उत्तराखंड में बसने लगे भूतिया गांव - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

उत्तराखंड में बसने लगे भूतिया गांव

यद्यपि कोरोना काल में राज्यों में फंसे मजदूरों को लाने के लिए हर राज्य की सरकार व्यवस्था करने में लगी हुई है। दो वक्त की रोटी की तलाश में घर छोड़ कर परदेश जाने को मजबूर हुए मजदूर लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हो चुके हैं

यद्यपि कोरोना काल में राज्यों में फंसे मजदूरों को लाने के लिए हर राज्य की सरकार व्यवस्था करने में लगी हुई है। दो वक्त की रोटी की तलाश में घर छोड़ कर परदेश जाने को मजबूर हुए मजदूर लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हो चुके हैं। जब तक पैसे थे वे खाना खाते रहे लेकिन जब पैसा खत्म होने लगा तो फिर पैदल ही घरों को लौटने लगे। भूख से मरने की बजाय वह 300-400 किलोमीटर चलकर अपने गांवों को लौटे। हजारों को एकांतवास में भी रहना पड़ा। मजदूरों में बदहवासी का आलम है। जिनके बच्चे बहुत छोटे हैं, उनके लिए तो राह बहुत कठिन थी। ट्रॉली बैग पर सो रहे बच्चे की तस्वीर वायरल हो रही है जिसे मां खींच रही है। ऐसे-ऐसे मंजर देखने को मिल रहे हैं जो जिन्दगी भर भुलाये नहीं जा सकेंगे। किसी के पांव में चप्पल नहीं, किसी ने तीन दिन से खाना नहीं खाया। भला हो इंसानियत के देवताओं का जिन्होंने राह चलते मजदूरों और उनके परिवारों की हर तरह से मदद की। पलायन करने को विवश हुए श्रमिकों का घर पहुंचना उनके लिए बहुत बड़ी राहत की बात है।
मजदूरों की घर वापसी उत्तराखंड के लिए एक सकारात्मक खबर भी है। जब से उत्तराखंड अलग राज्य बना है पहाड़ी गांवों से लोग रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों को पलायन करते गए, जिन्हें वापस लाने का प्रयास भी सरकारें करती रही हैं लेकिन कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि राज्य के पहाड़ी गांवों में रोजगार के अवसर हैं ही नहीं। एक अनुमान के अनुसार पिछले दस वर्षों में पर्वतीय जिलों से 5 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। कोरोना संकट के चलते लगभग 70 हजार लोग वापस आ चुके हैं और अगले कुछ दिनों में डेढ़-दो लाख लोगों की वापसी हो जाएगी। यह अच्छी बात है कि राज्य के खाली हो चुके 1700 भूतिया गांवों में से आधे फिर आबाद हो जाएंगे। लॉकडाउन खुलते ही यह भी संभव है कि दो लाख लोग और आ जाएं। आबादी की कमी के कारण पहाड़ी जिलों की 9 विधानसभा सीटें भी कम करनी पड़ी थी। उत्तराखंड की सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वह संकट काल को अवसर में कैसे बदलती है। अगर सरकार कुशल और अर्द्ध कुशल मजदूरों को रोजगार मुहैय्या कराने में सफल हो जाती है तो वीरान गांवों में खुशहाली आ सकती है।
2017 में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की अध्यक्षता में पलायन आयोग बना था। आयोग के उपाध्यक्ष डा. एस.एस. नेगी ने 2018 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। जिसमें बताया गया था कि 2011 में 1034 गांव खाली थे जो 2018 तक 1734 हो चुके हैं। कोई समय था जब खेती के लिए पूरा गांव जुटता था। रोपाई के समय बड़ी रौनक होती थी लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में मंडियां नहीं, ​िकसान अपना उत्पादन तराई के क्षेत्रों में ले जाता था तो उतना पैसा नहीं मिलता था जितना ढुलाई में लग जाता था। गांव व्यवस्थागत खामियों का शिकार हो गए। पहले भेड़ पालक, जो जाड़ों में नीचे आ जाते थे और गर्मियों में ऊपर चले जाते थे, सुविधाओं के अभाव में वे भी शहरों की ओर पलायन कर गए। राज्य सरकारों ने भी पहाड़ की उपेक्षा की और शहरी क्षेत्रों की ओर ज्यादा ध्यान दिया। राजनीतिज्ञों ने भी गांव छोड़कर शहर में अपने आवास बना लिए। गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी पलायन का कारण रही लेकिन केदारनाथ की प्राकृतिक आपदा ने भी राज्य की अर्थव्यवस्था को काफी नुक्सान पहुंचाया। जान और माल की भयंकर हानि हुई थी। प्रकृति के विध्वंस के बाद सृजन में समय तो लगता ही है। अगर सरकारों ने पहाड़ पर समुचित ध्यान दिया होता तो पलायन की समस्या भी विकराल नहीं होती। गांव से चुनाव लड़ने वाले जनप्रतिनिधि भी आज मैदानी इलाकों में हैं।
पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल 2020 में जिन लोगों की वापसी हुई उनमें अधिकांश लोग हास्पिटेलिटी सैक्टर, पर्यटन, प्रोफैशनल जैसे आईटी या शैफ, ड्राइवर या खुद का छोटा व्यवसाय करने वाले हैं। इनमें से 30 फीसदी लोग अब उत्तराखंड में ही रुकना चाहते हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि पलायन आयोग की सिफारिशें लागू करे। लोगों को पुनर्वास के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दे। उदारता से ऋण दे। पहाड़ी गांवों में पर्यटन के लिए एडवेंचर गेम शुरू की जा सकती हैं। हर गांव तक बुनियादी सुविधायें मुहैया कराई जानी चाहिए। अगर लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल जाए तो फिर पहाड़ को कौन छोड़ना चा​हेगा।
उत्तराखंड के लोग शहरों में आकर होटलों और फैक्ट्रियों में छोटी-मोटी नौकरी करते हैं। काम बंद होने से लोग सोचने को मजबूर हैं और गांवों में कुछ करना चाहते हैं। उत्तराखंड सरकार अगर बड़े स्तर पर योजनाएं चला कर रोजगार मुहैय्या कराती है, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा व्यवस्था करती है तो परदेश में धूल फांकने की बजाय लोग अपने पैतृक घरों में रहकर अपना जीवन स्तर सुधारेंगे। खेत-खलिहान लहलहा उठेंगे और बच्चों की किलकारियों से पहाड़ गूंजेगा। सरकार को पहाड़ के लिए कुछ ठोस प्रोजैक्ट लाने ही होंगे। देव भूमि में अपने लोगों का दिल खोलकर स्वागत करना ही होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × 3 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।