भारत विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था और दुनिया के विकसित देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाला देश है तो दूसरी ओर धर्मस्थलों, सांस्कृतिक धरोहरों, सड़कों, गलियों और चौराहों पर बैठे भिखारियों की संख्या दूसरी ही तस्वीर पेश करती है। इतिहास के पन्नों को देखें तो भारत में भिक्षावृत्ति पहले भी होती थी लेकिन आज इसका स्वरूप बदल गया है। पहले सांसारिक मोह-माया त्यागकर ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले साधु-संत भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन करते थे लेकिन आज भिखारियों का एक बड़ा वर्ग अपनी दिनभर की जरूरतों को पूरा करता है और वे जीने के लिए भिक्षा मांग रहे हैं। भिखारियों की संख्या में लगातार बढ़ौतरी के पीछे के कारण ढूंढे जाएं तो इसका सीधा सा अर्थ समझा जा सकता है कि जिस तरह से देश में उदारीकरण के नाम पर पूंजीवाद का विस्तार हुआ उससे पैसे वाले तो और धनी होते गए, उन्होंने ऐशो-आराम के सभी साधन जुटा लिए लेकिन गरीब और गरीब होता गया। उसके पास इस व्यवस्था में बने रहने के लिए कोई ज्यादा जगह नहीं बची। उसके पास न तो पूंजी आैर न ही कोई दक्षता है। फिर भी जीवन जीने के लिए गरीब के मन में भी महत्वाकांक्षाओं ने जन्म ले लिया और उसने भिक्षावृत्ति को अपना कारोबार बना लिया। इस कारोबार को रोकने की बड़ी कोशिशें की गईं लेकिन यह कारोबार देश आैर समाज के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया।
एक अनुमान के मुताबिक राजधानी में सवा लाख के करीब भिखारी हैं, इनका अनुमानित कारोबार 225 करोड़ का है। यह तो दिल्ली का आंकड़ा है, पूरे भारत में कितने अरबों का कारोबार होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। भिक्षावृत्ति की जड़ में पूंजीवाद एक बड़ा कारण है तो देश में रोजगार के पर्याप्त साधन न होने के चलते भी पेशे को बढ़ावा मिला। हमें रोज ऐसे लोग मिल जाते हैं जो शिक्षित होते हुए भी बेरोजगार हैं। इस कारोबार ने संगठित गिरोहों को कुकुरमुत्तों की तरह पैदा कर दिया। संगठित गिरोह बच्चों का अपहरण कर उन्हें विकलांग बना भिक्षावृत्ति का प्रशिक्षण देने के बाद उन्हें धंधे के लिए भेज देते हैं। दिनभर सड़कों पर भीख मांगने की एवज में उन्हें मिलती है दो जून की रोटी और चन्द सिक्के। इसी कारोबार से जन्म लेते हैं अपराधी, जो चन्द पैसों की खातिर किसी की जान लेने से भी नहीं चूकते। कुछ ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि भिखारियों की मौत के बाद उनके बैंक खातों में लाखों रुपए पड़े मिले। भिखारी दिनभर कमाता है और रात को मस्ती कर सारा पैसा उड़ा देता है। बिना मेहनत किए ही जब मौज-मस्ती के लिए पैसा आसानी से मिल जाता है तो कामचोर लोगों का इसके प्रति रुझान बढ़ रहा है।
यही वजह है कि भीख मांगना बिना पूंजी लगाए धंधा हो गया है। इन सभी बातों के अलावा भिक्षावृत्ति भारत के माथे पर एक ऐसा कलंक है जो हमारे आर्थिक विकास के दावों पर सवाल खड़ा करता है। भीख मांगना कोई सम्मानजनक पेशा नहीं है बल्कि अनैतिक कार्य और सामाजिक अपराध है। खासकर जब किसी गिरोह या माफिया द्वारा जबरन बच्चों, महिलाओं या किसी से भी भीख मंगवाई जाती है तब यह संज्ञेय कानूनन अपराध की श्रेणी में आ जाता है। अब सवाल यह है कि भिक्षावृत्ति को अपराध माना जाए या नहीं? इस पर कई वर्षों से बहस चल रही थी। अंततः दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए फैसला दिया कि भीख मांगना अपराध नहीं है। पहले भीख मांगना अपराध था और अधिनियम में भिखारियों को दंडित करने का प्रावधान था। पीठ ने कहा है कि इस फैसले का अपरिहार्य नतीजा यह होगा कि भीख मांगने जैसे अपराध के कथित आरोपी के खिलाफ मुम्बई में भीख मांगना रोकथाम कानून के तहत लंबित मुकद्दमे रद्द किए जा सकेंगे। इससे पहले मई माह में दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए सरकार से पूछा था कि यदि आप देश में भोजन या नौकरी देने में असमर्थ हैं तो भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है? इस पर केन्द्र सरकार ने कहा था कि यदि गरीबी के कारण ऐसा किया गया है तो भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पूरे मसले को मानवीय दृष्टिकोण से देखा और भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा है कि भीख मांगने को मजबूर करने वाले गिरोहों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार वैकल्पिक कानून लाने को स्वतंत्र है। अब देखना है कि केन्द्र आैर दिल्ली सरकार क्या कदम उठाती हैं। वैसे भारत एकमात्र देश नहीं है जहां पर लोग भीख मांगते हैं। विकसित देशों में भी लोग भीख मांगते दिखाई दे जाते हैं। भीख मांगने के लिए मजबूर व्यक्ति के सामने कई तरह की विषम परिस्थितियां होती हैं। अब सवाल यह है कि भारत भिखारीमुक्त कैसे हो? इसके लिए भिखारियों का पुनर्वास और सुधार शिविर स्थापित करने होंगे, इन्हें कुछ काम करने का हुनर सिखाना होगा, संगठित गिरोहों पर कानूनी शिकंजा कसना होगा। समाज को भी चाहिए कि किसी लाचार आैर अपंग की सहायता जरूर करें। भीख मांगने वाले युवाओं, महिलाओं काे काम करने के लिए प्रेरित करें लेकिन भीख मत दें, देते हैं तो उन्हें किताबें दें, उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। समाज खुद पहल करे तो देश में इस समस्या को कम किया जा सकता है।