भारतीय परम्परा में जनमानस अपने गुरुओं, संतों पर आंख बन्द करके विश्वास कर लेता है। जनमानस को उनमें ईश्वर की छवि दिखाई देती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अपने दर्शन और चिन्तन से भारत में समाज को सुधारने में संतों, महात्माओं ने बड़ी भूमिका निभाई है। तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में गुरु की वन्दना करते हुए कहा है किः
‘‘वंदऊ गुरु पद पद्म परागा
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।’’
यानी हे गुरु महाराज, मैं आपके चरण कमल रज की वन्दना करता हूं जो सुरुचि, सुगन्ध तथा अनुराग रूपी रस से पूर्ण है। महान विभूतियों ने उपनिषदों और ग्रंथों में गुरुओं की महिमा का बखान किया है। भारत में लोग आज भी गुरुओं को पूर्ण सम्मान देते हैं लेकिन आज के गुरु धर्म की आड़ में उनका शोषण करते हैं। उनमें कोई सुगन्ध नहीं बल्कि दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध है। संत का चोला ओढ़कर भोग लिप्सा एवं अकूत सम्पत्ति एकत्र करना ही उनका मकसद हो गया। कभी भारतीय संतों की गूंज पूरी दुनिया में थी। इन्हीं में से कुछ संतों ने अपने स्वतंत्र विचार और दर्शन को स्थापित कर एक नए समाज की रचना की। स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी प्रभुपाद जी, जे. कृष्णमूर्ति और अन्य कई विभूतियों ने समाज को नई दिशा दी। भारतीयों ने उस देवरहा बाबा को देखा है जिन्होंने उम्रभर यमुना किनारे लकड़ियों से बने एक मचान पर जीवन गुजारा। बाबा अपनी मचान पर चढ़कर भक्तों को आशीर्वाद देते हुए प्रवचन देते थे। उनका आशीर्वाद लेने लोगों की भीड़ मथुरा में यमुना किनारे उमड़ पड़ती थी। इन सभी संतों का उद्देश्य जनकल्याण रहा। आज के संतों की गूंज तो दुनिया में है लेकिन यह गूंज नकारात्मक है। एक के बाद एक ढोंगी बाबाओं के चेहरे से नकाब उतर रहे हैं। अब इन बाबाओं में एक नाम दाती महाराज का भी जुड़ गया है जो अपने आश्रम में लड़कियों के यौन शोषण के आरोपों का सामना कर रहा है।
हैरानी की बात तो यह है कि वारंट जारी होने के बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं किया गया। अदालत ने पुलिस को फटकार भी लगाई है। सच को सामने लाना पुलिस का काम है, दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए। आसाराम, रामपाल, राम रहीम, कर्नाटक का स्वामी नित्यानन्द, केरल का संतोष माधवन उर्फ स्वामी अमृत चैतन्य की नीली कहानियां जगजाहिर हो चुकी हैं। यौन उत्पीड़न के आरोप केवल हिन्दू बाबाओं पर ही नहीं लगे बल्कि सभी धर्मों के बाबाओं पर लगे हैं। केरल के कोट्टायम में एक चर्च के 5 पादरियों द्वारा एक विवाहिता का कई साल से यौन शोषण किए जाने की घटना भी सामने आ गई है। महिला के पति ने चर्च को चिट्ठी लिखकर 8 पादरियों के खिलाफ शिकायत की है। हालांकि उसने सिर्फ 5 पादरियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है और आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी का 380 बार यौन शोषण किया गया। चर्च के प्रधान पादरी ने इन पांचों आरोपी पादरियों को छुट्टी पर भेज दिया है। इनमें से एक पादरी तो चर्च के दिल्ली अधिकार क्षेत्र के लिए काम करने वाली शाखा से जुड़ा रहा है। पीडि़त महिला ने आरोपी पादरियों में से एक के समक्ष कुछ कन्फेशन किया था जिसे चर्च के नियमों के मुताबिक पादरी को सिर्फ खुद तक सीमित रखना चाहिए था लेकिन आरोपी पादरी ने महिला द्वारा किए गए कन्फेशन के जरिये ही उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। ब्लैकमेल करके महिला को एक के बाद दूसरे और फिर दूसरे से तीसरे पादरी के पास जाने को विवश किया गया। यह सिलसिला चलता रहा।
धर्मगुरुओं ने देशभर में ऐसा मायाजाल फैला रखा है कि लोग उसमें फंसते ही जा रहे हैं। बापू आसाराम से लेकर चर्च के फादर तक सभी पर दुष्कर्म के आरोप लग रहे हैं। ऐसे संतत्वविहीन संतों ने समाज को भ्रमित किया है, उन्हें कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। ऐसे ढोंगी संतों के चलते सच्चे और कर्त्तव्यनिष्ठ संतों को भी संदेह के दायरे में ला खड़ा किया है। ऐसे तथाकथित बाबाओं ने धर्म और संस्कृति को कलंकित ही किया है। सवाल केवल हिन्दू धर्म को आघात का ही नहीं है बल्कि अन्य धर्मों को भी नुक्सान पहुंच रहा है। सवाल समाज का है, जिसका शोषण इन लोगों ने किया हैै। अब समाज को ऐसे लोगों से बचने का मार्ग तलाशना होगा। अगर ऐसे ही चलता रहा तो समाज का संतों से विश्वास उठ जाएगा। फर्जी बाबाओं ने धर्म को शर्मिंदा ही किया है। अब जनमानस को चाहिए कि वह सच्चे संत की तलाश करें, उन्हें परखें, उनमें संतत्व को ढूंढें अन्यथा आडम्बरों से दूर रहें। आज के युग में असली संत नहीं मिलेंगे। हैरानी होती है कि ढोंगी बाबा जेल में बन्द हैं और हजारों समर्थक जेल की तरफ मुंह कर उसे नमन कर रहे हैं। जिसमें संतत्व नहीं वह संत कैसे हो सकता है। जिस प्रकार लोकतंत्र प्रतिनिधि तंत्र है, ठीक वैसे ही संतों का समाज भी ईश्वर का प्रतिनिधि तंत्र है लेकिन इस तंत्र में भी अपराधी प्रवृत्ति के लोग घुस चुके हैं। उन्हें पहचानिये आैर सच्चे अध्यात्म का मार्ग अपनाइए।