तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर लगातार गुड न्यूज मिल रही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर लगातार गुड न्यूज मिल रही है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून में देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) 13.5 फीसदी रही है। पिछली तीन तिमाही के मुकाबले यह ग्रोथ सबसे शानदार रही है। इस  आंकड़े से विदेशी निवेशकों में भारत की धाक मजबूत होगी। वे भारतीय बाजारों में निवेश करने के लिए आकर्षित होंगे। यद्यपि 13.5 फीसदी की ग्रोथ अर्थशा​स्त्रियों के अनुमान से कम है फिर भी इसे अच्छा माना जा सकता है। अर्थशा​स्त्रियों का अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2047 तक 20 हजार अरब डालर तक पहुंच जाएगी, बशर्ते अगले 25 वर्षों में औसत विकास 7-7.5 फीसदी हो। अगर देश अगले 25 वर्षों में इस रफ्तार से बढ़ने में सफल हो गया तो वह 2047 तक उच्च मध्य आय वाले देशों में शामिल हो जाएगा। आर्थिक आंकड़े से बेहतरी के संकेत मिलते  हैं लेकिन इन आंकड़ों में केवल संगठित क्षेत्र के आंकड़े ही शामिल हैं। असंगठित क्षेत्र के आंकड़ों के  शामिल करने के बाद यह वृद्धि कमजोर पड़ जाएगी।
भारत के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात असंगठित क्षेत्र है, जहां आज भी कामकाज पूर्व कोरोना स्तर पर नहीं आ सका है। इस सेक्टर में भारत के सबसे ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। इस समय संगठित क्षेत्र की बढ़त का सबसे बड़ा कारण यही है कि असंगठित क्षेत्र में निर्माण कमजोर पड़ रहा है, मजबूरन लोग अपनी जरूरतों के लिए संगठित क्षेत्र के उत्पाद खरीद रहे हैं। लेकिन असंगठित क्षेत्र के कमजोर पड़ने से उनके हाथों में पैसा नहीं पहुंचेगा, और लम्बी अवधि में उनकी खरीद क्षमता बुरी तरह प्रभावित होगी। इससे ये उपभोक्ता संगठित क्षेत्र के उत्पाद भी खरीदने में असमर्थ होंगे। इससे संगठित क्षेत्र के भी कमजाेर पड़ने की आशंका बढ़ जाएगी। सरकार को असंगठित क्षेत्र को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे में अर्थव्यवस्था किस रास्ते बढ़ती है, उस पर नजर रखनी होगी।आर्थिक प्रगति के स्तर का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हमारी जीडीपी में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत हो चुकी है। विभिन्न कारणों से स्वतंत्रता के पहले डेढ़ दशकों में हमारा निर्यात बहुत कम भी था और उसमें कोई वृद्धि नहीं हो रही थी। धीरे-धीरे होते औद्योगिक विकास और उद्यमिता के विस्तार ने विकास यात्रा को एक बड़ा आधार दिया और  तीन दशक पहले उदारीकरण के लागू होने के बाद से हमारा निर्यात निरंतर बढ़ता जा रहा है। बीते वित्त वर्ष में कुल निर्यात लगभग सवा चार सौ अरब डालर रहा था। दुनिया के अग्रणी देश अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, हांगकांग, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया आदि हमारे उल्लेखनीय व्यापारिक साझेदार हैं। आज हम दवाओं के सबसे बड़े निर्माता हैं, जिस कारण भारत को ‘दुनिया का दवाखाना’ भी कहा जाता है। गरीबी उन्मूलन, आवास उपलब्धता, कौशलयुक्त शिक्षा, तकनीक, वित्तीय प्रबंधन आदि मामलों में हमारा विकास विश्व के समक्ष एक आदर्श है।दूसरी अच्छी खबर यह है कि महंगाई से जूझ रहे लोगों के लिए सरकार ने दो स्कीमों के तहत तुअर, उड़द और मसूर की खरीद सीमा बढ़ाने को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों को कल्याणकारी योजनाओं के लिए बफर स्टाक से चना दाल रियायती दरों पर बेचने की अनुमति दे दी है। चना दाल पर 8 रुपए प्रति किलो की छूट पर 15 लाख टन  बेची जाएगी। केन्द्र सरकार इस योजना पर 1200 करोड़ खर्च करेगी। इससे किसान भी दलहन उगाने के लिए प्रोत्साहित होंगे और देश दाल उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा। दालों की ऊंची कीमतें अभी भी चुनौती बनी हुई हैं। खेती के मोर्चे पर अच्छी खबर के बीच कमजोर मानसून एक चिंत​नीय पहलू बना  हुआ है। खरीफ की फसल की बुवाई कम हुई है, जिसके कारण चावल उत्पादन का गिरना तय है। चावल के रेट अभी बाजार में तेजी पकड़े हुए हैं। धान का रकबा 43.83 लाख हेक्टेयर कम रहा जो सरकार की चिंता बढ़ा सकता है। गेहूं के उत्पादन में थोड़ी बढ़ौतरी होने की उम्मीद है लेकिन केन्द्रीय पूल में इन दोनों प्रमुख खाद्यान्नों की उपलब्धता चार साल में सबसे कम स्तर पर है। बाजार पर इसका असर होना तय है और महंगाई को थामने की कोशिश करने में लगी सरकार को इन ​दोनों प्रमुख जिन्सों की कीमतों को दायरे में बनाए रखना होगा। अब अन्य फसलों पर मानसून की कमजोरी का क्या असर होगा यह भी देखना होगा। गन्ने  के उत्पादन पर भी इसका असर ​दिख रहा है। सरकार की मुद्रास्फीति को थामने के उपायों के ​लिए खाद्य पदार्थों की महंगाई को भी काबू रखना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seven − seven =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।