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ब्रिटेन में स्वर्णिम ‘सुनक’

बीसवीं सदी के अर्ध शतक तक आधी दुनिया पर अपने साम्राज्य की पताका फहराने वाले ग्रेट ब्रिटेन की सत्ता पर जिस प्रकार भारतीय मूल के श्री ऋषि सुनक को इस देश की कंजर्वेटिव पार्टी ने उनकी योग्यता को वरीयता देते हुए बैठाया है

बीसवीं सदी के अर्ध शतक तक आधी दुनिया पर अपने साम्राज्य की पताका फहराने वाले ग्रेट ब्रिटेन की सत्ता पर जिस प्रकार भारतीय मूल के श्री ऋषि सुनक को इस देश की कंजर्वेटिव पार्टी ने उनकी योग्यता को वरीयता देते हुए बैठाया है उससे इस देश के महान लोकतन्त्र की स्थापित कालजयी परंपराओं का अनुमान लगाया जा सकता है। श्री सुनक एशियाई मूल के भी प्रथम ब्रिटिश प्रधानमन्त्री होंगे और ब्रिटेन के इतिहास के पहले गैर ईसाई ‘हिन्दू’ अश्वेत प्रधानमन्त्री होंगे। एक भारतीय मूल के व्यक्ति का ब्रिटेन का प्रधानमन्त्री बनने से यह भी स्पष्ट  हो गया है कि एक जमाने में विदेशों में जाकर बसे भारतीय जिस देश में भी जाते हैं उसी देश की राजनैतिक मान्यताओं व परंपराओं में रच-बस जाते हैं और उसी देश की प्रगति व विकास में अपना पूर्ण योगदान करते हैं। आम भारतीय के लिए और समूचे भारत के लिए निश्चित रूप से ही यह अनूठे गौरव का दिन है मगर इससे भी बड़ा गर्व करने का दिन ब्रिटेन के लिए है जिसने अपने देश के राजनीतिक लोकतन्त्र के इतिहास में नई इबारत लिख दी है और पूरी दुनिया को सन्देश दिया है कि किसी भी वैध नागरिक के साथ उसकी नस्ल को लेकर किसी भी प्रकार के भेदभाव की गुंजाइश उसकी शासन व्यवस्था में नहीं है। 
हालांकि इससे पहले भी ​िब्रटेन की सरकारों में विभिन्न उच्च पदों पर भारतीय व एशियाई मूल के लोग रहे हैं मगर अपने देश की पूरी बागडोर ही किसी दूसरे देश से आकर ब्रिटेन में बसे परिवार में जन्मे व्यक्ति पर छोड़ देना निश्चित रूप से पूरी अंग्रेज जाति की वर्तमान समय में न्यायप्रियता का बेजोड़ दस्तावेज है। मगर यह प्रश्न भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि ब्रिटेन की लोकसभा ( हाउस आफ कामंस) में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के 370 सांसद होने के बावजूद उन्होंने भारतीय मूल के अपने एक सांसद श्री ऋषि सुनक को ही क्यों चुना? श्री सुनक इससे पूर्व बारिस जानसन की सरकार में 2019 से 2022 तक वित्तमन्त्री रहे थे औऱ उन्होंने कोरोना संकट के समय अपने देश की अर्थव्यवस्था को संभाले रखने के लिए अपनी लोकमूलक वित्त नीतियों के जरिये मूल आर्थिक अवयवों को नीचे नहीं गिरने दिया था परन्तु जुलाई 2022 में उनके इस पद से हटने के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट दर्ज होने लगी और प्रधानमन्त्री बारिस जानसन की अदूरदर्शी नीतियों की वजह से एक तरफ महंगाई और दूसरी तरफ औद्योगिक व वाणिज्यिक परिस्थितियां नीचे का रुख लेने लगीं तथा श्री जानसन के हर रोज किसी न किसी विवादास्पद पचड़े में फंस जाने से राजनैतिक माहौल भी अस्थिरता का बनने लगा जिसकी वजह से श्री जानसन को इस्तीफा देना पड़ा। उनके इस्तीफा देने के बाद सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी में नया प्रधानमन्त्री चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई जो दो महीने से भी अधिक समय तक चली। इसमें कंजर्वेटिव पार्टी के सांसदों के साथ ही चयनित कई लाख प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिसमें श्री सुनक भी खड़े हुए मगर उन्हें अपनी प्रतिद्वंद्वी लिज ट्रस के मुकाबले केवल 20 हजार मत कम प्राप्त हुए। इस प्रकार श्रीमती ट्रस सितम्बर महीने में ब्रिटेन की प्रधानमन्त्री बनी मगर वह केवल 45 दिन ही अपने पद पर बनी रह सकीं क्योंकि उनके प्रधानमन्त्रित्वकाल के दौरान ब्रिटेन का आर्थिक संकट और अधिक गहरा गया महंगाई बेतहाशा बढ़ गई और ब्रिटेन की मुद्रा पौंड अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार लड़खड़ाने लगी। जबकि श्री सुनक ने ट्रस से मुकाबला करते हुए ही अपने भाषणों में साफ कर दिया था अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वह एेसी दूरगामी यथार्थ परक कठोर नीतियां अपनायेंगे जिनसे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर आ सके और आम नागरिकों का जीवन भी सुगम बन सके। इसके लिए करों मे छूट देने की आवश्यकता नहीं है बल्कि आर्थिक मानकों में सुधार करना है। मगर श्रीमती ट्रस ने अपने 45 दिनों के शासनकाल में जो नीतियां करों आदि को लेकर लागू करने का आश्वासन दिया था उन्हें वे अर्थव्यवस्था की बुरी हालत देख कर पूरा नहीं कर पाईं और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद ब्रिटेन में नये प्रधानमन्त्री चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई और श्री सुनक ने इसके लिए अपनी उम्मीदवारी सबसे पहले घोषित कर दी और कहा कि उनके पास ब्रिटेन को अभूतपूर्व आर्थिक संकट से उबारने का सुविचारित फार्मूला है। यह चुनाव भी केवल कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर ही नेतृत्व के लिए होना था। उनके खिलाफ सबसे पहले पूर्व प्रधानमन्त्री बारिस जानसन ने ही खड़े होने की घोषणा की मगर बाद में वह मैदान से हट गये।
 ब्रिटेन की बहुराजनैतिक दलीय सत्ता व्यवस्था के तहत यदि कोई सांसद प्रधानमन्त्री पद के लिए खड़ा होता है तो उसके साथ कम से कम पार्टी के चुने हुए सांसदों की संख्या के 35 प्रतिशत सांसद होने चाहिएं। श्री सुनक के पास शुरू में ही 370 में से 140 सांसदों का समर्थन था जबकि जानसन न्यूनतम 100 सांसदों का समर्थन जुटाने का दावा कर रहे थे। लेकिन कंजर्वेटिव पार्टी की पेनी मारंडट ने भी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर दी जबकि उनके साथ केवल 30 सांसदों का समर्थन ही था। श्री जानसन द्वारा उम्मीदवारी वापस लेने के बाद श्री सुनक का प्रधानमन्त्री पद पर चुना जाना सुनिश्चित हो गया और गत सोमवार को ही उनके नये प्रधानमन्त्री निर्वाचित होने की घोषणा कर दी गई। इसका सीधा मतलब है कि पूरे ब्रिटेन को पक्का यकीन है कि भारतीय मूल का यह राजनीतिज्ञ उनके देश को वर्तमान संकट से अपनी योग्यता व विद्वता के बूते पर बाहर निकाल सकता है। यही वह भारत की विशेषता है जो ब्रिटेनवासियों को अपने सफल होने का विश्वास दिला रही है। क्या अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर ने अब से लगभग पौने दो सौ साल पहले ही सही नहीं लिख दिया था,
 ‘‘गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की 
तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिन्दोस्तान की।’’

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