कश्मीर में चुनाव परिसीमन - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

कश्मीर में चुनाव परिसीमन

विगत 5 अगस्त, 2019 को संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर रियासत को दो केन्द्र प्रशासित प्रदेशों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में विभक्त करने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने की बात चल रही है जिस पर केन्द्र की भाजपा सरकार भी सहमत है।

विगत 5 अगस्त, 2019 को संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर रियासत को दो केन्द्र प्रशासित प्रदेशों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में विभक्त करने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने की बात चल रही है जिस पर केन्द्र की भाजपा सरकार भी सहमत है। हकीकत यह है कि रियासत को दो हिस्से में बांटने वाले प्रस्ताव को राज्यसभा में रखते समय ही गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने पर कालान्तर में विचार किया जा सकता है। इसकी वजह यह थी कि स्वतन्त्र भारत में ऐसा  पहली बार हो रहा था जब किसी प्रदेश का दर्जा घटा कर अर्ध राज्य के स्तर पर किया गया हो। इस मुद्दे पर तब राज्यसभा में लम्बी बहस भी चली थी और विपक्ष ने सरकार की जमकर आलोचना भी की थी परन्तु इसके बाद जम्मू-कश्मीर में पंचायत चुनावों से लेकर जिला विकास परिषदों के चुनाव दलगत आधार पर हुए जिससे राज्य में जमीनी स्तर पर राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हुई और तभी यह स्पष्ट हो गया कि केन्द्र सरकार राज्य में विधानसभा चुनाव भी करायेगी मगर तब परिवर्तन यह आ चुका था कि जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों में बंट चुका था और अर्ध राज्यों की हैसियत में आ चुका था परन्तु राज्य में चुनाव क्षेत्र परिसीमन का काम अधूरा था जिसे पूरा कराया जाना जरूरी था और अच्छेद 370 व 35ए के समाप्त हो जाने के बाद यह काम पूरा किया जाना था। 
इस सन्दर्भ में हमें राज्य के उन मतदाताओं के अधिकारों के बारे में भी विचार करना होगा जो भारत-पाक बंटवारे के बाद जम्मू-कश्मीर में आये थे। उन्हें भारत की नागरिकता तो मिल गई थी मगर 35 ए के लागू रहने की वजह से वे जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी नहीं थे। इसके परिणामस्वरूप ये नागरिक भारत की सरकार बनाने के लिए होने वाले लोकसभा चुनावों में तो मतदान कर सकते थे मगर राज्य की सरकार गठित करने वाले विधानसभा चुनावों में इन्हें मत देने का अधिकार नहीं था। 35 ए हटने के बाद अब यह भेदभाव समाप्त हो गया है। इन बदलावों को देखते हुए चुनाव परिसीमन आयोग का कार्य थोड़ा बढ़ भी गया है परन्तु इस आयोग का रियासत की क्षेत्रीय पार्टियां अभी तक बहिष्कार कर रही थीं और कह रही थीं कि 370 और 35 ए को हटा कर केन्द्र ने राज्य के लोगों के साथ न्याय नहीं किया है। चुनाव क्षेत्र परिसीमन आयोग क्षेत्रीय आबादी व भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन इस प्रकार तय करना है कि चुने हुए सदनों में जनता का प्रतिनिधित्व समुचित न्यायपूर्ण तरीके से हो सके। जम्मू-कश्मीर का संविधान अलग होने की वजह से वहां अभी तक अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के लिए सीटें भी आरक्षित नहीं थीं। 
इस राज्य में भारत का संविधान पूर्ण रुपेण लागू होने के बाद अब आरक्षित सीटों की संख्या भी नियमानुसार करनी पड़ेगी। बदले हुए नागरिक सन्दर्भों में रियासत की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी नेशनल कान्फ्रेंस अभी आयोग की बैठकों में शामिल होने का मन बना रही है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि डा. फारूक अब्दुल्ला की इस पार्टी ने बदली हकीकत को कबूल करते हुए आयोग में क्षेत्रीय भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने का मन बनाया है। इससे पहले इस पार्टी का कहना यह भी था चुंकि जम्मू-कश्मीर में किये गये बदलाव का मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है, अतः वह उसके फैसले के बाद ही कोई फैसला करेगी परन्तु लगता है कि डा. अब्दुल्ला और उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला ने बदली परिस्थितियों के अनुरूप अपने मत में भी बदलाव लाते हुए हकीकत का सामना करने का निर्णय कर लिया है जिसकी वजह से उनकी पार्टी के तीनों सांसद आयोग की आगामी 20 दिसम्बर को होने वाली बैठक के एजेंडे के बारे में खतो-किबातत कर रहे हैं। मगर यह जम्मू-कश्मीर के लिए एक शुभ संकेत भी है क्योंकि आयोग के सामने अभी तक केवल भाजपा का पक्ष ही आ रहा था और आयोग के सदस्य के रूप में भाजपा के दो सांसद जुगल किशोर शर्मा व केन्द्रीय राज्यमन्त्री जितेन्द्र सिंह ही इसकी बैठकों में भाग ले रहे थे। जबकि क्षेत्रीय पार्टियों का मत नदारद था। 
आयोग के सदस्य के रूप में नेशनल कान्फैंस के तीनों चुने हुए सांसद सर्वश्री फारूक अब्दुल्ला, हुसनैनमसूदी व अकबर लोन नामजद किये गये थे मगर इनमें से किसी ने भी अभी तक आयोग की बैठकों में हिस्सा नहीं लिया। इनके हृदय परिवर्तन का कारण यह लगता है कि आयोग की बैठकों का बहिष्कार करके वे जम्मू-कश्मीर के लोगों का प्रतिनिधित्व करने का हक कहीं खो न बैठें क्योंकि परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आते ही राज्य में विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू हो सकती है और रियासत को पूर्ण अधिकार वाली विधानसभा भी मिल सकती है। दूसरे क्षेत्रीय दलों में नेशनल कान्फ्रेंस इस बात का ऐलान सार्वजनिक तौर पर कर चुकी है कि जब तक जम्मू-कश्मीर को पूरे हक वाली विधानसभा नहीं मिलती है तब तक वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह घोषणा दिल्ली में ही नेशनल कान्फ्रेंस के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री उमर अब्दुल्ला ने की थी। चुनाव परिसीमन का काम पूरा होना पूर्ण राज्य की ही एक जरूरी शर्त है। दूसरे राज्य के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमन्त्री गुलाम नबी आजाद जिस तरह सूबे की सियासत में पुनः सक्रिय हुए हैं उससे भी नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं की नींद काफूर हुई है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five − two =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।