जनगणना और सर्वेक्षण नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए नीति निर्धारण करते हैं और भविष्य की सेवा के लिए एक दस्तावेज होती है। किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है विकास की योजनाएं। देश की आबादी को बेहतर जीवन स्तर मुहैय्या कराने के लिए यह जानना जरूरी होता है कि आखिर देश में कितने लोग हैं, कितने समृद्ध हैं, कितने मध्यम वर्गीय हैं और कितने गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बुनियादी ढांचा आदि की जरूरतों का जब तक सटीक आकलन नहीं होगा तब तक हमें इन मोर्चों पर उम्मीदों के मुताबिक सफलता नहीं मिलेगी। जनगणना किसी भी देश के लिए वह जरूरी आंकड़ा आधार है जिसके बिना उसका प्रबंधन हो ही नहीं सकता।
देशभर में इन दिनों आर्थिक गणना का काम चल रहा है। आर्थिक गणना का काम 1977 में शुरू हुआ था और तब से केवल छह आर्थिक गणना ही हुई हैं। इसका कारण सर्वे का काम और आंकड़ों के संग्रह में जटिलता है। सीएससी ई-गवर्नेंस सर्विस इंडिया लिमिटेड आर्थिक गणना कर रही है। इसका गठन कम्पनी कानून के तहत इलैक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने किया है। पहली बार पूरी आर्थिक गणना डिजिटल मंच पर की जा रही है।
आर्थिक गणना के तहत रेहड़ी-पटरी पर होने वाले कारोबार समेत देश की भौगोलिक सीमा में स्थित सभी व्यावसायिक इकाइयों, प्रतिष्ठानों की गिनती की जाती है। इससे कारोबारी प्रतिष्ठानों की आर्थिक गतिविधियों, मालिकाना हक, इसमें लगे लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इससे प्राप्त सूचना सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए वृहद योजना बनाने में उपयुक्त साबित होती है।
कृषि क्षेत्र के अलावा आर्थिक गणना में घरों में चल रहे छोटे उद्यम, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन आैर वितरण कार्य में लगी इकाइयों को भी शामिल किया गया है। देश में नागरिक संशोधन कानून, एनआरसी को लेकर जो माहौल बना हुआ है उसमें आर्थिक गणना करने वालों को खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
देशभर से ऐसी खबरें आ रही हैं कि लोग सर्वे करने वालों को भगा रहे हैं, कर्मचारियों से मारपीट की जा रही है। मुस्लिम बस्तियों में जाकर सर्वे करना मुश्किल हो गया है क्योंकि यहां के लोग ऐसा भ्रम पाल बैठे हैं कि यह सर्वे उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए किया जा रहा है।
असम समेत पूर्वोत्तर भारत, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, नोएडा आदि में सर्वे के काम में लगे कर्मचारियों से मारपीट की खबरें आ चुकी हैं। जागरूकता के अभाव के चलते लोग आर्थिक गणना के दौरान कारोबार संबंधी विस्तृत जानकारी देने से परहेज कर रहे हैं। साथ ही गणना के लिए कर्मचारियों को कम भुगतान और तकनीकी दिक्कतें भी परेशानी पैदा कर रही हैं।
दरअसल गणना में लगे कर्मचारियों को लोगों से कारोबार की विस्तृत जानकारी लेनी होती है। इसमें कारोबार संचालक का पैन नम्बर, जीएसटी नम्बर, कर्मचारियों की संख्या, ऋण का प्रकार इत्यादि जानकारी शामिल है। आर्थिक गणना के बारे में लोगों को काफी कम जानकारी है। इसके चलते लोग कारोबार से जुड़ी जानकारियां देने से कतरा रहे हैं। कोई भी सही जानकारी देने को तैयार नहीं है।
स्थानीय निकाय और जनप्रतिनिधि लोगों से अपीलें भी कर रहे हैं लेकिन लोग इन पर भरोसा ही नहीं कर रहे। यह भी देखा जा रहा है कि गणना करने वाले आधी अधूरी जानकारी लेकर अगले दरवाजे तक चले जाते हैं। उन्होंने क्या भरा इसकी जानकारी भी लोगों को नहीं होती। हालात ये हैं कि मेरठ के अलीबाग इलाके में लोगों ने पल्स पोलियो अभियान के तहत बच्चों को दवा पिलाने गई टीम को सीएए और एनआरसी का डाटा तैयार करने वाली टीम समझ कर उनसे मारपीट की गई और कर्मचारियों को एक घंटे तक बंधक बनाकर रखा गया। कई जगह महिला स्टाफ से अभद्रता की जा रही है।
ऐसे माहौल में आर्थिक गणना कितनी भरोसेमंद होगी, इस पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं। अगर सटीक आकलन मिला ही नहीं तो फिर इस लम्बी-चौड़ी कवायद का कोई लाभ ही नहीं होगा। एक अप्रैल से जनगणना का काम शुरू होने वाला है। यदि ऐसा ही माहौल रहा तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि जनगणना के सटीक आंकड़े मिल पाएंगे।
जनसंख्या की सटीक गणना से सिर्फ स्त्री-पुरुषों की संख्या का पता लगाने का काम ही नहीं होता बल्कि उससे देश का समूचा डाटा बेस तैयार होता है। मसलन देश के लोगों की आर्थिक स्थिति का पता चलता है। आंकड़ों से ही पता चलता है कि हमारे देश का मानव संसाधन कितना महत्वपूर्ण होता है।
देश के मानव संसाधन का सटीक अनुमान न हो तो किसी भी योजना की रूपरेखा नहीं बनाई जा सकती, बनाई भी गई तो वह हवा हवाई ही साबित होती है। आज के माहौल में तो आर्थिक गणना हवा हवाई ही लगती है। देश के माहौल को तनाव रहित बनाना बहुत जरूरी है। यह काम सरकार के साथ-साथ समाज का भी है कि लोगों के भ्रम दूर किए जाएं।
-आदित्य नारायण चोपड़ा