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चुनाव आयोग की गुहार

भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली को विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के तीन स्तम्भों पर खड़ा करने की चुनाव आयोग ही ऐसी जमीन है जो इन तीनों खम्भों की बुनियाद को मजबूत बनाती है।

भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली को विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के तीन स्तम्भों पर खड़ा करने की चुनाव आयोग ही ऐसी जमीन है जो इन तीनों खम्भों की बुनियाद को मजबूत बनाती है। दूसरे अर्थ में कहा जाये तो चुनाव की ही निष्पक्षता व कार्यक्षमता व दक्षता से ही भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था की इमारत खड़ी होती है। बेशक इसका मुख्य कार्य देश में चुनाव कराना है जिनमें प्रत्येक वयस्क नागरिक अपने एक वोट के अधिकार का प्रयोग करके केन्द्र व राज्यों में अपनी मनपसन्द सरकारों का गठन करता है। मतदाता के इस संवैधानिक अधिकार की रक्षा चुनाव आयोग ही करता है। अतः व्यावहारिक अर्थों में भी चुनाव आयोग को लोकतन्त्र का संरक्षक कहा जा सकता है जो सीधे संविधान से शक्ति लेकर अपने कार्य का निष्पादन पूर्णतः स्वतन्त्र रह कर करता है और विभिन्न सरकारों के गठन से लेकर संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति तक के चुनाव को सम्पन्न कराता है। यही कारण रहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त कार्यालय को देश में राजनीतिक प्रशासन व्यवस्था स्थापित करने का कर्णधार बनाया और राजनैतिक दलों की व्यवस्था की जिम्मेदारी इसे सौंपी परन्तु आजादी के 75 वर्षों के दौरान राजनीति के चरित्र में जो गुणात्मक परिवर्तन आया है और चुनाव प्रणाली पर जिस तरह धन का प्रभाव बढ़ा है तथा सामाजिक वर्ग व समुदायगत विसंगतियों से जिस तरह चुनावी भविष्य तय होने में मदद मिलने लगी है उसे देखते हुए चुनाव आयोग चुनाव प्रणाली में कई व्यावहारिक संशोधन करने की मांग भी करता रहा है।
इस मामले में सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि आयोग बेशक एक स्वतन्त्र व संवैधानिक स्वायत्तशासी संस्था है परन्तु यह संसद द्वारा बनाये गये कानून के ही दायरे में ही आती है जिसे ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951’ कहा जाता है। संसद इस अधिनियम में अभी तक कई बार संशोधन कर चुकी है । अतः संसद के अधिकार से ऊपर आयोग के अधिकार नहीं हैं। वैसे भारत में हर संवैधानिक पद संसद की समीक्षा के दायरे में आता है (राष्ट्रपति व न्यायाधीश के पद तक)। राज्यपाल के पद को ही इस परिधि से बाहर रखा गया है क्योंकि उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति की ‘प्रसन्नता’ पर निर्भर करती है और वह राज्य में राष्ट्रपति का ‘प्रतिनि​धि’ होता है।
हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त पद पर श्री राजीव कुमार नियुक्त हुए हैं। उन्होंने पहला कार्य नये राष्ट्रपति के चुनाव की अधिसूचना जारी करके किया है। उन्होंने ही केन्द्र सरकार के कानून मन्त्रालय के पास कुछ सुझाव भेजे हैं जिससे भारत में चुनाव प्रणाली ज्यादा व्यावहारिक व सुगम होने के साथ दोष मुक्त हो सके (वैसे दोषमुक्त चुनाव प्रणाली के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में आधारभूत परिवर्तन करने पड़ेंगे जिनकी मांग 1974 के जेपी आन्दोलन के समय से चल रही है) श्री राजीव कुमार ने सुझाव दिया बताते हैं कि मतदाता कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने के लिए केन्द्र सरकार शीघ्र ही अधिसूचना जारी कर इसके नियमों की घोषणा करे क्योंकि दिसम्बर 2021 में संसद के दोनों सदनों ने इससे जुड़े विधेयक को पारित कर दिया था।
चुनाव आयोग चाहता है कि किसी भी चुनाव में किसी प्रत्याशी को केवल एक स्थान से ही लड़ने की अनुमति मिले। जाहिर है इसके लिए संसद को ही जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की सम्बन्धित धारा या उपधारा में बाकायदा विधेयक लाकर संशोधन करना पड़ेगा। आयोग ने पहली बार ऐसा सुझाव 2004 में दिया था जिस पर अभी तक कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। हालांकि 2016 में ही आयोग ने कई व्यावहारिक संशोधनों का सुझाव दिया था मगर वे सभी ठंडे बस्ते में ही पड़े हुए हैं। मगर आयोग का सबसे महत्वपूर्ण सुझाव, राजनैतिक दलों का पंजीकरण समाप्त करने के लिए आवश्यक संशोधन विधेयक का है जिससे आयोग कानूनी तौर पर बराये नाम पंजीकृत किये गये राजनैतिक दलों का पंजीकरण समाप्त कर सके। फिलहाल आयोग को किसी भी व्यक्ति या संगठन की राजनैतिक इकाई को पंजीकृत करने का अधिकार है। ऐसी पार्टी योग के पैमाने पर किसी भी राज्य में मान्यता न रखती हो मगर अनधिकृत नहीं होती। मगर व्यावहारिक तौर पर यह देखा जाता है कि ऐसी पंजीकृत पार्टियां कभी चुनाव भी नहीं लड़तीं और न इनके मुख्यालयों या आन्तरिक संगठन की व्यवस्था के बारे में नियमानुसार आयोग को कोई सूचना दी जाती है जबकि एक राजनैतिक दल होने की वजह से वे सभी आर्थिक छूटें तक प्राप्त करने की हकदार हो जाती हैं। इससे भ्रष्टाचार की बू भी आती है। मगर कानून के अनुसार आयोग इन्हें पंजीकृत तो कर सकता है मगर उनका पंजीकरण समाप्त नहीं कर सकता। अतः आयोग सरकार से ऐसा अधिकार पाने के लिए आवश्यक संसदीय मार्ग अपनाने की गुहार लगा रहा है। ये दल वार्षिक लेखा-जोखा तक प्रस्तुत नहीं करते। इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की सम्बन्धित धारा में संशोधन करना पड़ेगा। सामान्य भाषा में हम ऐसी पार्टियों को ‘फर्जी’ पार्टी भी कह सकते हैं।
भारत में इनकी संख्या कम नहीं है। चुनाव आयोग ने ही इनकी संख्या पिछले महीने 2100 आंकलित की थी। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने किसी भी चुनाव के परिणाम आने तक किसी भी प्रकार का ‘ओपीनियन पोल’ या ‘एक्जिट पोल’ करने पर रोक लगाने का सुझाव दिया है। भारत जैसी महाविविधता पूर्ण सामाजिक संरचना में चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करना सर्वथा अनुचित है और इनसे आम मतदाता को प्रभावित करने के प्रयास को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। कुल मिला कर आयोग के सभी सुझाव मौजूदा चुनाव प्रणाली को अधिक पारदर्शी बनाने की कोशिश ही कही जायेगी जिन पर सकारात्मक निर्णय लिये जाने की जरूरत है।

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