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दुनिया में बढ़ता ऊर्जा संकट

कोरोना महामारी के चलते पिछले दो वर्षों से दुनिया में आर्थिक संकट तो पैदा हुआ ही लेकिन अब दुनिया में गंभीर ऊर्जा संकट भी पैदा हुआ।

कोरोना महामारी के चलते पिछले दो वर्षों से दुनिया में आर्थिक संकट तो पैदा हुआ ही लेकिन अब दुनिया में गंभीर ऊर्जा संकट भी पैदा हुआ।  अब दुनिया में गंभीर ऊर्जा संकट चिन्ता का विषय बना हुआ है। चीन इस समय भारी बिजली कटौती से जूझ रहा है और वहां लाखों घर और फैक्ट्रियां मुसीबत का सामना कर रहे हैं। चीन के पूर्वोत्तर हिस्से के औद्योगिक हब में यह समस्या और भी गंभीर हो रही है क्योंकि अब सर्दियां आ रही हैं। चीन के ​बिजली संकट का दुनिया पर प्रभाव पड़ सकता है। जीवाश्म आधारित ईंधनों की खपत के मामले में शीर्षस्थ देशों में शामिल चीन में कुछ माह पहले ही बिजली खपत कम करने की कवायद शुरु हुई। कोरोना महामारी के बाद जैसे-जैसे पूरी दुनिया एक बार ​फिर खुलने लगी तो चीन के उत्पादों की मांग फिर बढ़ने लगी और इसके लिए फैक्ट्रियों को अधिक बिजली की जरूरत पड़ी।
2060 तक देश को कार्बन मुक्त बनाने के लिए चीन ने जो नियम बनाये हैं उसकी वजह से कोयले का उत्पादन पहले से धीमा किया गया। इसके बावजूद अपनी आधे से अधिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए चीन आज भी कोयले पर निर्भर है। बिजली की मांग बढ़ी तो कोयला भी महंगा हो रहा है। चीन की सरकार बिजली की दरों को नियंत्रित करती है। पावर प्लांट घाटे में काम करने को तैयार नहीं। उन्होंने उत्पादन में कटौत कर दी। बिजली सप्लाई कम होने से चीन के कई प्रांत पावर कट से जूझ रहे हैं। इससे एल्यूमनियम, सीमेंट और उर्वरक से जुड़े उद्योगों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा जहां बिजली की काफी जरूरत है। बिजली आपूर्ति को लेकर जताई जा रही चिन्ताओं के बाद अंतर्राष्ट्रीय निवेश बैंकों ने अपने अनुमानों से चीन के आर्थिक विकास की दर को घटा दिया है। गोल्डमेन सेेेक्स के मुताबिक चीन की विकास दर 7.8 प्रतिशत रहेगी जबकि उसने पहले इसके 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। इस वर्ष के अंत में होने वाली खरीदारी के मौसम में चीनी सामानों की सप्लाई प्रभावित हो सकती है।
उधर यूरोप के ऊर्जा  बाजार में इन दिनों प्राकृतिक गैस से लेकर विभिन्न पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतें इतिहास में सबसे अधिक हैं। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में कई गैस स्टेशन बंद हैं। नार्वे के ग्रिड से अनेक यूरोपी शहरों और उद्योगों को बिजली सप्लाई होती है लेकिन वहां भी पानी की कमी से उत्पादन प्रभावित हुआ है। यूरोप में पिछली सर्दियों में बिजली की खपत बढ़ गई थी जिससे भंडारों में रखे ईंधन के भंडार में कमी आई। यूरोप में भारी मात्रा में गैस आपूर्ति करने वाले रूस जैसे देश अपने भंडारण का इस्तेमाल कर रहे हैं। पैट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण कोयले का इस्तेमाल बढ़ने से जलवायु परिवर्तन को रोकने की सारी कोशिशें बेकार हो जाएंगी। पैट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ाैतरी भारत समेत कई देशों के लिए परेशानी का सबब है। पैट्रोल-डीजल, सीएनजी, पीएनजी की बढ़ी कीमतों से आम आदमी की जेब खाली हो रही है। जो देश ईंधन का आयात करते हैं, वे भी इसे जमा करने की होड़ में हैं। कच्चे तेल की कीमत इस समय 80 डालर प्रति बैरल से भी ऊपर है और कोयले की कीमतें 13 वर्षों में सबसे ज्यादा हैं।
भारत तो पैट्रोलियम उत्पादों का बड़ा आयातक है। इससे सरकार का खर्च काफी बढ़ रहा है। क्या चीन में बिजली कटौती, ब्रिटेन के पैट्रोल पम्पों पर लम्बी कतारों और थोक बाजार में तेल-गैस और कोयले की बढ़ती कीमतों का आपस में कोई संबंध हैं। यह संबंध स्पष्ट नहीं है क्योंकि दुनिया में अजीबोगरीब चीजें हो रही हैं। ब्रिटेन के लोग यह सोचकर गाड़ियों में पैट्रोल भरवाने लगे कि टैंकर ड्राइवरों की कमी से तेल की सप्लाई कम हो जाएगी। यूरोप में ऊर्जा संकट के कई स्थानीय कारण मौजूद हैं। वहां पवन चक्कियों और सौर ऊर्जा का उत्पादन कम हुआ है। तेल कंपनियां कह रही हैं कि ब्रिटेन में पैट्रोल की कोई कमी नहीं लेकिन लोगों ने अंधाधुंध पैट्रोल खरीद लिया। ब्रिटेन में टैंकर ड्राइवरों की कमी इस​लिए भी हो गई क्योंकि कोरोना महामारी के चलते कई ड्राइवर अपने घरों को लौटे उनमें से कुछ ही वापस आ पाये हैं। बुजुर्ग ड्राइवर रिटायर हो गए और उनकी जगह नए नहीं आये हैं और महामारी के चलते भारी संख्या में हैवी गुड्स व्हीकल ड्राइवर टेस्ट नहीं हुए हैं। यूरोप और चीन की तरह ऊर्जा का संकट हमारे यहां भी आ सकता है। कोरोन महामारी के बाद औद्योगिक गतिविधियां भी बढ़ रही हैं। हमें ऊर्जा का इस्तेमाल बहुत सोच-समझ कर करना होगा। ऊर्जा के वैकल्पिक तरीके ढूंढने होंगे। हमें ग्रीन बिजली की तरफ बढ़ना होगा। सौर ऊर्जा  के इस्तेमाल की तरफ बढ़ना होगा। लोगों को भी चाहिए कि अपनी ऊर्जा जरूरतों को किफायत से इस्तेमाल करें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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