देश मतपत्र के दौर से होते हुए ईवीएम मशीनों तक पहुंचा और अब ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीनों पर इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि समय-समय पर विपक्षी दल ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहे हैं, मगर हर बार चुनाव आयोग ने ऐसे आरोपों को निराधार बताया। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए निर्वाचन आयोग ने वोटर वैरिफाइड ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) जारी किया था। जिस कमरे या कम्पार्टमेंट में मतदाता वोट देने जाते हैं बैलेटिंग यूनिट आैर वीवीपैट दोनों उसी कमरे में पांच मीटर की केबल की सहायता से कंट्रोल यूनिट से जुड़े होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को चरणबद्ध ढंग से वीवीपैट का उपयोग करने और 2019 तक इनकाे पूरी तरह से स्थापित करने का आदेश दिया था। मतपत्रों के दौर से वीपीपैट मशीनों के साथ मतदान निःसंदेह देश की प्रगति का प्रतीक है। चुनाव प्रणाली में सुधार एक सतत् प्रक्रिया है। पुराने दौर के चुनाव और आज के चुनावों में बहुत अन्तर आ चुका है। चुनाव की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सुधारों का श्रेय टी.एन. शेषन को ही दिया जाना चाहिए। अब चुनाव परिणाम बहुत जल्दी आ जाते हैं। रुझान तो पहले ही मिल जाते हैं। ईवीएम मशीनों के चलते प्रक्रियागत मुश्किलों से काफी छुटकारा मिल चुका है।
नई-नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग से वोट की गोपनीयता की पवित्रता भंग होने का खतरा भी पैदा हो रहा है। दरअसल लोगों के वोट और उम्मीदवार के बीच अब मशीन आ गई है। कई बार राजनीतिक दलों और मतदाताओं ने संदेह व्यक्त किया कि उनके वोट टैक्नोलोजी के इस्तेमाल से कहीं और ही पहुंच रहे हैं। संदेह इतना गहरा गया था कि चुनाव आयोग ने नियम बनाया कि किसी विधानसभा क्षेत्र में केवल एक मतदान केन्द्र में ही वीवीपैट पर्चियों का ईवीएम मशीन के नतीजे से मिलान करके पूरे मतदान के परिणाम को ही समझा जाएगा। 21 विपक्षी दलों ने ईवीएम मशीनों से वीवीपैट मिलान का प्रतिशत 50 फीसदी करने की मांग को लेकर याचिका दायर कर रखी है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ‘‘हम चाहते हैं कि मशीन और पर्ची की मैचिंग की संख्या बढ़ाई जाए, क्योंकि ‘एक से दो भले’ होते हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का कहना था कि किसी भी संस्थान को बेहतर सुझावों से दूर नहीं रहना चाहिए। कोर्ट ने चुनाव आयोग से हलफनामा मांगा कि क्यों न मैचिंग की संख्या बढ़ाई जाए।’’ चुनाव आयोग मिलान का प्रतिशत बढ़ाने का अनिच्छुक दिखा, उसकी दलील थी कि इससे समय और संसाधन दोनों की बर्बादी होगी। शीर्ष अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वीवीपैट की संख्या बढ़ाई जाए। यह आशंकाएं पैदा करने का सवाल नहीं है बल्कि यह संतुष्टि का मामला है।
चुनाव आयोग का इसके लिए अनिच्छुक होना काफी हैरानी भरा है। चुनाव 19 मई तक चलेंगे और मतगणना 23 मई को होगी। अप्रैल से मई तक लम्बी मतदान प्रक्रिया में चुनाव आयोग को निष्पक्ष मतदान के लिए ठोस व्यवस्था करनी पड़ती है ताकि वोट देने वाला संतुष्ट हो सके कि उसके द्वारा डाला गया वोट सही जगह पर पहुंचा है या नहीं। निर्वाचन प्रणाली में सुधार को लेकर विरोध और उदासीनता की स्थिति होनी ही नहीं चाहिए। हमारे पूर्वजों की आकांक्षाओं को बनाए रखने, संविधान के आदर्शों को पूरा करने और निष्पक्ष चुनाव कराकर सच्चे लोकतंत्र की अक्षरशः भावना को बनाए रखने के लिए चुुनाव सुधार आवश्यक है।
चुनाव सुधारों की प्रक्रिया का मुख्य फोकस लोकतंत्र के मूल अर्थ को व्यापक बनाना, इसे नागरिकों के अधिक अनुकूल बनाना ही है। यह भी सही है कि इलैक्शन करप्शन का सबसे बड़ा सोर्स बन चुका है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद से करोड़ों की नकदी जब्त की जा चुकी है। जितनी धनराशि चुनाव लड़ने के लिए तय की गई है, उम्मीदवार उससे कहीं अधिक धन खर्च करते हैं। तमाम तरह से अवैध धन का इस्तेमाल किया जाता है। उम्मीदवार महंगाई को देखते हुए खर्च की सीमा बढ़ाने की मांग करते हैं। अगर कालेधन के इस्तेमाल को रोकना है तो निर्वाचन आयोग को तर्कसंगत तरीके से सोचना ही होगा। चुनाव सुधारों के लिए उसे पहल करनी ही होगी।