अमेरिका-चीन के बीच तेज हुआ ट्रेडवार - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

अमेरिका-चीन के बीच तेज हुआ ट्रेडवार

NULL

दुनिया की दो दिग्गज अर्थव्यवस्थाओं वाले देश अमेरिका और चीन के बीच ट्रेडवार कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के 200 अरब डॉलर के सामान पर टैरिफ बढ़ाने के बाद शेष बचे सामानों पर भी टैक्स बढ़ाने का फैसला लिया है। अमेरिका-चीन की वार्ता बेनतीजा समाप्त हो गई है, हालांकि चीन ने कहा कि समस्या के समाधान की अभी भी उम्मीद है। टैरिफ बढ़ाए जाने का असर बड़े कारोबार में 3 या 4 माह बाद पड़ेगा लेकिन छोटे और मझोले व्यापारियों पर इसका असर तुरन्त पड़ने लगा है। इस मसले को लेकर अमेरिका और चीन वार्ता जारी थी, कुछ मसलों पर सहमति बनी भी थी लेकिन अमेरिका का आरोप है कि चीन उन्हें लेकर पीछे हट रहा है। अमे​रिकी फैसले पर चीन ने पलटवार करते हुए कहा है कि वह भी सख्त जवाबी कदम उठाएगा। अचानक उभरी इस तनातनी ने दुनिया को चिन्ता में डाल दिया है और इसका फौरी असर दुनियाभर के शेयर बाजारों में भारी गिरावट के रूप में देखा गया।

कुछ विशेषज्ञ तो इसे आर्थिक शीतयुद्ध की शुरूआत तक बताने लगे हैं जो अगले 20 वर्षों तक चल सकता है। दुनिया की इन दो आर्थिक महाशक्तियों का टकराव विश्व अर्थव्यवस्था पर इतना गहरा असर डाल सकता है कि खुद अमेरिका के लिए भी उसके विनाशकारी प्रभाव से बचना कठिन होगा। चीन से व्यापारिक टकराव में जाने के पीछे उनका यह डर काम कर रहा है कि तकनीकी तरक्की के जरिये चीनी अर्थव्यवस्था कहीं अमेरिका से भी बड़ी न हो जाए। साल 2025 तक सम्पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल करने का चीनी नारा भी अमेरिका के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ है। अनुमान है कि तब तक वह अपनी 150 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था को अमेरिका की 200 खरब डॉलर की इकॉनामी के करीब ला खड़ा करेगा। इसीलिए चीन को कुछ खास क्षेत्रों से बाहर रखने का दबाव अमेरिका इस ट्रेडवार के जरिये बना रहा है। उसकी सबसे बड़ी कोशिश यह है कि चीन अपने यहां व्यापार करने आई अमेरिकी कम्पनियों के सामने टेक्नॉलाजी शेयर करने की शर्त न रखे। देखने की बात है कि अमेरिका की एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ चीन कौन सा जवाबी कदम उठाता है।

अमे​रिकी राष्ट्रपति ने कमान सम्भालते ही अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए मेक्सिको, कनाडा और अमेरिका के बीच बेहद अहम ट्रेड समझौता नाफ्टा को रिजेक्ट करने का फैसला लिया था। अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में नाफ्टा इतिहास के सबसे पहली ट्रेड संधियों में एक है। राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने चुनावी वादों में दावा किया था कि वह चीन को वर्ल्ड ट्रेड में गलत नीतियों के लिए जिम्मेदार ठहराएंगे और ऐसी व्यवस्था तैयार करेंगे जिसमें अमेरिका का फायदा हो। डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका ने चीन को डब्ल्यूटीओ में शामिल कर गलती की थी। ट्रंप के मुताबिक डब्ल्यूटीओ में चीन ने हमेशा गलत नीतियों के सहारे अपने कारोबार में बड़ा इजाफा किया है। ट्रंप ने दावा किया कि चीन की अर्थव्यवस्था को डब्ल्यूटीओ का सबसे बड़ा फायदा मिला। लिहाजा, ट्रंप ने कहा कि अब अमेरिका आपसी कारोबार में उसे 500 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष नहीं अदा करेगा लिहाजा उन्होंने चीन के उत्पादों पर टैरिफ में इजाफा किया है। स्थिति कितनी गम्भीर हो रही है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका और चीन के बीच आयात शुल्कों से आरम्भ यह युद्ध अब भारत, यूरोपीय संघ, तुर्की, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान और मेक्सिको तक विस्तारित हो गया है।

इसमें दुनियाभर के केन्द्रीय बैंक एवं प्रमुख संस्थाएं भारी आर्थिक मंदी के खतरे की भविष्यवाणी कर रही हैं। अमेरिका के फेडरल रिजर्व, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, जापान, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड के बैंक प्रमुखों ने कहा है कि पूरी स्थिति वैश्विक व्यापार युद्ध की शक्ल अख्तियार कर रही है। इनके अनुसार यदि इसको रोका नहीं गया, तो यह 2008 से भी भयानक मंदी पैदा कर सकता है। यह मानने में तो कोई हर्ज नहीं है कि एक-दूसरे के सामानों की आवाजाही को शुल्कों से बाधित करने के कारण व्यापारिक माहौल बिगड़ेगा। इसके दुष्परिणाम बहुआयामी होंगे जिनमें विकास दर में गिरावट शामिल है। वास्तव में ‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संरक्षणवादी नीतियों और व्यापार शुल्क को हथियार के तौर पर जिस तरह उपयोग करना आरम्भ किया है, उसका परिणाम यही होना है। अमेरिका ने मार्च महीने में भारत से आयातित इस्पात पर 25 प्रतिशत और एल्युमीनियम पर 10 प्रतिशत शुल्क लगा दिया था। इसके जवाब में अब भारत ने अमेरिका से आने वाली 29 वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ा दिया। मटर और बंगाली चने पर शुल्क बढ़ाकर 60 प्रतिशत, मसूर दाल पर 30 प्रतिशत, बोरिक एसिड पर 7.5 प्रतिशत, घरेलू रीजेंट पर 10 प्रतिशत, आर्टेमिया (एक प्रकार की झींगा मछली) पर 15 प्रतिशत कर दिया गया है।

इनके अलावा चुनिंदा किस्म के नटों, लोहा एवं इस्पात उत्पादों, सेब, नाशपाती, स्टेनलेस स्टील के चपटे उत्पाद, मिश्र धातु इस्पात, ट्यूब-पाइप फिटिंग, स्क्रू, बोल्ट और रिवेट पर शुल्क बढ़ाया गया है। हालांकि अमेरिका से आयातित मोटरसाइकिलों पर शुल्क नहीं बढ़ाया गया है। इसके पहले 17 जून को जो फैसला किया गया था उसके मुताबिक अमेरिका से आयात होने वाली 800 सीसी से ज्यादा की मोटरसाइकिलों पर 50 प्रतिशत शुल्क लगेगा, बादाम पर 20 प्रतिशत, मूंगफली पर 20 प्रतिशत और सेबों पर भी 25 प्रतिशत। भारत बातचीत के जरिये मसले को सुलझाना चाहता था। जून के दूसरे सप्ताह में वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु अमेरिका दौरे पर गए थे। प्रभु की अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस और अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि रॉबर्ट लाइटहाइजर के साथ हुई बैठकों के दौरान विवाद को बातचीत से सुलझाने का निर्णय करने की घोषणा की गई थी। अमेरिका द्वारा चीन के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाए जाने से भारतीय रुपए पर भी दबाव बढ़ेगा। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि रुपया अगले हफ्ते डॉलर के मुकाबले 70 का लेबल पार कर सकता है। यह ठीक है कि अमेरिका भारी व्यापार घाटे में है और उसकी अर्थव्यवस्था भी घाटे की अर्थव्यवस्था बन गई है किन्तु वहीं एक समय यह दुनिया में खुले और मुक्त व्यापार का झंडाबरदार बना हुआ था।

यही मुक्त व्यापार व्यवस्था उसके गले की हड्डी क्यों बन रही है? क्यों वह अपने ही मुक्त बाजार की विश्व व्यवस्था से पीछे हट रहा है? इस व्यवस्था में संरक्षणवादी और आयात शुल्कों का हमला कतई निदान नहीं हो सकता। व्यापार आगे बढ़ते हुए कई प्रकार के अन्य तनावों में परिणत हो सकता है। इससे दुनिया को बचाना जरूरी है। आज यह प्रश्न उठाने की आवश्यकता है कि क्या यह तथाकथित बाजार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का स्वाभाविक संकट है? क्या इसका निदान इस व्यवस्था में है या हमें किसी वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश करनी होगी जिसमें देशों की एक-दूसरे के आयातों और निर्यातों पर निर्भरता कम हो सके?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − ten =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।