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ईवीएम फिर न्यायालय में !

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तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री कमलनाथ ने सर्वोच्च न्यायालय में ईवीएम मशीनों द्वारा कराये जाने वाली मतदान प्रणाली पर याचिका दायर करके स्पष्ट कर दिया है कि विभिन्न राजनैतिक दलों विशेषकर विपक्षी दलों को इस प्रणाली द्वारा निकले चुनाव नतीजों की सच्चाई पर सन्देह पैदा हो चुका है। चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम मशीन के साथ जुड़ी कागज की रसीदी पर्चियां दिखाने वाली वीवीपैट मशीन की उपयोगिता को लेकर भी कमलनाथ की याचिका में कुछ व्यावहारिक सवाल उठाये गये हैं। मसलन वोट देने के बाद मतदाता को इस पर्ची को देखने के लिए केवल सात सेकेंड का समय ही मिलता है जिससे वह जान सके कि उसका वोट उसी प्रत्याशी को गया है जिसके चुनाव चिन्ह पर उसने मशीन में बटन दबाया है। उन्होंने मांग की है कि इस समय को बढ़ाकर 15 सेकेंड का किया जाना चाहिए। दरअसल इस प्रणाली में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि गांवों में रहने वाले लाखों मतदाताओं को सन्तोष ही नहीं होता कि उन्होंने जिस पार्टी या प्रत्याशी को वोट दिया है वह उसी के खाते में गया है। इसकी वजह मतदाता और वोट के बीच में आने वाली मशीन है, इसे ही देखते हुए ही वीवीपैट मशीनें इस ईवीएम मशीन के साथ जोड़ी गयीं जिससे मतदाता को सन्तोष हो सके कि उसका वोट उसके चुने गये उम्मीदवार को ही गया है मगर इसे देखने के लिए सात सेकेंड का समय इतना कम है कि पलक झपकते ही वह खत्म हो जाता है।

दीगर सवाल यह है कि जब नतीजे ईवीएम मशीन की इलैक्ट्रानिक गणना के आधार पर सुना दिये जाते हैं तो वीवीपैट मशीन की भूमिका क्या रह जाती है? इन कागजी रसीदी मशीनों को भी चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर ही जरूरी बनाया था और 2019 के लोकसभा चुनाव इनके आधार पर कराये जाने का फैसला किया था मगर इससे पहले इसी वर्ष के नवम्बर महीने में तीन प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें ईवीएम मशीनों के साथ वीवीपैट मशीनें भी लगी होंगी। चुनाव आयोग फिलहाल किसी एक चुनाव क्षेत्र के एक मतदान केन्द्र में कागजी रसीदों में दिखाये गये वोट और मशीन के इलैक्ट्राॅनिक मतों का मिलान करके विश्वास दिलाता है कि सभी चुनाव क्षेत्रों में मतदाताओं का वोट उनकी मनपसन्द के उम्मीदवार को ही गया है। कमलनाथ ने अपनी याचिका में कहा है कि एक चुनाव क्षेत्र के कम से कम दस प्रतिशत मतदान केन्द्रों में इलैक्ट्राॅनिक गणना और वीवीपैट की कागजी रसीदों का मिलान किया जाना चाहिए और यह औचक होना चाहिए। इस तर्क में वजन इसलिए है क्योंकि अक्सर यह आरोप लगते रहे हैं कि ईवीएम मशीनों को पहले से ही किसी खास पार्टी के चुनाव निशान पर ही वोट डालने के लिए तकनीकी रूप से तैयार किया जाता है। एेसी शिकायत विपक्षी दल चुनाव आयोग से करते रहे हैं कि ईवीएम मशीनों को तकनीकी रूप से निर्देशित किया जा सकता है। अतः तीन राज्यों के चुनाव से पहले यह याचिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय अगले सप्ताह सुनवाई करेगा लेकिन इससे यह तो साफ है कि वर्तमान इलैक्ट्राॅनिक मतदान प्रणाली घनघोर संशय के घेरे में फंस चुकी है जो कि भारत जैसे विशाल लोकतन्त्र के लिए किसी भी पक्ष से उचित नहीं कही जा सकती।

लोकतन्त्र की बुनियाद चुनाव ही होते हैं और चुनाव आयोग इस लोकतन्त्र का एेसा चौथा खम्भा माना जाता है जो शेष तीन खम्भों विधायिका, न्यायपालिका व कार्यपालिका की संरचना के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराता है। अतः किसी भी सूरत में चुनाव आयोग की भूमिका को हमें कम करके नहीं देखना चाहिए। यह भारतीय लोकतन्त्र को वह आधारभूत प्रणाली देता है जिसे हम राजनैतिक या दलगत शासन व्यवस्था कहते हैं। राजनैतिक दलों को अधिकारिता प्रदान करने का अधिकार इसी के हाथ में होता है जो चुनाव लड़कर देश की शासन प्रणाली को थामते हैं। इसके सामने विपक्षी दल बार-बार यह मांग कर रहे हैं कि मतदान पुनः बैलेट पेपर द्वारा कराने की प्रणाली पर लौटना चाहिए। चुनाव आयोग को भारतीय जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 अधिकार सम्पन्न बनाता है और इसमें पूर्व में कई बार संशोधन भी हो चुके हैं। यह कार्य संसद का है जो वह समयानुरूप करती रहती है। चूंकि इलैक्ट्राॅनिक मशीनों द्वारा चुनाव कराये जाने के लिए इसी अधिनियम में संशोधन किया गया था अतः पुनः बैलेट पेपर प्रणाली पर लौटने के लिए भी संशोधन करना जरूरी होगा मगर चुनाव आयोग को अपनी स्वतन्त्र मन्त्रणा देने से कोई नहीं रोक सकता, 1988 में इसी अधिनियम में संशोधन करके चुनाव आयोग को अधिकार दिया गया था कि वह वोटिंग मशीनों का प्रयोग मतदान में कर सकता है। यह काम उस समय राजीव गांधी सरकार ने कम्प्यूटर प्रेम में कर डाला था। अतः इसे पलटने के लिए संसद में ही आना पड़ सकता है।

इसी वजह से देश के 17 विरोधी दल इस बारे में गंभीर विचार में लगे हुए हैं परन्तु इसी के समानान्तर चुनाव आयोग ने भी कुछ दिनों बाद सभी राजनैतिक दलों की बैठक बुलाई है। हालांकि आयोग के विमर्श में ईवीएम का मुद्दा न होने की बात कही गई है परन्तु राजनैतिक दलों को इसे उठाने से कैसे रोका जा सकता है। कुछ माह पहले भोपाल से दिल्ली आते समय विमान में मेरे साथ मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत भी थे। मैंने उनसे ईवीएम को लेकर उठ रहे सवालों के बारे में चर्चा की तब इस पर श्री रावत ने मुझे बताया कि ईवीएम में खराबी नहीं है बल्कि राजनीतिक दलों में है। निर्वाचन आयोग ने कई मतदान केन्द्रों पर सीसीटीवी कैमरे लगाये थे। उन्होंने पाया कि राजनीतिक दल बूथ कैप्चरिंग करके अपने उम्मीदवारों के नाम के बटन दबवा रहे थे। जब ईवीएम का इस्तेमाल नहीं था तब बूथ कैप्चरिंग बहुत होती थी। निष्कर्ष यह है कि बार-बार ईवीएम को लेकर उठने वाली आशंकाओं पर हमेशा के लिए पानी फेरने हेतु निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों को संतुष्ट करना ही होगा। मतदाताओं को भी इस सम्बन्ध में जागरूक बनाना होगा कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं है।

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