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कर्मचारी, किसान और कोरोना

कोरोना वायरस संक्रमण के नकारात्मक आर्थिक असर को देखते हुए केंद्र सरकार लगातार उपाय कर रही है। केंद्र ने अपने मंत्रालयों और विभागों में होने वाले कई तरह के सरकारी खर्च पर पाबंदी लगा दी है

कोरोना वायरस संक्रमण के नकारात्मक आर्थिक असर को देखते हुए केंद्र सरकार लगातार उपाय कर रही है। केंद्र ने अपने मंत्रालयों और विभागों में होने वाले कई तरह के सरकारी खर्च पर पाबंदी लगा दी है। इसका असर 1.13 करोड़ सरकारी कर्मचारियों और पैशनरों पर पड़ेगा। सभी केंद्रीय कर्मियों का महंगाई भत्ता और पैंशनरों की महंगाई राहत पर जुलाई 2021 तक रोक लगा दी गई है। सरकारी कर्मचारियों को पहली तिमाही में वेतन तो मिलेगा लेकिन एलटीए, पदोन्नति की बकाया राशि, अग्रिम भुगतान, छुट्टियों का भुगतान एवं दूसरे भत्ते आदि पर रोक रहेगी। कार्यालय के खर्च मसलन खाना-पीना, पार्टी का आयोजन और सामान खरीदने जैसी गतिविधियों के लिए बजट नहीं मिलेगा।
लॉकडाउन में पहली बार हो रहा है जब केंद्र सरकार ने अपने अधिकांश खर्च में कटौती की घोषणा की है। पहले केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 17 फीसदी था लेकिन इसी साल केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महंगाई भत्ते में चार फीसदी की बढौतरी की थी। अब कर्मचारियों को पुरानी दर पर ही महंगाई भत्ता मिलेगा। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सरकारी खजाने को अभी पैसे की जरूरत है। इस फैसले से केंद्र सरकार को मौजूदा वित्त वर्ष और 2021-22 में 37,350 करोड़ की बचत होगी। राज्य  सरकारें लगातार केंद्र से जीएसटी मद में अपनी बकाया रकम मांग रही हैं ताकि महामारी का मुकाबला करने और राज्य कर्मचारियों को वेतन देने में मुश्किलें नहीं आएं।
केंद्र सरकार के फैसले का अनुसरण राज्य सरकारें भी करेंगी। केंद्र और राज्य सरकारों के फैैसले को कर्मचारियों को मुनाफा या नुक्सान की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। महामारी में क्या नफा और क्या नुक्सान। ​स्थितियां सामान्य होते ही केंद्र उनकी भरपाई कर देगा। इस समय देश के हर नागरिक को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी और कुछ न कुछ योगदान देना होगा। मुझे नहीं लगता कि केंद्र सरकार के फैसलों के प्रति कोई आक्रोश उपजेगा। जीवन बचेगा तो ही देश बचेगा। इस समय सबसे बड़ी चुनौती ही मानव जीवन की रक्षा करना है। कोरोना वायरस के चलते आर्थिक आपातकाल की स्थितियों को संवेदनशील तरीके से समझना होगा। जनसाधारण के जीवन को बचाना पहली प्राथमिकता तो है ही, साथ ही करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी का मामला भी उतना ही गंभीर बनकर खड़ा है। लोगों की जान को भूख से भी बचाना है। सबसे बड़ा सवाल किसानों के हितों की रक्षा करना भी है। पंजाब, हरियाणा समेत कई राज्यों के किसानों को फसल बेचने के लिए कई रियायतों की घोषणा तो की गई है लेकिन खेत खलिहान से लेकर मंडी और सहकारी सोसाइटीज तक किसानों के अनाज लेकर पहुंचने की राह बहुत पेचीदा है। पंजाब, हरियाणा ने तो किसानों को सुविधा देते हुए खरीद केंद्रों की संख्या चार गुणा कर दी है। कई राज्यों ने फसलों की खरीद पर औपचारिकताओं का शिकंजा भी कस दिया है।
किसानों को पहले ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन कराना होता है, रजिस्ट्रेशन के लिए अपने खेत के दस्तावेजों का ब्योरा देना जरूरी है। खतौनी नम्बर, खातेदारों के नम्बर, नाम, आधार, बैंक खाता सहित अन्य कई जानकारियां देना जरूरी है। इन जानकारियों को एसडीएम या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी सत्यापित करेगा। दस्तावेज पूरे होने के बाद ही किसानों को टोकन मिलता है। किसान मंडी में फसल लेकर पहुंच भी जाता है तो खरीद के समय भी सरकारी अफसरों, कर्मचारियों के नखरे और नियम कम नहीं। सरकारी नियम के मुताबिक सरकार प्रति एकड़ तय क्विंटल के हिसाब से ही फसल खरीदती है। अगर किसी ने निश्चित अनुमान से ज्यादा फसल उपजा ली है तो सरकार उसकी खरीद नहीं करती। ऐसी कई शिकायतें उत्तर प्रदेश के किसानों की तरफ से आ रही हैं। तमाम औपचारिकताओं के चलते किसान सरकारी खरीद केंद्रों पर कम आ रहे हैं और अपनी फसल कम भाव पर व्यापारियों को बेच रहे हैं। मध्य प्रदेश में सौदा पत्रक के माध्यम से अपनी फसल व्यापारियों को बेचने को मजबूर हैं। लॉकडाउन में मंडियां बंद होने के चलते व्यापारी बोली नहीं लगाते। सौदा पत्रक दो लोगों  के बीच सहमति से होता है। इससे दाम कम मिलते हैं। गेहूं और चना समर्थन मूल्य से कम पर बिक रहा है। अब यह देखना राज्य सरकारों का काम है कि किसानों को अपनी फसल का वाजिब दाम मिले। किसान फसल के मापदंडों में उलझ कर रह गया है। 
इस देश ने कोरोना वारियर को जितना सम्मान दिया है, उतने ही सम्मान के पात्र किसान भाई भी हैं। कृषि अर्थव्यवस्था का ऐसा क्षेत्र है जो तालाबंदी के बीच भी चलता रह सकता है। खाद्य सुरक्षा के मामले में देश बहुत बेहतर स्थिति में है। भारत के सरकारी गोदामों में 87 मिलियन मीट्रिक टन खाद्यान्न का भंडार पड़ा हुआ है। इसका अर्थ यह है कि देश में जिस किसी के पास भी राशन कार्ड है, उस परिवार के हर सदस्य को गेहूं या चावल की सौ किलो की बोरी दी जा सकती है। किसानों का सबसे बड़ा सम्मान यही होगा कि उसकी उपज के सही दाम मिल जाएं। जिन किसानों की उपज समर्थन मूल्य से कम बिके उन्हें मध्यप्रदेश की भावांतर योजना की तर्ज पर मुआवजे की राशि दी जा सकती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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