भारत दशकों से समूचे विश्व को पाक प्रायोजित आतंकवाद के सम्बन्ध में अवगत कराता रहा है लेकिन किसी ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। अब अमेरिका भी भारत से पूरी तरह सहमत दिखाई दे रहा है। जो लोग इस्लामी आतंकवाद पर खामोश रहे या मुखर नहीं हुए उन्हें भी अब आत्मावलोकन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उदारवादी इस्लाम, शांतिप्रिय इस्लाम, अच्छे मुस्लिम, बुरे मुस्लिम, गुड तालिबान, बैड तालिबान का वर्गीकरण करने वाले भी अपना रवैया बदलते दिखाई दे रहे हैं। इस्लामी आतंकवाद ने ऐसा भयंकर स्वरूप धारण कर लिया है कि यदि इस्लाम को राजनीति से अलग नहीं किया गया तो स्वयं मध्य एशिया के दर्जनों देशों में पुनः रक्तरंजित नई क्रांति हो सकती है।
भारत के पड़ोस में बने नाजायज मुल्क पाकिस्तान में आतंकवाद की खेती की जाती है। भारत ने मुम्बई सिहत कई बड़े हमले झेले हैं जिनमें पाकिस्तानी आतंकवादियों का हाथ रहा है। अब जाकर अमेरिका के रुख में बदलाव नजर आने लगा है। अमेरिका के राष्ट्रपित डोनाल्ड ट्रंप ने देश की नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की घोषणा करते हुए पाकिस्तान से दो-टूक कहा है कि वह अपनी सरजमीं से गतिविधियां चलाने वाले आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करे। डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को चेताया कि ‘‘हम पाकिस्तान को हर वर्ष बड़ा भुगतान करते हैं, उसे मदद करनी ही होगी। पाकिस्तान को 9/11 हमले के बाद भी अमेरिका से 33 अरब डॉलर की राशि मिली है। पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने ही होंगे। दुनिया भर में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की चर्चा इसलिए हो रही है कि ट्रंप ने चीन को अपना बड़ा प्रतिद्वंद्वी मानते हुए इससे निपटने की बात कही है, वहीं उन्होंने भारत को अपना एक अहम रक्षा और रणनीतिक सहयोगी करार देते हुए द्विपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ करने की बात कही है।
अमेरिका की सुरक्षा नीति में भारत का जिक्र 8 बार किया गया है। इससे स्पष्ट है कि भारत-अमेरिका की मित्रता आने वाले कुछ वर्षों तक वैश्विक कूटनीति में अहम बदलाव वाली सिद्ध होगी। अमेरिका ने न केवल भारत को एक अग्रणी वैश्विक शक्ति के तौर पर चिन्हित किया है, बल्कि अहम मुद्दों पर भारतीय रुख के खुलेआम समर्थन को भी तैयार दिखाई देने लगा है। अमेरिका ने इससे पहले मुम्बई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की रिहाई की आलोचना करते हुए कहा था कि उसकी रिहाई का खामियाजा द्विपक्षीय सम्बन्धों को भुगतना पड़ेगा। यदि पाकिस्तान सईद पर कानूनी रूप से कार्रवाई नहीं कर सकता आैर उसके अपराधों के लिए उस पर अभियोग नहीं चला सकता तो पाकिस्तान की निष्क्रियता का खामियाजा दोनों देशों के सम्बन्धों और पाकिस्तान की वैश्विक प्रतिष्ठा को भुगतना पड़ेगा। अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में दक्षिण चीन सागर समेत दुनिया के अन्य हिस्सों में चलाए जा रहे चीन के वन बैल्ट, वन रोड (ओबीओआर) का उल्लेख भी किया गया है कि इसकी वजह से कई देशों की संप्रभुता का हनन हो रहा है। इसे भारत के संदर्भ में देखा जा सकता है। पाक अधिकृत कश्मीर से चीन के वन बैल्ट, वन रोड का बड़ा हिस्सा गुजर रहा है।
भारत पाक अधिकृत कश्मीर को अपना अंग मानता है आैर इस परियोजना का विरोध कर रहा है। अमेरिका ने भारत के एक वैश्विक शक्ति के तौर पर उद्भव का स्वागत करते हुए कहा है कि हम भारत, जापान, आस्ट्रेलिया के साथ चार देशों के सहयोग को बढ़ाएंगे। अमेरिका की फटकार से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लैफ्टिनेंट जनरल नसीर खान जंजुआ ने भारत-पाक में परमाणु युद्ध तक की आशंका जता दी है। जंजुआ का कहना है कि पाकिस्तान ने अमेरिका से गठबंधन की भारी कीमत चुकाई है, तभी से वह आतंकवाद का सामना कर रहा है। जंजुआ ने उलटा अफगानिस्तान में तालिबान की मजबूती का ठीकरा भी अमेरिका पर ही फोड़ दिया है। इससे साफ है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों से कोई उम्मीद नहीं कि वह आतंकवाद को खत्म करने के लिए कोई कदम उठाएंगे। अब अहम सवाल यह है कि क्या अमेरिका-पाक दोस्ती खत्म होने के कगार पर है? क्या अमेरिका भारत की इच्छाओं के अनुरूप पाकिस्तान पर कार्रवाई करेगा? डोनाल्ड ट्रंप पर भरोसा किया जाए या नहीं? डोनाल्ड ट्रंप पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जा सकता। अमेरिकी अपने हितों को सर्वोपिर रखते हैं। भारत को काफी सतर्कता से काम लेना होगा। जब तक अमेरिका पाक के खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं करता तब तक ऐसी बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता। इतना जरूर कहा जा सकता है कि शीतयुद्ध काल के बाद पहली बार अमेरिका के भारत के प्रति रुख में परिवर्तन आया है और विश्व की अहम शक्तियों का एक रणनीतिक गठबंधन बन रहा है जो कि एक अच्छी पहल है।