत अब इकलौता देश नहीं रह गया। चीन ने नेपाल को अपनी इंटरनेट सेवाएं देना शुरू कर दी हैं।
नेपाल जहां एक तरफ वन वैल्ट, वन रोड के जरिए भारत को रोकने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारत ने हाल ही में चीन में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान विवादित मुद्दों पर चीन की एकतरफा राय को स्वीकार नहीं किया। चीन ने अपनी निवेश परियोजनाओं के चलते पाक अधिकृत कश्मीर की काफी जमीन हथिया ली है। चीन-पाक आर्थिक गलियारा परियोजना पर काम चल रहा है लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर के लोग ही चीन की इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। चीन ने कर्ज के जाल में फंसे श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह काे कब्जा लिया है और वह वहां एक और हवाई अड्डा बना रहा है। वह इस हवाई अड्डे को सैन्य ठिकाने के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। अब चीन श्रीलंका में आजादी के 70 वर्षों बाद पहली रेलवे लाइन बिछा रहा है। श्रीलंका के मतारा में चीन द्वारा मतारा-कटारागामा रेलवे विस्तार परियोजना के पहले चरण का ट्रैक बिछाने का काम शुरू हो चुका है।
1948 में द्वीप देश के आजादी प्राप्त करने के बाद श्रीलंका में कोई रेलवे लाइन बनी ही नहीं। चीन दुनिया के कई देशों में रेलवे प्रोजैक्ट बना रहा है। वह रेलवे नेटवर्क के जरिए अफ्रीकी देशों और यूरोप तक पहुंचना चाहता है। रेलवे तकनीक के मामले में भी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरा है। अब सवाल यह है कि ड्रैगन फन फैला रहा है तो फिर भारत उसका मुकाबला कैसे करे? चीन का म्यांमार और मालदीव में भी दखल बढ़ रहा है। अपने विशाल नकदी भंडार, बुनियादी सुविधाओं के बेहतर निर्माण आैर कौशल के बूते पर चीन इन देशों को बहलाने में कामयाब हुआ है। भारत को अपना दबदबा कायम रखने के लिए दक्षिण एशियाई देशों का सहयोग और समर्थन मिल रहा है जो चीन की दादागिरी से परेशान हैं। भारत को बहुत सतर्क होकर चलना होगा क्योंकि ड्रैगन के इरादे कभी नेक नहीं रहे।